Saturday, December 31, 2005

बदलने की जरूरत

'द मांक हू सोल्ड हिज फरारी' का नायक जूलियन मेंटल अमेरिका का एक सफल वकील अचानक अपनी फरारी, मकान सब कुछ बेचकर हिमालय में निकल पड़ता है। एक संतुलित जिंदगी की खोज में। वह लौटकर आता है, तो अमेरिकवासियों की जिंदगी बदलने के लिए। रॉबिन एस. शर्मा की यह किताब दुनिया में अच्छी खासी संख्या में बिकने वाली किताबों में से है। आखिर वह कौन सी बात है, जो आदमी के भीतर ऐसा अहम परिवर्तन ला देती है? और वाकई क्या ऐसे किसी परिवर्तन की जरूरत भी है?

वास्तव में सब पूर्णता के लिए छटपटा रहे हैं। संघर्ष और प्रतिस्पर्धा भी इसी पूर्णता की छटपटाहट है। सब लोग लगातार प्रतियोगिता में नहीं रह सकते। तो वह पूर्णता क्या है? भारतीय दर्शन ने हमें यही सिखाया था। भीतरी ज्ञान की आंखें खोलनी होंगी। गुस्सा, घृणा, द्वेष और डर जैसे नकारात्मक विचारों से मुक्ति पानी होगी। मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि कैसे ये नकारात्मक विचार गर्दन में जकड़न, अल्सर, अस्थमा या त्वचा की कई समस्याएं पैदा करने के कारण बनते हैं। आधुनिक विज्ञान खोजने में लगा है कि सकारात्मक विचार स्वस्थ ही नहीं बनाते, बल्कि रचनात्मक ऊर्जा का विस्फोट करते हैं। आप एक ऐसे व्यक्ति में बदलते हैं, जिसका स्विचबोर्ड उसी के पास होता है।

परिवर्तन की कुंजी आपकी चेतना के परिवर्तन में है। चेतना में परिवर्तन से विचार और भावनाएं बदल जाती हैं। मन और शरीर बदल जाते हैं। कौन आदतों और अतीत की गुलामी से मुक्त नहीं होना चाहता? आदतें हमारी रचनात्मक शक्ति को निगल जाती हैं। अतीत की यादें हमारी स्मृति का सबसे ज्यादा हिस्सा घेरकर रखती हैं, ठीक कंप्यूटर की हार्ड डिस्क की तरह। वह कौन सा क्षण है, जब हम बदल सकते हैं? इसका जवाब बहुत पहले जनक ने अष्टावक्र को दिया था- अधुनैव। अभी ही। किसी भी समय या फिर कभी नहीं।

रॉबिन एस. शर्मा के संन्यासी जूलियन मेंटल की तरह क्या आपको भी नहीं लगता कि आपने जो पीछे छोड़ दिया और जो भविष्य में है, वह उतना महत्वपूर्ण नहीं। महत्वपूर्ण है, तो यह कि आपके भीतर क्या है।'

चलिए आइए फिर हम क्यों देर करे अपने भीतर को जानने की उसे पहचान कर अपनी जिंदगी का रुख बदलने की। नववर्ष की शुरुआत हम एक नई सकारात्मक ऊर्जा से करें... इसी के साथ सुर की ओर से सभी को नववर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनाएं!!!

साभारः हिंदुस्तान

Monday, December 26, 2005

कम होने का नाम ही नहीं ले रही पीड़ा

दुख का समंदर लाई सूनामी को तो एक साल बीत गया लेकिन इसके पीड़ितों का दुख बीतता हुआ नजर नहीं आता और न ही जल्द इसकी कोई संभावना नजर आती है।

सहायता के लंबे चौड़े प्रयासों के बावजूद विनाशकरी लहरों में अपना सबकुछ गंवा चुके लोगों की जिन्दगी एक साल बाद भी नरक जैसी स्थिति में पल पल सामने आती निराशा के साथ चल रही है। हालात ये हैं कि इस कुदरती हादसे की शिकार महिलाओं को तो शारीरिक और यौन शोषण के गर्त तक में गिरना पड़ रहा है।

सुनामी पीड़ितों की यह दुखद कहानी किसी और ने नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ के दो विशेषज्ञों ने अपने बयान में कही है। एशिया में आए इस समुद्री जलजले के एक वर्ष पूरा होने के अवसर पर इन विशेषज्ञों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की है कि वह भारत, इंडोनेशिया, श्रीलंका, मालदीव, थाइलैंड और सोमालिया के सूनामी पीड़ितों की जिन्दगी को फिर से खुशहाल बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के तहत अपना कर्त्तव्य पूरा करे।

आतंरिक रूप से विस्थापित हुए लोगों के मानवाधिकार मामलों में संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफी अन्नान के प्रतिनिधि वाल्टर किडलिन और आवास विशेष अधिकारी मिलून कोठारी ने पीड़ितों को मूलभूत सुविधाएं पर्याप्त रूप से उपलब्ध न होने पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अब त्वरित कदम उठाने चाहिए ताकि इन लोगों में उम्मीद की किरण जाग सके।

Saturday, December 24, 2005

गांगुली को क्रिसमस का तोहफा

क्रिसमस के दिन बच्चों के चहेते सेंटा क्लॉज उन्हें कोई उपहार न दें भला ऐसा कैसे हो सकता है. सेंटा भी आज के दिन अपने किसा बच्चे को दुखी और मुंह लटकाए बैठा नहीं देख सकते. उनके पिटारे में सभी के लिए कुछ न कुछ ऐसा होता है जिनसे बच्चों के मुरझाए चेहरे खिल जाते हैं. तभी तो कहते है कि सेंटा किसी न किसी रूप में आकर अपने प्रिय बच्चों को खुशियां दे जाते हैं.

ऐसा ही एक तोहफा क्रिसमस के त्योहार पर गांगुली दादा को भी मिला, जिससे पिछले कई हफ्तों से मुरझाए उनके चेहरे पर फिर से मुस्कान लौट आई. गांगुली दादा के लिए आज चयन समिति के अध्यक्ष किरन मोरे सेंटा क्लॉज के रूप में आकर उन्हें उनका मनपसंद तोहफा दे ही गए.

सौरभ गांगुली को टीम में वापस शामिल करने के चयन समिति के फैसले से न सिर्फ गांगुली प्रसन्न हैं, बल्कि क्रिकेट के दीवाने उनके चाहनेवालों ने भी राहत की सांस ली है. दिल्ली टेस्ट में श्रीलंका के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद अहमदाबाद टेस्ट में गांगुली को शामिल नहीं किए जाने के चयन समिति के फैसले की देश भर में काफी आलोचना हुई थी, जो यकीनन सही थी. ये सही है कि गांगुली ने कोच और कप्तान के बीच के झगड़े को सरासर मीडिया के सामने लाने की गलती थी, लेकिन इस गलती की सजा उन्हें कप्तानी गंवा कर भुगतनी पड़ी थी. गांगुली को भी अपनी गलती का अहसास हो गया था, पर अहमदाबाद टेस्ट में जिन दलीलों के आधार पर गांगुली को टीम से बाहर किया गया था, उसे भी वाज़िब नहीं कहा जा सकता था.

गांगुली की प्रतिभा को लेकर शायद ही किसी के मन में शंका हो. लेकिन अहमदाबाद टेस्ट के लिए गांगुली को बाहर किए जाते समय चयनकर्ताओं के अध्यक्ष किरण मोरे उनके अनुभव और ढेरों रनों को नजरअंदाज कर गए थे. इस फैसले से गांगुली के भविष्य पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लग गया था.
ये सही है कि व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर टीम भावना जरूरी है और गांगुली ने इसे भूलने की गलती की थी. खैर अब जबकि गांगुली को टीम में शामिल कर लिया गया है तो यही कहा जा सकता है कि अंत भला तो सब भला. उम्मीद है कि पिछले गलतियों से सबक सीख कर आने वाले नए साल में खिलाड़ी और क्रिकेट से जुड़े लोग राजनीति से ऊपर उठकर टीम के हित को सर्वोपरि मानकर काम करेंगे.

Thursday, December 22, 2005

धर्म और संस्कृति के ये रखवाले!!

लीजिए जनाब अपने देश की धर्म व संस्कृति पर इतना बड़ा संकट आ जाए और हमारे देश की धर्म और संस्कृति के रखवाले (तथाकथित) संगठन चुपचाप बैठे रहे यह कैसे संभव है. मेरठ के प्रेमी जोड़ों पर पुलिस ने दो-चार थप्पड़ क्या मार दिए कि पड़ गए सब बेचारे पुलिसवालों के पीछे. बस फिर क्या था धर्म, परंपरा और संस्कृति के रखवालों को तो आगे आना ही था. लीजिए अब वे अपने जाबांज पुलिसकर्मियों का साथ देने के लिए आ गए है मैदान में. अब जरा कोई ऐसी-वेसी हरकत तो करके दिखाए. वो तो उन प्रेमियों के दिन जरा अच्छे थे जो उन पर पुलिस से पहले इन संगठनों की नजर नहीं पड़ी वरना तो मजाल की देश में संस्कृति के खिलाफ कुछ भी ऐसा वैसा (प्यार-व्यार, वैलेंनटाइन-डे वगैहर-वगैहर) हो जाए. (देखे संपादकीय)

अब देखिए ना जिस दिन टीवी पर पुलिसवालों के इस स्पेशल ऑपरेशन को दिखाया गया, उसी दिन टीवी पर एक और न्यूज दिखाई गई. खबर कुछ यूं थी कि एक मुस्लिम युवा ने अपने हिंदू लड़की के साथ शादी कर ली. बस शहर में हो गया बवाल. उसी पर हमारे एक प्रसिद्ध हिंदूवादी संगठन के महान नेता टीवी कैमरे के सामने भड़कते हुए बोले, ये मुस्लमानों की सोची समझी चाल है, इस तरह वो हिंदु संस्कृति को नष्ट कर रहे है. ये तो मोहम्मद गजनी के समय से होता आ रहा है. इस तरह की शादी को कभी स्वीकार नहीं किया जा सकता.

अब भला वे तो ये समझने से रहे कि प्यार अंधा होता है, ऊंच-नीच, जात-बिरादरी, धर्म नहीं देख पाता. इसलिए उनका और उनकी सोच के लोग का मानना भी सही है कि कोई भी ऐसी चीज जो धर्म-संस्कृति न देख पाती देश के लिए घातक है. इसलिए बेचारे पुलिसवालों को, जिन्होंने देश की खातिर इतना बड़ा काम किया उनका समर्थन तो करना ही पड़ेगा.

मूड एकदम फ्रस्टिया गया है

उस दिन उ हमरे घर आया। बहुत परेशान था। का है कि अपने राज्य में अपहरण का धंधा अब मंदा हो गया न, इसलिए घोर बेरोजगारी में दिन काट रहा है। जब मूड एकदम फ्रस्टिया गया, तो सोच लिया कि अब कोनो और रोजगार करेगा। इत्ते में बम्बे से भाई सब का ऑफर आ गया कि यहीं आ जाओ और फिरौती से कमाया पैसा शो बिज में लगाओ। चोखा धंधा है।

लेकिन उ बम्बे नहीं जाएगा। कह रहा था कि जब किसी की इज्जत उतारकर ही तिजोरी भरना है, तो यहीं रहकर कमाऊंगा। पैसा के साथ इज्जतो मिलेगा। अब उ भट्ट कैंप को ही लीजिए। एतना बढि़या-बढि़या हीरोइनों का सब कुछ दिखा दिया, लेकिन एको गो फिलिम हिट नहीं हुआ। बेचारा इमरान का दोनों होंठ सूज गया है चुम्मा लेते-लेते, लेकिन दर्शक उसको देखने सिनेमा हॉल नहीं आया। क्या फायदा ऐसे बिजनेस में पैसा लगाने से?

कहने लगा-- शो बिज के बदले न्यूज बिज में पैसा लगाऊंगा। स्टिंग ऑपरेशन का एजेंसी खोलूंगा और स्लो चैनल को तेज करने का ठेका लूंगा। एक दर्जन एमपी के बदले अगर 70-75 लाख मिल सकता है, तो हम तो एमपी सब के लाइन लगा देंगे। नोट लेते और चड्डी उतारते नेता, अभिनेता और अफसर के वीडियो क्लिप ही न चाहिए, हम सब उपलब्ध कराऊंगा। अब देखिएगा हमरा चमत्कार। पिछला इलेक्शन के हमर जोर नहीं चला, तो नेता सब को लगने लगा था कि हमरा दिन बीत गया। लेकिन अब हम सबको 'नाथ' दूंगा।

बाकी लोग तो बेकूफ है, जो नेता-अभिनेता सब को फांसने के लिए दस गो बहाना ढूंढता है और सुंदर लड़की सब को बत्तीस बार भेजता है। अरे, अपन फैक्टरी में बनल एगो देसी कट्टा कनपट्टी पर रखिए और सामना में कैमरा धर दीजिए। देखिए, कैसे बिना एको पैसा लिए, उ लाखों रुपया लेने की बात कबूलता है। अपन चड्डी उतारने की तो बात छोडि़ए, दोसरो के चड्डी फटाफट उतार देगा। का कहे, ई धंधा चलेगा, दौड़ेगा भाई। एक बेर जहां वीडियो चैनल पर चल गया, फेर के पूछने आता है कि उ वीडियो बना कैसे? एक बेर उतरा इज्जत फेरो नसीब नहीं होता है। इज्जत चड्डी थोड़े है कि फिर से पहन लीजिएगा। हमर स्टिंग ऑपरेशन में लोग कैमरा के सामने या तो चुपचाप पैसा जेबी में करेगा, नहीं तो चुपचाप 'ऊपर' प्रस्थान कर जाएगा।

हां, जरूरी नहीं है कि सब कुछ चैनल को ही बेचूंगा। इज्जत बचाना हो तो कोयो अपनो नेगेटिव हमसे खरीद सकता है या फिर बिपक्षी पाटी भी उ ले सकता है। सबके लिए फिक्स रेट- - घूस लेने वाला 20 लाख, चड्डी उतरल 40 लाख, परी के साथ 60 लाख...।

एक बार ई धंधा चल गया, तो जल्दिये एगो स्टिंग ऑपरेशन सीखाने वाला स्कूलो न खोल देंगे। पढ़कर निकलिए, नौकरी फिक्स। हंड्रेड परसेंट कैंपस सिलेक्शन। अब बताइए, इसके लिए दिल्ली से बढि़या जगह कोनो और होगा?

BY: PRJ

Wednesday, December 21, 2005

प्रेमियों पर बरसा पुलिस का कहर

अभी कल की ही बात है। मेरठ के गांधी पार्क में पुलिस द्वारा प्रेमी- प्रेमिकाओं को जमकर धुना गया। ऐसी ही एक घटना पहले भी घटी थी और तब रेस्टोरेंट में बैठे प्रेमी जोड़े पुलिस का निशाना बने थे. महिलाओं के साथ छेड़खानी करने वाले मनचलों के खिलाफ अभियान चलाने के नाम पर पुलिस ने इस ऑपरेशन 'मजनूं' को चलाया. परंतु टीवी पर इस ऑपरेशन का नजारा देखकर तो कहीं से ऐसा नहीं लगा कि पुलिस का शिकार 'मनचले' थे.

पुलिस के इस कार्रवाई की पूरे देश में निंदा हो रही है। प्रश्न यह है कि सही कौन है- कानून-व्यवस्था दुरुस्त रखने के नाम पर कार्रवाई करने वाली पुलिस या फिर व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर घटना की आलोचना करने वाले लोग।

दिल्ली के संदर्भ में इस घटना को देखें, तो दिल्ली के युवा इस मामले में थोड़े नसीब वाले हैं. दिल्ली में तो मेरठ के गांधी पार्क जैसे पार्कों की बहुतायत है। लोदी रोड, बुद्धा जयंती पार्क, पुराना किला, जापानी पार्क, बोंटा पहाड़ी..... नाम गिनने लगे, तो हर दस किलोमीटर पर यहां कम से कम दो ऐसे पार्क निकलेंगे, जो प्रेम-प्रेमिकाओं की सभी गलत-सही हरकतों का रोज गवाह बनते हैं। परंतु अभी तक यहां के युवाओं को ऐसी घटना का शिकार नहीं होना पड़ा है. लेकिन ऐसा नहीं है कि वे पुलिस की मनमानी और जोर जबरदस्ती का शिकार नहीं होते. वर्दी का रौब दिखाकर पार्कों में बैठे प्रेमी जोड़ों से 20-50 रूपए वसूलना आम है.

यही नहीं हमारे प्रजातंत्र के इन सिपाहियों को बसों में दो-चार रूपए का टिकट लेने के बजाए 'स्टाफ' की धौंस देकर बेचारे बस कंडक्टरों को धमकाते हुए आप कहीं भी देख सकते हैं. सवाल यह है कि क्या कानून व्यवस्था को दुरस्त करने और मनचलों से निपटने का यही एकमात्र उपाय बचा था? क्या सिर्फ एक खाकी वर्दी के नाम पर पुलिस को किसी भी हद तक जाने का अधिकार मिल जाता है? पता नहीं कानून व्यवस्था बिगाड़ने के लिए कौन ज्यादा जिम्मेदार है अपराधी या हमारे वर्दीधारी.

Friday, December 16, 2005

दिलवालों की ई दिल्ली!!!

कहते हैं कि दिल्ली दिल वालों की है। मतलब ई कि आप दिल्ली आए नहीं कि आपका दिल बड़ा हो गया। ई सच है कि झूठ हमको पता नहीं, लेकिन ऐसा लोग कहते हैं। वैसे, हमको तो लगता है कि यहां के लोगों की सोच बड़ी है या चलिए आप इहो कह सकते हैं कि यहां के लोग सोचते बड़े-बड़े हैं।
मेरा एगो मित्र है। तनि हसोड़ किसम का है। विशवास कीजिए, दिल्ली के बारे में उसकी सोच सुनके आप भी हैरान रह जाइएगा। उ दिल्ली के बड़प्पन के बारे में जो महसूस करता है, उ हम आपको बता रहे हैं- -

दिल्ली का दिल देखना हो, तो यहां का व्याकरण ज्ञान देखिए। लिंग भेद का यहां कोनो जगह नहीं। नर-मादा सब ईश्वर की संतान है, तो भेद काहे का? तभिए तो इतना बड़ा शहर, लेकिन लोग कहते हैं- - मेरी दिल्ली, प्यारी दिल्ली। अब हमरे समझ में यह नहीं आता कि जब लखनऊ 'प्यारा' शहर है और चंडीगढ़ भी 'प्यारा', तो दिल्ली 'प्यारी' कहां से हो गई?

यहां का हमरा एक दोस्त कहता है कि ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि हम स्त्रियों का बहुत सम्मान करते हैं। हां, शायद ऐसा ही होगा। अब ई बात अलग है कि यहां मादा भ्रूण हत्या वाला क्लीनिक गली-गली में भरल पड़ल है। वैसे, ठीके है, ई तो सब 'सभ्य' समाज में आजकल हो रहा है। दिल्लियो में हो रहा है, तो कौन खराब है। हमरा दोस्त कहता है, 'स्त्रियों का सम्मान देखना हो, तो यहां के बसों में जाकर देखिए। बस में बाएं तरफ का सम्मानजनक स्थान उनके लिए आरक्षित होता है।' हां, उ ठीके कहता है। वैसे, कभी-कभार आपको ई अफसोस हो सकता है कि ई सम्मान इसी चार-पांच सीट तक है, इससे एको सीट बेसी पर नहीं। अगर कोनो बस में इन सीटों से ज्यादा महिलाएं आ जाएं और भीड़ ठसमठस हो, तो फिर उनके 'सम्मान' के लिए जो हाथ और कुहनियां 'आगे' आती हैं, उसका भगवाने मालिक है।

का है कि दिल्लीवालों का ई मामले में भी जवाब नहीं है कि लोग किसी चीज को छोटा नहीं समझते और बड़े के 'बड़ापन' को सम्मान देने में अपना बड़प्पन समझते हैं। दरअसल, ओ संख्या बल से बहुत डरते हैं और उसका पूरा-पूरा सम्मान करते हैं। क्या कीजिएगा, राजनीति का सबसे बड़ा अखाड़ा संसद यहीं है न, इसलिए संख्या बल का एतना खयाल रखना पड़ता है। यहां के लोग कहेंगे- - मैं तो शहादरे जा रहा था..... मैंने छोले-भटूरे खाए हैं और दही-भल्ले भी। गनीमत है कि चावले नहीं खाते और दूधे नहीं पीते।

ई बड़ा सोच इनकमो के मामला में है। लोग दिन-रात कमाने में लगे रहते हैं, पैसा बनाते रहते हैं, न परिवार को देखते हैं और न समाज को। लोग एतना मशगूल रहते हैं अपने काम में कि चड्ढ़ा साहब की मैयत में जाने के लिए दो पड़ोसी नहीं मिलते। और दूनंबरा पैसा में भी ऐही सोच है। सीबीआई जहीं हाथ डालती हैं, वहीं से लाखों-करोड़ों की नकदी मिल जाती है उसको। यही नहीं, लोगों का दिल इहो मामला में बड़ा है कि ई सब बात से 'नोट छापने वाले' की सामाजिक सेहत पर कोनो असर नहीं पड़ता। दुनिया सुबह-सुबह पेपर पढ़कर उनकी कारगुजारियों पर अफसोस व रोष जता रही होती है, तो उ महाशय पड़ोसी और ओकर कुत्ता के साथ अपना कुत्ता टहला रहे होते हैं। अब कहिए, एतना बड़ा दिल है, तभिये न दिल्ली दिल वालों का कहलाता है।

Tuesday, December 13, 2005

भ्रष्ट बताने का तरीका

आज तक चैनल ने कल कथित रूप विस्फोट किया, लेकिन क्या वाकई यह विस्फोट है? मुझे नहीं लगता। मेरा मानना है कि इसमें कुछ ऐसे सरल व सीधे सांसद फंस गए हैं, जो चुग्गा को पहचान नहीं पाए। ऐसी बात नहीं है कि यह चुग्गा सिर्फ इन्हीं सांसदों को मिला और ये फंस गए, वास्तव में स्टिंग ऑपरेशन करने वाली टीम ने कइयों को निशाना पर लिया होगा, लेकिन जो सीधे थे, वे इसमें फंस गए। हमें यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि जितने सांसद मामले में फंसते दिख रहे हैं, उनमें से ज्यादातर अब तक साफ-सुथरे चरित्र वाले रहे हैं और उन पर कभी कोई गंभीर आरोप नहीं लगे हैं। जबकि दूसरी ओर, इसी संसद में ऐसे कई सांसद हैं, जिन पर देशद्रोह का आरोप न सिर्फ लगा है, बल्कि साबित भी हो चुका है, लेकिन उन्हें कोई कुछ कहने वाला नहीं है। स्टिंग टीम की असफलता इस बात में भी दिखती है कि उसने जिस तरह के प्रश्न को उठाने के लिए कथित रूप से पैसा दिया था, वे बेहद ही सामान्य किस्म के थे और उन प्रश्नों के उत्तर जानकर कोई किसी तरह का लाभ नहीं उठा सकता। मेरे खयाल से यह ऑपरेशन तब ज्यादा सफल कहा जाता, जब किसी गंभीर व विवादास्पद मामले को उठाने के लिए कोई सांसद रिश्वत लेता। हमें यह बात माननी ही पड़ेगी कि हमारे यहां के अधिकांश सांसद बेईमान और भ्रष्ट हैं। विश्वास कीजिए अगर वे ऐसा नहीं होंगे, तो वे जीतकर संसद पहुंच ही नहीं सकते। अपने देश में बिना किसी तगड़े पॉलिटिकल बैकग्राउंड या आर्थिक सपोर्ट के चुनाव लड़ना और उसे जीतना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर है। ऐसे में आप तभी चुने जाते हैं, जब आप हर विद्या में पारंगत हों। सांसदों को अपने क्षेत्र में विकास के काम करवाने के लिए हर साल एक बड़ी राशि मिलती है। हकीकत यह है कि इतनी बड़ी राशि का एक बड़ा हिस्सा जिले का कलक्टर और सांसद महोदय की जेब में जाता है, लेकिन उस पर किसी का ध्यान नहीं जाता। मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार ऐसी चीज नहीं है कि आप पतीले में खौलते चावल में से एक को निकालकर चावल के पकने का अंदाजा लगा सके। आज तक का यह खुलासा यह साबित नहीं करता कि सभी सांसद बेईमान हैं और न ही यह कि इस ऑपरेशन में जो नहीं पकड़ाए, वे ईमानदार हैं।

Thursday, December 08, 2005

जीवन का समीकरण

जीवन के बारे में कुछ भी भविष्यवाणी करना आसान नहीं। यहां जब तक चीजें साक्षात मूर्त रूप में तब्दील नहीं हो जाती, कोई कुछ कह भी कैसे सकता है? लेकिन कहा तो यह भी जाता है कि हम जिंदगी को जो भी देते हैं, जीवन उसे अंतत: हमें लौटा देता है। जैसे ऊंचे पहाड़ों के सामने आवाज लगाने पर पहाड़ हमारी आवाज हमें लौटा देते हैं। वास्तव में यही वह कुंजी है, जिसे समझने के बाद भविष्य उतना अप्रत्याशित नहीं रह जाता। यदि हम सकारात्मक ऊर्जा से भरकर सकारात्मक काम करें, तो जीवन भी हमें वैसे ही परिणाम देगा। कहीं कोई प्रतिरोध है ही नहीं। हमारा भाग्य पहले से ही बंधा हुआ नहीं, बल्कि हमारे रोज के कर्म ही उसे स्वरूप देते हैं। एक स्वस्थ-संपन्न जीवन का इतना सरल समीकरण मौजूद होने के बावजूद भी अगर कोई दुखी और निराश है, तो उसके लिए कोई कुछ नहीं कर सकता।

Friday, December 02, 2005

भगवान बुद्ध के अवतार!!!

A meditating teenage boy in Nepal is drawing attention of people all over the world

पिछले छह महीने से बिना कुछ खाए, यहां तक की बिना पानी पिए पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान में लीन 15 वर्षीय बालक इन दिनों चर्चा और जिज्ञासा का विषय बना हुआ है. नेपाल में तो यह बालक लोगों के आकर्षण का केंद्र बन ही चुका है, अब राम बहादुर बामजान नाम के इस बालक की चर्चा देश-विदेश में भी हो रही है. कहा जा रहा है कि पिछले छह महीने से बालक इसी तरह बिना जल-अन्न ग्रहण किए समाधि लगाए बैठा है. लोग इसे भगवान बुद्ध का अवतार मान रहे हैं.

Thursday, December 01, 2005

हम बहुत कन्फूज हूं

हम बहुत कन्फूज हूं भाई! का है कि हम महान बनना चाहता हूं। लेकिन ई आठ-दस दिन में जिस तरह से महान लोगों को दुनिया 'अंगुली देखा' रही है और महान लोग दुनिया को, उसको देखके डर गया हूं। इसका एक-दो गो नहीं, बहूते उदाहरण है। अब किरकेटिया गुरु गेट चप्पल को ही लीजिए। बेचारा पिरथिवी के दोसरा छोर से हियां आया कि भारत को विश्व विजेता बना सके। अभी ऊ अपने को महान समझने ही लगा था कि लगा सब उसको अंगुली देखाने। अब जब अंगुली देखाइएगा, तो अंगुली देखबो न कीजिएगा। देखा न दिया इस गेट ने भी अंगुली। अब ई मत पूछिए कि चप्पल ने ऊ अंगुली एक अरब भारतीय को देखाया या फिर एक सौ (रव) गंग्गुली फैन को। दिक्कत ई है कि चप्पल जिसको चुटकी में मीसकर महान बनने चला था, ऊ गंग्गुली भी तो अपने को महाने न बूझता था। देखा दिया सबने मिलकर उसको भी उंगली। सच बताऊं, तो हमको आजकल सब 'अंगुली-अंगुली' खेलते ही देखाई पड़ता है।

तनि किरकेटिया सीईओ डाल मियां साहब को ही देख लीजिए। बीस बरिस तक अपन जेबी संस्था को चलाते-चलाते मियां साहब अपने को महाने न बूझने लगे थे कि लोगों ने उनके पैर के नीचे से पूरा जमीने सरका दिया। सौ टका से सौ करोड़ के कारपोरेट कमपनिये खड़ा करके उनको का मिला? ई दुर्दशा! राम राम! आप ही बताइए, उनके सामने हम कौन खेत का मूली हूं?

ऊपी के ऊ आईजी डंडा साहब को तो आप जानबे न करते हैं। अरे, वोही डंडा साहब, जो धरम-करम करके महान बनना चाहते हैं। अब भगवान उनके पास आए, कोई ई मानवे नहीं करता है! सबसे पहले बीवीये न अंगुली देखा दिया और फेरो डिपार्टमेंटों क्यों पीछे रहता? वैसे, हमको तो लगता है कि डंडो साहब ने सबको अंगुली जरूर देखाया होगा।

एगो औरो उदाहरण लीजिए। अपने रेल वाले नेताजी भी तो महाने न हो गए थे। पहिले बीस बरिस तक शासन करने का ताल ठोंकते थे, लेकिन पब्लिक बड़ा बेबकूफ है हो। 'मसीहा' को एतना पहिलये उंगली देखा दिया। ई अंगुली ने न उनको बहुत तंग किया है। पहिले त अंगुली देखा-देखाकर विपक्षी पाटी वाला सब राज छोड़ा दिया औरो अब दाग-धब्बा के नाम पर दिल्ली में सिग्नल रेड करने पर उतारू हैं? वैसे, उनकी त्रासदी भी कम नहीं। जिस साधु के लिए उनने दुनिया भर को अंगुली देखाई और देखी, बुरे समय में अंगुली देखाने में ओहो पीछे नहीं रहा! सबको अंगुली दिखाने वाला आज खुदे अंगुली का शिकार है! अब ई लिस्ट में एगो बैरागिनों का नाम शामिल हो गया है, लेकिन का है कि हम जल्दी में हूं। इस पर हम फेरो कभी बात करेंगे।

लेखः प्रिय रंजन झा