Monday, December 26, 2005

कम होने का नाम ही नहीं ले रही पीड़ा

दुख का समंदर लाई सूनामी को तो एक साल बीत गया लेकिन इसके पीड़ितों का दुख बीतता हुआ नजर नहीं आता और न ही जल्द इसकी कोई संभावना नजर आती है।

सहायता के लंबे चौड़े प्रयासों के बावजूद विनाशकरी लहरों में अपना सबकुछ गंवा चुके लोगों की जिन्दगी एक साल बाद भी नरक जैसी स्थिति में पल पल सामने आती निराशा के साथ चल रही है। हालात ये हैं कि इस कुदरती हादसे की शिकार महिलाओं को तो शारीरिक और यौन शोषण के गर्त तक में गिरना पड़ रहा है।

सुनामी पीड़ितों की यह दुखद कहानी किसी और ने नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ के दो विशेषज्ञों ने अपने बयान में कही है। एशिया में आए इस समुद्री जलजले के एक वर्ष पूरा होने के अवसर पर इन विशेषज्ञों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की है कि वह भारत, इंडोनेशिया, श्रीलंका, मालदीव, थाइलैंड और सोमालिया के सूनामी पीड़ितों की जिन्दगी को फिर से खुशहाल बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के तहत अपना कर्त्तव्य पूरा करे।

आतंरिक रूप से विस्थापित हुए लोगों के मानवाधिकार मामलों में संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफी अन्नान के प्रतिनिधि वाल्टर किडलिन और आवास विशेष अधिकारी मिलून कोठारी ने पीड़ितों को मूलभूत सुविधाएं पर्याप्त रूप से उपलब्ध न होने पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अब त्वरित कदम उठाने चाहिए ताकि इन लोगों में उम्मीद की किरण जाग सके।

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