हम बहुत कन्फूज हूं
हम बहुत कन्फूज हूं भाई! का है कि हम महान बनना चाहता हूं। लेकिन ई आठ-दस दिन में जिस तरह से महान लोगों को दुनिया 'अंगुली देखा' रही है और महान लोग दुनिया को, उसको देखके डर गया हूं। इसका एक-दो गो नहीं, बहूते उदाहरण है। अब किरकेटिया गुरु गेट चप्पल को ही लीजिए। बेचारा पिरथिवी के दोसरा छोर से हियां आया कि भारत को विश्व विजेता बना सके। अभी ऊ अपने को महान समझने ही लगा था कि लगा सब उसको अंगुली देखाने। अब जब अंगुली देखाइएगा, तो अंगुली देखबो न कीजिएगा। देखा न दिया इस गेट ने भी अंगुली। अब ई मत पूछिए कि चप्पल ने ऊ अंगुली एक अरब भारतीय को देखाया या फिर एक सौ (रव) गंग्गुली फैन को। दिक्कत ई है कि चप्पल जिसको चुटकी में मीसकर महान बनने चला था, ऊ गंग्गुली भी तो अपने को महाने न बूझता था। देखा दिया सबने मिलकर उसको भी उंगली। सच बताऊं, तो हमको आजकल सब 'अंगुली-अंगुली' खेलते ही देखाई पड़ता है।
तनि किरकेटिया सीईओ डाल मियां साहब को ही देख लीजिए। बीस बरिस तक अपन जेबी संस्था को चलाते-चलाते मियां साहब अपने को महाने न बूझने लगे थे कि लोगों ने उनके पैर के नीचे से पूरा जमीने सरका दिया। सौ टका से सौ करोड़ के कारपोरेट कमपनिये खड़ा करके उनको का मिला? ई दुर्दशा! राम राम! आप ही बताइए, उनके सामने हम कौन खेत का मूली हूं?
ऊपी के ऊ आईजी डंडा साहब को तो आप जानबे न करते हैं। अरे, वोही डंडा साहब, जो धरम-करम करके महान बनना चाहते हैं। अब भगवान उनके पास आए, कोई ई मानवे नहीं करता है! सबसे पहले बीवीये न अंगुली देखा दिया और फेरो डिपार्टमेंटों क्यों पीछे रहता? वैसे, हमको तो लगता है कि डंडो साहब ने सबको अंगुली जरूर देखाया होगा।
एगो औरो उदाहरण लीजिए। अपने रेल वाले नेताजी भी तो महाने न हो गए थे। पहिले बीस बरिस तक शासन करने का ताल ठोंकते थे, लेकिन पब्लिक बड़ा बेबकूफ है हो। 'मसीहा' को एतना पहिलये उंगली देखा दिया। ई अंगुली ने न उनको बहुत तंग किया है। पहिले त अंगुली देखा-देखाकर विपक्षी पाटी वाला सब राज छोड़ा दिया औरो अब दाग-धब्बा के नाम पर दिल्ली में सिग्नल रेड करने पर उतारू हैं? वैसे, उनकी त्रासदी भी कम नहीं। जिस साधु के लिए उनने दुनिया भर को अंगुली देखाई और देखी, बुरे समय में अंगुली देखाने में ओहो पीछे नहीं रहा! सबको अंगुली दिखाने वाला आज खुदे अंगुली का शिकार है! अब ई लिस्ट में एगो बैरागिनों का नाम शामिल हो गया है, लेकिन का है कि हम जल्दी में हूं। इस पर हम फेरो कभी बात करेंगे।
लेखः प्रिय रंजन झा
3 Comments:
If your own people are demonstrating agaisnt your own team, your own team is not served dinner in your city only because a particular player is not selected froma particular state that I did the right thing. If demonstartor's agitation is right then we need 26 players in Indian cricket team to justify all states quota.
ग्रेग चैपल बिहारी बोली कबसे समझने लगे भई?
बडा बढियाँ लिखे है ! अईसे ही टेम्पो बनाये रखिये |
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