Saturday, November 19, 2005

सलाह

कभी-कभी दूसरों की सलाह मानना कितना भारी पड़ जाता है इसकी एक बानगी देखिए...

एक आदमी सब्जी बेच कर अपना गुजारा चलाता था। सौभाग्य से उसकी दुकान खूब चल निकली। एक दिन एक ग्राहक आया और बोला, वैसे तो तुम्हारी दुकान अच्छी चलती है, लेकिन अच्छा हो कि तुम एक बोर्ड बनवा लो। आजकल विज्ञापन का जमाना है, बिक्री बढ़ जाएगी। उसने सलाह मान ली और किसी पढ़े-लिखे ग्राहक से पूछ कर बोर्ड पर लिखवा दिया- यहां पर ताजी सब्जियां मिलती हैं। बोर्ड दुकान के बाहर लटका दिया गया।

अगले दिन ही एक अन्य ग्राहक बोला, 'वाह! बोर्ड लगवा लिया, अच्छा है, लेकिन यह गलत है।' सब्जी वाला चौंका, पूछा, क्या? ग्राहक बोला, तुम्हारी कहीं और भी ब्रांच है? उसने कहा, नहीं। तो फिर 'यहां पर' क्यों लिखवाया। 'ताजी सब्जियां मिलती हैं' पर्याप्त है। सब्जी वाला बोला, इसमें क्या, अभी इसको पुतवा देते हैं। उसने पुतवा दिया। अगले दिन दूसरा ग्राहक आया और बोला, ये तुमने बोर्ड में क्या लिखवा दिया?' ताजी सब्जियां मिलती हैं।' इससे लगता है कि तुम अब तक हमें बासी सब्जियां बेचते थे। तुम्हारे सारे ग्राहक चले जाएंगे। सब्जी वाले ने घबरा कर 'ताजी' पुतवा दिया। अब सिर्फ 'सब्जियां मिलती हैं' लिखा रह गया।

फिर एक दिन एक ग्राहक आया और बोर्ड को पढ़ने लगा। बाद में बोला, तुम पहले कुछ और बेचते थे क्या? दुकानदार ने कहा, नहीं! मेरी तो हमेशा से सब्जी की ही दुकान रही। ग्राहक ने कहा, तुम्हारे बोर्ड से ऐसा भ्रम होता है। लिखा है 'सब्जियां मिलती हैं।' यानी पहले कुछ और मिलता था, अब सब्जियां मिलती हैं। सब्जी वाले ने घबराकर 'सब्जियां' पुतवा दिया। फिर ग्राहक पढ़ कर हंसने लगे 'मिलती हैं!' अरे भाई क्या मिलती हैं।' सब्जी वाले ने उसको भी पुतवा दिया। अब खाली बोर्ड था। लोगों ने कहना शुरू किया, भाई खाली बोर्ड को क्यों लटका रखा है? या तो कुछ लिखवा लो या उतार फेंको। सब्जी वाले ने अंतत: उस बोर्ड को उतार ही दिया। वह सोचने लगा, कहां झंझट में फंस गया लोगों की सलाह सुन-सुनकर। इसलिए दूसरों की सलाह पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं करना चाहिए।

साभारः एनबीटी

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