स्वाबलंबी बने
एक गरुड़ ने अपने बच्चे को पीठ पर बैठाया और मादा गरुड़ के साथ किसी सुरक्षित स्थान पर जाने का फैसला किया। दिन भर यात्रा करने और दाना चुगने के बाद यह परिवार अपनी मनपसंद जगह पर पहुंचा। वहाँ गरुड़ ने अपने बच्चे को समझाया कि अब वह बड़ा हो चुका है और खुद भी उड़ा करे। लेकिन आलसी होने की वजह से बच्चा हमेशा पिता की पीठ पर बैठकर ही यात्रा करता। गरुड़ अपने बच्चे के आलस को बड़ी सतर्कता से देखता रहा। उसे सबक सिखाने के लिए एक दिन गरुड़ ने उड़ते समय धीरे से अपने पंख खींच लिए। बच्चा गिरने लगा, पर थोड़ी देर में वह फड़फड़ा उठा और गिरते-गिरते बच गया। उसने उड़ने की आवश्यकता जान ली। शाम को घर लौटते हुए उसने अपनी मां से कहा, 'माँ, अगर मैंने आज समय पर पंख न फड़फड़ाए होते तो पिताजी ने बीच रास्ते में मुझे गिरा ही दिया होता। तब मादा गरुड़ ने मुस्कराते हुए कहा, 'बेटा, जो अपने आप नहीं सीखते और स्वावलंबी नहीं बनते, उन्हें सिखाने-समझाने का यही तरीका है।
1 Comments:
बिलकूल ठीक बात बताइ है आपने, जब तक कंधे पर बोझ न डालो कुछ लोग सिखते ही नही है जैसे कुछ लोग चोट लगने के बाद ही सही रास्ता चुनते है।
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