Saturday, October 29, 2005

खो ना जाए ये हंसी

भोजन आधो पेट कर, दुगुनो पानी पी।
तिगुनो हंसी चौगुनो श्रम, बरस सवा सौ जी।।

ज्ञानी तो लाख टके की बात कह गए हैं, लेकिन आधुनिकता के इस दौर में इंसान जहां अपार सुख-सुविधाओं से लैस है, वहीं उसके पास एक चीज की दिनों दिन कमी होती जा रही है और वो है- हंसी. आजकल की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव इस कदर बढ़ गया है कि लोग मानो हंसना-मुस्कुराना ही भूल गए हैं. आलम यह है कि डिप्रेशन जैसी बीमारी जिसके बारे में कुछ साल पहले लोग जानते तक नहीं थे, आज एक गंभीर रूप धारण कर चुकी है. और तो और तनाव से बड़े-बूढ़े और बच्चे तो क्या अब जानवर भी अछूते नहीं हैं. इसे आधुनिकता की दौड़ में खुद को बनाए रखने की होड़ कहे या कुछ और, यह सच है कि अब व्यक्ति के चेहरे की स्वाभाविक मुस्कान कहीं खो सी गई है. आज हमें तनावमुक्त रहने और हंसने के लिए तमाम तरह के उपाय करने पड़ रहे है. यहां तक की तनावरहित व स्वस्थ बने रहने और खुलकर हंसने के लिए लाफ्टर क्लबों का सदस्य बनना पड़ रहा है. तकनीकी युग में बेशक आज हम मशीन बनकर रह गए हैं, लेकिन इस मशीन को चलायमान रखने के लिए ही सही हंसना जरूरी है. इसलिए हमेशा मुस्कुराते रहें...

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