समय प्रबन्धन की अनूठी मिसाल
समय प्रबन्धन तो कोई इनसे सीखें, न तो कोई डिग्री, न डिप्लोमा और न कोई क्लास लेकिन मुंबई के डिब्बावालों का समय प्रबन्धन गजब का है। आपके ऑफिस में लंच का समय हुआ नहीं कि उसके पहले आपका डिब्बावाला आपके खाने का डिब्बा लिए आ पहुंचा और तो और ब्रिटेन के युवराज चार्ल्स और उसी देश की सबसे बड़ी विमानन कंपनी एटलांटा वर्जिनिया के प्रमुख रिचर्ड भी उनके समय प्रबन्धन के कायल हैं।
रोज करीब दो लाख से ज्यादा लोगों को खाने का डिब्बा पहुंचाने वाले डिब्बावालों की खास पहचान है सफेद या लाल कमीज, धोती और सिर पर गांधी टोपी। कम से कम पच्चीस किलोमीटर तक की दूरी तय कर पांच हजार से ज्यादा डिब्बावाले दफ्तरों में काम करने वाले बाबूओं को घर का बना खाना खिला देते हैं। खाना बनाने के काम में पच्चीस हजार पुरूष और महिलाएं लगे हुए हैं।
मजाल कि डिब्बों में हेर फेर हो जाए या किसी का डिब्बा किसी और को मिल जाए। डिब्बों की पहचान के लिए रंगों का कोड होता है। डिब्बों की छंटाई की पद्धति डाक विभाग की तरह होती है। पहले रंगों के हिसाब से छंटाई और कोड के हिसाब से उसे सही जगह तक पहुंचाना।
डिब्बों को उनके खरीददारों तक पहुंचाने के लिए डिब्बावालों को लोकल ट्रेन साइकिल तथा हाथ गाड़ी का भी इस्तेमाल करना होता है। लंच के समय डिब्बा देना और बाद में उसे दूसरे दिन पहुंचाने के लिए ले जाना। मतलब रोज चार लाख से ज्यादा डिब्बों का फेरबदल। इनके टाइम मेंनजमेंट के आगे तो बड़े-बड़े मेंनेजमेंट गुरुओं के मंत्र फीके नजर आते है, तभी तो अब डिब्बेवालों के प्रबंधन गुरु को सीखने के विदेशों से लोग आने लगे हैं।
1 Comments:
बढ़िया लेख लिखा है आपने!
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