ये जीत है या हार!!!
CBI brought underworld don Abu Salem and his girlfriend Monica Bedi to Mumbai on Friday 11 November 2005.
कुख्यात अबू सलेम को आज भारत लाने वाली खबर मुंबईवासियों के लिए जितनी अहम है, उतनी ही दिल्लीवालों के लिए भी। चौंकिए मत! वह इसलिए क्योंकि अपराध के मामले में दिल्ली मुंबई की राह पकड़ता जा रही है। जहां इक्का-दुक्का अपराध यहां रोज होते हैं, वहीं हाल ही में सीरियल बम ब्लास्ट से भी पिछले दिनों दिल्ली दहल चुकी है।
अबू सलेम के सिर पर 1993 के मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट का इल्जाम है, तो आज 12 साल बाद दिल्ली में हुए हालिया सीरियल बम ब्लास्ट के अपराधियों का अभी तक पता नहीं चल पाया है। सच पूछिए, तो दिल्ली का यह कांड दहशतगर्दां द्वारा बंदूक के बदले शुरू हुई बारूदी लड़ाई की ही एक कड़ी है और हम अबू सलेम को इसके मार्गदर्शकों में से एक मान सकते हैं। तो क्या दिल्ली में दहशत फैलाने वालों पर भी कानून का शिकंजा 12 साल बाद कसेगा?
नहीं, यह अनर्थ नहीं होना चाहिए। यह देश के हित में कतई नहीं है। वैसे, सच तो यही है कि अपने देश में अपराध भी इसलिए ज्यादा हो रहे हैं, क्योंकि यहां के कानून व न्यायिक प्रक्रिया में तमाम तरह की खामियां हैं और जिन्हें दूर करने के लिए र्प्याप्त प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।
3 Comments:
पहले तो ये स्पष्ट कीजिये कि "बन्दूक बे बदले बारूदी लडाई" से आपका अभिप्राय क्या है ?
दूसरी बात ये कि इस देश में हजारों अबू सलेम हैं। हर छोटे-बडे कस्बे में आपको मिल जायेगे । ये दाउद, अबु, शाहबुद्दीन, मुख्तार अंसारी आदि तो बस पहली झाँकी हैं ।
पहले आतंक फैलाने के लिए बूंदक का इस्तेमाल होता है, अब इसकी जगह बम ने ले ली है. जाहिर है ये ज्यादा मारक है. गांवों में अभी भी बंदूक ही है बम नहीं.
ब्लाग जगत से यूँ ही गुजरते हुए आपके ब्लाग पर नजर पडी। अच्छा है पर पत्रकारिता के लोग कुछ और सूक्ष्म होने का जोखिम उठा सकते हैं। शुभाकांक्षाएं ;)
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