Thursday, September 21, 2006

खर्च करने में अव्वल दिल्लीवासी

दिलवालों के शहर दिल्ली के लोग खर्च करने के मामले में भी सबसे आगे हैं. देश के दूसरे शहरों के मुकाबले यहां के लोग ज्यादा खर्चीले हैं. यां यूं कहें कि यहां के लोग शॉपिंग के साथ-साथ दूसरी चीजों पर दिल खोल कर खर्च करते हैं. पिछले कुछ सालों के मुकाबले लोगों की आय में भी कुछ इजाफा हुआ है. हाल में जारी एक रिपोर्ट के आंकड़े कुछ ऐसे हैं:
  • शहरी इलाके में प्रति व्यक्ति मासिक व्यय लगातार बढ़ रहा है। शहरी क्षेत्र में राष्ट्रीय औसत मासिक व्यय १०६० के मुकाबले राजधानी में प्रति व्यक्ति महीने का खर्च १६०६ रुपये है। दिल्ली में २००३ में मासिक व्यय १५६३ रुपये था जो २००४ में बढ़कर १६०६ रुपये हो गया है।
  • शहरी इलाके के लोग प्रति महीना ३४ फीसदी खाद्य वस्तुओं पर खर्च करते हैं। दस फीसदी खर्च दूध और दूध से बने पदार्थों, सात प्रतिशत मोटे अनाज तथा दालों, दो प्रतिशत खाना पकाने के तेल, चार फीसदी सब्जियों व दो फीसदी फलों पर खर्च करते हैं
  • गुजरात में शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति मासिक व्यय १०९२, हरियाणा में १०५०, पंजाब में १०५९, तमिलनाडु में ११३१ रुपये, आंध्र प्रदेश में ११०२ रुपये, उत्तर प्रदेश में ८२७ रुपये, मध्य प्रदेश में ७९३ रुपये और बिहार में ७८४ रुपये है।
  • दिल्ली में ३२.७५ लाख परिवार हैं। २.०३ लाख परिवार ग्रामीण इलाकों में और ३३.७२ लाख शहरी इलाकों में रहते हैं।
  • सर्वेक्षण से पता चलता है कि ११ फीसदी परिवारों की मुखिया महिलाएं हैं। दिल्ली में महिलाओं की कुल जनसंख्या ६८.२५ लाख में से लगभग ४९ फीसदी यानी ३३ लाख महिलाएं शादीशुदा हैं। सात प्रतिशत यानी ४.८२ लाख विधवाएं और ०.४५ लाख महिलाएं तलाकशुदा हैं।
  • परिवारों में रोजगार के लिहाज से ४७ प्रतिशत के पास नियमित वेतन व मजदूरी का रोजगार है। ३६ फीसदी परिवार स्वरोजगार वाले हैं। ४.८६ फीसदी परिवार मजदूर वर्ग के हैं।
  • दिल्ली में ६६ प्रतिशत परिवार अपने घरों में, २६ प्रतिशत किराये के घरों में आठ फीसदी अन्य घरों में रहते हैं। ५९ फीसदी परिवारों के अपने अलग स्वतंत्र मकान है और २३ प्रतिशत फ्लैटों में, १८ फीसदी तंग बस्तियों में रहते हैं।
  • लगभग ९६ प्रतिशत के पास पक्के घर, तीन प्रतिशत के पास आधे पक्के मकान और एक प्रतिशत के पास कच्चे घर हैं। लगभग ८५ प्रतिशत परिवार खाना पकाने के लिए रसोई गैस का इस्तेमाल करते हैं जबकि बाकी मिट्टी के तेल पर निर्भर हैं।
  • २००४ के सर्वेक्षण के अनुसार दिल्ली के शहरी क्षेत्र में साक्षरता दर ८६ प्रतिशत है। राष्ट्रीय स्तर साक्षरता की दर ८२ फीसदी है। पुरुष साक्षरता दर ९१ फीसदी और महिलाओं की ८० फीसदी है। सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि कुल साक्षरों में से ३२ प्रतिशत प्राइमरी स्तर के, ३१ प्रतिशत मिडिल और माध्यमिक स्तर के, १३ प्रतिशत उच्चतर माध्यमिक स्तर के,१७ फीसदी स्नातक व पांच फीसदी स्नातकोत्तर या उससे ज्यादा पढ़े हैं।

Tuesday, September 19, 2006

कितने अजीब रिश्ते हैं यहां

किसी रिलेशन की शुरुआत जब होती है तो हर समय उस रिश्ते का अहसास हमें घेरे रहता है. उसे पहले प्यार की खुमारी और न जाने क्या क्या कहा जाता है. कुछ को हंसी-हंसी में यहां तक कहते कि ये शुरुआती पागलपन होता है जो वक्त के साथ दूर हो जाता है. वाकई... वक्त बीतता है तो हंसी-मजाक हकीकत का रुप लेकर सामने होता है. ऐसे में सपने का सा अहसास देने वाले उस मीठे रिश्ते को वास्तविकता से रिलेट कर पाना आसान नहीं होता. तब शुरु होता है सच्चाई को स्वीकार कर पाने का असली सफर और रिश्ते की सही स्वरुप में जीने की असली परीक्षा. कुछ इस परीक्षा में खरे उतरते हैं तो कुछ रिश्तों के कठोर प्रश्नों के बीच उलझ कर रह जाते हैं.

कितने अजीब रिश्ते हैं यहां पे.... दो पल मिलते हैं साथ-साथ चलते हैं, जब मोड़ आए तो बचके निकल हैं....