Wednesday, June 21, 2006

अब आप अपने पसंदीदा कॉलम को नए पते पर पढ़ सकते है. उम्मीद है जिस तरह आप सभी ने अब तक इन व्यंग्यों को पसंद किया आगे भी आपको ये पसंद आएंगे.

धन्यवाद...

Thursday, June 15, 2006

'सेल' में सरकार

लीजिए, दिल्ली सरकार अब पियोर व्यापारी हो गई है। का है कि जैसे दुकानदार सब होली-दीवाली पर सेल लगाता है न, वैसने दिल्ली सरकारो अब सेल लगाने लगी है। पहले चीजों का दाम ८० परसेंट बढ़ाकर स्टीकर चिपका दीजिए औरो फिर बड़का बैनर पर अप टू ७० परसेंट सेल लिखकर टांग दीजिए। जनता खुश! केतना सस्ता चीज मिल रहा। अब गिरहकट ने कैसे जेब काट लिया ई पता किसको चलता है!

तो भइया दिल्ली सरकार ने भी तेल के खेल में व्यापारी वाला बुद्धि लगाया। उसको पता था कि पेटरोल-डीजल का दाम बढ़ते ही लोग हाय-हाय करेंगे, सो ऐसा करो कि दाम एतना बढ़ा दो कि जब लोग हाय-हाय करने लगेंगे, तो थोड़ा दाम घटाकर वाहवाही लूट सको। अब सरकार का धंधा देखिए कि पेटरोल का चार टका दाम बढ़ा के ६७ पैसा का सेल लगा दिया, तो डीजल का दो टका दाम बढ़ा के २२ पैसा का सेल लगा दिया। और अब उ सीना तान रही है कि देखो, हम जनता का केतना चिंता करते हैं।

वैसे, इस सरकारी रवैया के लिए जनतो कम दोषी नहीं है। अब का है कि तनिये ठो छूट देख के आप समान लूटने के लिए टूट पडि़एगा, तो आपको कोयो बेकूफ बना सकता है। हमको तो इस तेल में दोसरे खेल नजर आता है। हमरे खयाल से सरकार ने अब पेटरोल कंपनी को छोड़कर पेटरोल पंप मालिक सब से दोस्ती कर ली है। तभी तो दाम घटा के ऐसा रखा है कि पेटरोल पंप मालिक को फायदा हो। अब का है कि आप जाइएगा एक लीटर पेटरोल भराने, जिसका दाम आपको देना पड़ेगा ४६ टका ८४ पैसा। आप इसके लिए काउंटर पर ४७ टका दीजिएगा, तो आप ही बताइए कि आपको १६ पैसा लौटा के कौन देगा? अगर दिन भर में हजार लीटर पेटरोल बिकता है, तो तनि पेटरोल पंप मालिक के फायदा का हिसाब लगा के देखिए। ऐसने हाल डीजल का है, जिसका दाम ३२ टका २५ पैसा रखा गया है। अब आप जब जाइएगा पेटरोल भराने, तो पंप मालिक आपको ७५ पैसा लौटाने के लिए २५ पैसा तो अपने घर में बनाएगा नहीं। मतलब आपको कम से कम २५ पैसा औरो बेसी से बेसी ७५ पैसा के घाटे की तो पूरी गैरंटी है। अब आप लगा लीजिए, पूरा हिसाब औरो दाद दीजिए सरकारी व्यापार बुद्धि को!

वैसे, सही बताऊं, तो हमको सरकार दिनोंदिन एकदम खांटी व्यापारी बनती नजर आ रही है। पिछले दिनों हमने पढ़ा कि सात दिन के अंदर हाउस टैक्स जमा कीजिए औरो १५ परसेंट का आकर्षक छूट पाइए। अब इसको भले सरकारी अफसर टैक्स जमा करने के लिए प्रोत्साहन का तरीका मानता हो, लेकिन हमको तो ई पियोर सेल लगता है। अरे भाई, एक तो कानून ही नहीं बनाइए औरो अगर बनाते हैं, तो उसका पालन करवाइए। उसमें काहे का छूट। जब तेल कमपनी सब को आप घाटा में नहीं भेजना चाहते, जनता को तेल के नाम पर सब्सिडी नहीं देना चाहते, तो टैक्स में सब्सिडी काहे का। हमरे खयाल से तो जनता से सब टैक्स वसूलिए औरो पैसा को तेल-पूल के घाटा से बाहर आने में लगाइए। लेकिन जनता को प्लीज जनता को ठगिए मत। का है कि हाउस टैक्स का उनको पांच टका छोड़कर आप उससे ३५ टका किलो परवल खरीदवाते हैं तो लानत है आप पर।

प्रिय रंजन झा

Thursday, June 08, 2006

दूसरे से चार्ज होना

आजकल हम मोबाइल फोन रखने वाले आफिस के अपने साथियों से परेशान हूं। रोज कोयो न कोयो हमरे पास चार्जर मांगने आ जाता है औरो चार्जर नहीं मिलने पर एक खरीदकर रखने की मुफ्त में सलाहो दे जाता है। आप ही बताइए, ई अजीब बात नहीं है कि सब दोसरे के भरोसे चार्ज रहना चाहता है। वैसे, बहुत चिंतन के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि वास्तव में हम सब दोसरा के भरोसे ही चार्ज होने के लिए अभिशप्त हूं।

अब देखिए न वसंत कुंज वालों को। पांच दिन हाड़तोड़ मेहनत करके जब उ लोग डिस्चार्ज हो जाते हैं, तो चार्ज होने के लिए सप्ताह के बाकी दू दिन मॉल में घूमते रहते हैं। इसके लिए उ गुड़गांव तक का चक्कर लगाते रहते हैं, लेकिन दूसरे से चार्ज होने की आदत देखिए कि अपने यहां बन रहे मॉल को बनने से रोकने के लिए कोर्ट पहुंच गए। उ तर्क दे रहे हैं कि मॉल बनने से यहां का परयावरण खराब हो जाएगा। अरे भइया, मॉल बनने से अगर आपकी कालोनी का परयावरण खराब हो रहा है, तो गुड़गांव का परयावरण मॉल बनने से बढि़या तो हो नहीं जाएगा! अगर परयावरण का एतने चिंता है, तो मत जाइए कहीं के मॉल में। ऐसन दोगलई काहे करते हैं?

वैसे, दूसरे से चार्ज होने के मामले में हमरी पुरुष बिरादरी भी बदनाम है। का है कि अपनी बीवी या गर्ल फरेंड केतनो बढि़या हो, उनकी बांछें दूसरे की जोड़ू को देखकर ही खिलती है। घर में जब तक बीवी के साये में रहेंगे, डिस्चार्ज रहेंगे, एकदम मुरझाए-से, लेकिन जैसने बाहर निकले कि एकदम चार्ज हो जाएंगे। बीवी या अपनी पुरानी हो चुकी गर्ल फरेंड का फोन आएगा, तो महाशय के मुंह से एकदम मरी हुई आवाज निकलेगी, जैसे न जाने दुख का केतना बड़का पहाड़ बेचारे पर टूट पड़ा हो, लेकिन दूसरी कोई महिला फोन पर हो, तो देखिए महाशय के चेहरे का चमन, एकदम खिला होता है! एक मिनट में डिस्चार्ज मूड चार्ज हो जाता है।

अपनी किरकेटिया टीम को ही देखिए लीजिए। मान लिया जाता है कि बिना विदेशी कोच के अपनी टीम चार्ज हो ही नहीं सकती। बेचारा गए, तो गेग चैपल आए, ई जाएंगे तो कोयो और आएंगे, लेकिन कोच बनेगा कोयो विदेशी ही। दूसरे से चार्ज होने की मानसिकता के कारण ही तो हमने मान लिया है कि गावस्कर और कपिल ताऊ ने जिंदगी भर घास खोदी है।

घास तो अपने परधानमंतरी भी खोद रहे हैं। सरकार के उ मुखिया हैं, लेकिन दूसरे से चार्ज होने की अपनी आदत देखिए कि पेटरोल-डीजल का दाम बढ़ाने के बाद सरकार पर डिस्चार्ज होने का खतरा पैदा हुआ, तो चार्ज करने के लिए उरजा मंतरी मुरली देवड़ा सीधे पहुंच गए सोनिया गांधी के पास। बेचारा परधानमंतरी गए तेल लेने, कोयो नहीं पूछता उनको।

वैसे, कांगरेस पारटी में दूसरे से चार्ज होने की संस्कृति बहुते पुरानी है। का है कि अगर किसी राज्य में कांगरेसी सरकार बनने की स्थिति आई, तो वहां का विधायक अपना नेता नहीं चुनता। दूसरे से चार्ज होने की मानसिकता देखिए कि नेता चुनने का काम आलाकमान पर छोड़ दिया जाता है। चुनाव भले ही आप जीत लें, लेकिन सरकार बना लेना बच्चों (विधायकों!) का खेल थोड़े ही है, सो ऊपर से मदद जरूरी हो जाता है।

और तो और अब राहुल गांधी परधानमंतरी बनने की टरेनिंग ले रहे हैं, तो बेचारे को चार्ज होने के लिए विदेश भेज दिया गया। अभी खबर आई थी कि उ सिंगापुर में राजनीति का गुर सीख रहे हैं। अब हम ई सोच-सोच के डिस्चार्ज हो रहा हूं कि भगवान जाने वहां की टरेनिंग से एतना बड़का लोकतांतरिक देश राहुल चला कैसे चला पाएंगे! अब आप ही बताइए, हम अपने को कहां से चार्ज करें!

प्रिय रंजन झा

Thursday, June 01, 2006

किसकी गरमी काम की

आजकल दिल्ली गरम है। एतना गरम कि पूछिए मत, जीना मुहाल हो रहा है। का है कि अगर खाली सूरज की गरमी बर्दाश्त करना हो, तो आप कर लीजिएगा, लेकिन यहां तो गरमी पैदा करने वाला बत्तीस ठो कारण जमा है। कोयो सत्ता की गरमी दिखा रहा है, तो कोयो आंदोलन की, कोयो बहिष्कार की, तो कोयो डीप क्लीवेज की।

का है कि राजधानी में रहने का यही नुकसान है- बात कहीं की हो, भुगतना आपको पड़ता है। अब देखिए न आमिर खान पर बैन लगाया गुजरात ने, उ रहते बम्बे में हैं, लेकिन झगड़ा में पसीना बहा रहे हैं दिल्ली के लोग। हमरे एक लाल झंडा वाले दोस्त इस मुद्दा पर दो बार पिटे- एक बार तब, जब दारू पी के फना पर बैन को अभिव्यक्ति के अधिकार पर हमला बता रहे थे औरो दूसरा बार तब, जब पंजाब में दा विंची कोड पर बैन को वाजिब ठहरा रहे थे। ऐसने हाल राखी सावंत मामले का है। उन पर कोल्हापुरी चप्पल चला कहीं और, लेकिन क्लीवेज की लंबाई पर बहस गरमा रहा है दिल्ली में। आरक्षण का फायदा-नुकसान भुगतना होगा देश भर के लोगों को, लेकिन वातावरण सबसे गरम है दिल्ली में। अब ऐसन में हमरी समझ में ई नहीं आ रहा कि गरमी के इन सब सोर्स में सबसे बेसी पावर किस में है?

इसमें कोयो शंका नहीं कि सत्ता में बहुते गरमी होती है। तभिये न चुन-चुन के वैसन पोस्ट सब को आफिस आफ परॉफिट से बाहर कर दिया यूपीए वालों ने, जिनसे उनके किसी भाई-बंधु का नुकसान हो रहा था। जया बच्चन के पास भी सत्ता की गरमी होती, तो सरकार को उनकी सीट में परॉफिट थोड़े दिखता। लेकिन इससे पहिले कि हम सत्ता की गरमी को सबसे पावरफुल समझते, राष्ट्रपति ने आफिस आफ परॉफिट वाला बिलवे लौटा के सब कुछ ठंडा कर दिया!

राष्ट्रपति ने सत्ता की गरमी को कम कर दिखाया, तो कोर्ट आरक्षण की गरमी को डीप फ्रिजर में घुसा रहा है। अब आठ हफ्ता बाद जब कोर्ट इस मामले को सुनेगा, तब तक तो दिल्ली में सावन आ जाएगा, इसलिए इसकी चर्चे बेकार है।

गरमी तो हमको आमिर भाई में भी खूब दिखा था। 'रंग दे वसंती' का चल गई, कुछ बेसिए टेढि़या गए। न आगे देखे औरो न पीछे, कूद पडे़ नर्मदा घाटी में। अब ई फिल्मी परदा तो है नहीं कि हीरो सिक्की पहलवान है, तभियो ऊ गामा पहलवान को हरा देगा। जनता से पंगा लेने वालों को तो भगवानो नहीं बचाते हैं, सो पड़ गए भइया फेर में। सब गरमी खतम हो गई, तो अब कहते फिर रहे हैं कि मैंने गुजरात के बारे में कुछ बोलवे नहीं किया था। बात कहकर मुकरना पड़ जाए, तो भैया ऐसन गरमी किस काम की?

आमिर से बेसी बढि़या, तो राखी सावंत की गरमी रही, जो अभियो तक कायम है। उनकी गरमी तो देखिए कि टेढ़ी बात करने वाले एंकर बड़े-बड़े सूरमा का पसीना निकाल देते हैं, लेकिन राखी की गरमी के सामने उनका पसीना निकल गया। सही बताऊं, तो हमको सबसे बेसी गरमी राखी में ही दिखती है। एनर्जी का बड़का सोर्स। बताइए, खाली देह देखके सैकड़ों लोग दंगा पर उतर आया, इससे बड़ी बात और का हो सकती है। वैसे, आश्चर्य हमको इसका है कि एतना मजबूत चप्पल बनाने वाले कोल्हापुर के लोग, एतना कमजोर पेंदी वाले कैसे हो गए! एक हम दिल्लीवाले हैं, जो रोज रोड पर राखी सावंतों को देखते हैं, लेकिन कर कुछ नहीं पाते हैं!

प्रिय रंजन झा