Saturday, April 29, 2006

प्यास बुझाइए मल्लिका के 'कर्व' से

प्यास बहुते तरह की होती है। कोई धन की प्यास से पीड़ित होता है, तो कोई तन की प्यास से, लेकिन दिल्ली वाला सब आजकल एक ठो बड़की प्यास- पानी की प्यास से पीड़ित है। ऐसे में हम ई सुन के परेशान हूं कि तीसरा विश्व युद्ध पानिए के खातिर होगा।

वैसे, हमको प्यास ही नहीं, दूसरो चीज सब तेजी से बढ़ता दिख रहा है। दिल्ली का टम्परेचर बढ़ रहा है, क्राइम बढ़ रहा है, शेयर बाजार का सेंसेक्स बढ़ रहा है, तो सेक्स का सेंसेक्सो कम नहीं है। सोना की चमक देखकर लोग हैरान हैं, तो जिस चांदी को चोरो नहीं चुराता था, अब सोना से कमपिटीशन कर रहा है। और तो और किरकेटो पीछे नहीं है, रोज कोयो न कोयो पुराना रिकॉर्ड टूट जाता है, मतलब रन औरो विकेट की प्यास भी बढ़ रही है। अब जब एतना चीज के वास्ते तीसरा विश्व युद्ध नहीं होगा, तो ई बात हमरे समझ में नहीं आती कि पानी की खातिर तीसरा विश्व युद्ध काहे होगा!

हां, ई आश्चर्य की बात तो है ही कि बड़की-बड़की प्यास से परेशान नहीं होने वाले दिल्ली के लोग एक ठो छोटकी प्यास, यानी पानी के प्यास से परेशान हो जाते हैं! अरे, जब आप धन की प्यास, मन की प्यास और तन की प्यास से परेशान नहीं होते, तो नाचीज पानी के प्यास से काहे परेशान होते हैं? और जब पानी जैसन चीज आपको एतना परेशान करती है, तो जेतना पसीना आप धन औरो तन की प्यास बुझाने के लिए बहाते हैं, ओतना पसीना पानियो जमा करने के लिए बहा के देखिए, सरकार के भरोसे काहे रहते हैं? जब धन की प्यास बुझाने के लिए लीगल- इलीगल सब काम आप खुदे ढूंढते औरो करते हैं, तन की प्यास बुझाने के लिए घर से बाहर तक का चक्कर लगाते हैं औरो बियाग्रा तक की तस्करी करवाते हैं, तो पानियो का लीगल-इलीगल जुगाड़ खुदे कीजिए। आप ही बताइए कि ई कहां का नियम है कि अपना बैंक बैलेंस बढ़ाने के लिए पसीना बहाए आप औरो कंठ सूखे तो आपको पानी पिलाए सरकार!

सरकार आपका केतना प्यास बुझाएगी। धन और तन की आपकी बढ़ती प्यास से दिल्ली सरकार पहिले से परेशान है। पैसा कमाने के लिए आपने अवैध निरमाण कराए, यमुना में घटिया केमिकल बहाए, गली-गली में ब्यूटी पार्लर औरो मसाज पार्लर खोलकर उसके आड़ में तन व धन दोनों की प्यास बुझाई, सरकार ने अपनी 'वोट की प्यास' को ध्यान में रखकर आपको अपनी ये सारी प्यास बुझाने भी दी-- उसने हाई कोर्ट में दिल्ली को हर दम साफ-सुथरा बताया। लेकिन दिक्कत ई है कि इस तरह उ कोर्ट के पावर की प्यास तो बुझा सकती है, लेकिन आपकी पानी की प्यास कभियो नहीं बुझा सकती, काहे कि पानी कागज पर नहीं आता। वैसे भी आपके कोर्ट में कागज चलता कहां है, आपको तो पानी से भरा बाल्टी चाहिए।

हमरी मानिए, सरकार को छोडि़ए बाजार से कोल्ड डिरिन्क खरीदकर अपनी प्यास बुझाइए। अब तो आपको वैसे भी खुश होना चाहिए, काहे कि 'भीगे होंठ...' वाली मल्लिका सहरावत आपके लिए बोतल बनकर बाजार में गई है। तो बोतल उठाइए औरो उसमें मल्लिका के 'कर्व' को महसूस कीजिए। एक चीज याद आया, काहे नहीं मल्लिका को पानी का पीस एम्बेसेडर बना दिया जाए, तीसरा विश्व युद्ध का खतरे टल जाएगा।

का कहे, ई कर्व से पानी की प्यास तो बुझ जाएगी, लेकिन तन की प्यास औरो भड़क जाएगी! तो भाई साहब आप ही बताइए, इसमें मल्लिका की का गलती है? उसकी भी अपनी प्यास है भई। धन की प्यास बुझाने के लिए तन को बोतल बनवाने को अपराध थोड़े कहिएगा। आप तो बस खुद को भाग्यशाली मानिए कि आप प्यासे हैं, वरना मल्लिका आपकी मुट्ठी में काहे होती और कहां से आप महसूस करते 'कर्व' को!

प्रिय रंजन झा

Friday, April 21, 2006

नाम 'सोनिया' विहार औरो पानी मांगिए अमर सिंह से!

अक्सर ई कहा जाता है कि नाम में का रखा है, फूल को किसी भी नाम से पुकारिए फूल फूल ही रहता है! लेकिन हमको लगता है कि ई सब गुजरे जमाने की बात हो गई, अब तो नाम में ही सब कुछ रखा है।

टीवी पर एक ठो विगयापन आता है, जिसमें हरि शब्द का स्पेलिंग कुछ ऐसन समझाया जाता है- - एच फोर हिटलर, ए फोर एरोगेंट, आर फोर रास्कल औरो आई फोर इडियट। अब आप कहिएगा, इसमें तो कुछो नहीं है, एक आदमी के नाम की स्पेलिंगे तो समझाया गया है, लेकिन ऐसन बात है नहीं। जिसको दिक्कत होना है, उसको होना है, आप कुछ नहीं कर सकते। तभिए न जॉब वेबसाइट के ई परचार को देखकर हरि नाम के एक ठो बचवा के बाप ने साइट पर केस कर दिया है औरो एक करोड़ हर्जाना मांगा है। जी हां, एक करोड़ मांगा गया है औरो आप कहते हैं कि नाम में कुछो नहीं रखा है।

अगर हम आपको ई कहें कि नाम के चक्कर में दिल्ली की जनता प्यासी मर रही है, तो आप नहीं मानिएगा, लेकिन सच यही है। का है कि दिल्ली सरकार करोड़ों टका लगाके जिस जल संयंत्र से दिल्ली की 'बड़ी प्यास' बुझाना चाह रही है, उसका नामे गलत रखा गया है-- सोनिया विहार जल संयंत्र। अब आप ही कहिए, एतना बड़का औरो वोट जुगाड़ू प्रोजेक्ट का नाम सोनिया गांधी के नाम पर रखिएगा औरो अमर सिंह व मुलायम सिंह से ई उम्मीद कीजिएगा कि उ इसको पानी सप्लाई करे, तो आप से बेसी बेवकूफ दुनिया में कौन हो सकता है? ई तो वही बात हो गई कि 'गांगुली फैंस क्लब' के उद्घाटन के लिए आप ग्रेग चैपल को बुलावा भेजें।

वैसे, दिल्ली में ऐसन बत्तीसों नाम आपको मिल जाएंगे, जो एकदमे गलत रखा गया है। डीडीए को ही लीजिए, दिल्ली डेवलपमेंट अथारिटी के बदले इसका नाम अगर दिल्ली डिस्ट्रक्टिव अथारिटी रखा जाता, तो बेसी सही रहता। काहे कि डीडीए ने दिल्ली को केतना डेवलप किया है, ई नहिए बताया जाए, तो बढ़िया रहेगा। पहले नगर निगम को लोग नरक निगम कहते थे, तो सामने वाला समझ जाता था कि मजाक किया जा रहा है, लेकिन आज एमसीडी, यानी दिल्ली नगर निगम को अगर आप दिल्ली नरक निगम कहिएगा, तो कोर्ट भी आप पर डिफेमेशन का केस चलाने की इजाजत नहीं देगा। काहे कि कोर्ट खुदे कह चुका है कि एमसीडी पर ताला लगा देना चाहिए।

वैसे, खुद सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में कम नहीं है। उसको अंग्रेजी पेपर में एससी लिखा जाता है, लेकिन हम जब पेपर में एससी देखता हूं तो हमको उसका मतलब 'सनकी कोर्ट' समझ में आता है। मतलब ऐसन कोर्ट, जो किसी मामले को पकड़कर महीनो उसी को मथता रहे औरो परिणाम तक पहुंचाने से पहिले कौनो औरो मामला में बिजी हो जाए। इसको सनकी नहीं तो औरो का कहिएगा?
इसी तरह सीपी यानी कनॉट प्लेस को कंजस्टेड प्लेस कहना बेसी बढ़िया होगा। यूं तो डीयू यानी दिल्ली यूनिवर्सिटी को डैमेज यूनिवर्सिटी कहना ही बेसी शोभता है। काहे कि दिनोंदिन उ बर्बादे हो रहा है। सीपी के बगले में बारखम्बा है। उसका नाम सुनकर हमरा एक मित्र वहां बारह ठो खम्भा तलाश रहा था, लेकिन उसे का पता कि गालिब की समाधि को मूत्रालय बना देने वाले हम धरोहर-प्रिय नागरिकों के देश में कोई धरोहर ढूंढना बुड़बकी है।

दिल्ली जल बोर्ड को डीजेबी कहा जाता है, लेकिन जिस तरह से दिल्ली वालों का गला पानी के लिए सूखता रहता है, उसे देखके तो इसे डेड जल बोर्ड, यानी मृत जल बोर्ड ज्यादा बेहतर होगा। इसी तरह राजधानी की पुलिस अपने को डीपी लिखती है। वैसे तो इसको दिल्ली पुलिस पढ़ा जाता है, लेकिन इसे डिस्ट्रक्टिव पुलिस पढ़ना बेसी सही होगा। काहे कि अपराधियों को पकड़ने की आशा आप उनसे कर नहीं सकते, लेकिन डिस्ट्रक्शन का काम देकर देखिए उ केतना तेजी से करती है। प्रदर्शनकारियों पर उनसे लाठी चलवाकर देख लीजिए, सीलिंग के लिए दुकान बंद करवाकर देख लीजिए औरो अवैध निर्माण गिरवाने में उनसे मदद लेकर देख लीजिए, काम एकदम चोखा होगा कि आप भी आश्चर्य करेंगे!
प्रिय रंजन झा

Friday, April 14, 2006

चढ़ गया बेताल गाछ पर

लीजिए, आरक्षण का बेताल एक बेर फेरो गाछ पर चढ़ गया। अब हमरे समझ में ई नहीं आता है कि जब ई संभलता नहीं, तो नेता सब इसको छेड़ता क्यों है! हमको तो लगता है कि 'एक डेग आगे, दो डेग पीछे चलने' में हम सब एतना माहिर हो गए हैं कि अपने ही घर में आग लगाने से पहिले परिणाम के बारे में हम एको बार सोचते नहीं हैं।

अब देख लीजिए, सब कुछ ठीके- ठाक न चल रहा था कि लगे नेता सब गुलाटी मारने। हमको तो ई नेता सब शनि देव का दूत लगता है-- देश का भला होते नहीं देख सकता। जैसने लगेगा कि बिना उसके कुछ किए भी देश विकास के एक्सप्रेस रोड पर दौड़ रहा है, टायर पंचर करने के लिए उ एक लाइन से सौ ठो कांटी रोड पर ठोंक देंगे। लीजिए, अब आप करते रहिए विकास! आपके पास दो ठो बढ़िया इंस्टीच्यूट हुआ नहीं कि लगे थे आप ऐंठने- - विश्वस्तरीय संस्थान है, नॉलेज की खान है, देश की शान है... औरो पता नहीं क्या क्या गलतफहमी हो गई थी आप लोगों को। पांच ठो आईआईएम और आईआईटी नहीं हो गया, समझने लगे थे कि देश ब्रिटेन औरो अमेरिका हो गया। अरे, आपको समझना चाहिए था कि ब्रिटेन औरो अमेरिका में भारतीय नेता जैसन जीव नहीं पैदा होते, इसलिए वहां केम्ब्रिज औरो मेसाचुएट्स जैसन संस्थान है। अगर वहां भी ऐसन जीव पैदा होता, तो केम्ब्रिज औरो मेसाचुएट्स पटना औरो लखनऊ विश्वविद्यालय जैसन सड़ रहा होता।

जैसन आप गलतफहमी के शिकार हैं, वैसने ई नेता सब भी हैं। आखिर उ लोग भी अपने को देश का भाग्य विधाते न समझते हैं। वैसे, उ भाग्य विधाता तो हैं ही, देश के विकास में उनका योगदान भले कुछो नहीं हो, लेकिन विनाश में तो उ पूरा-पूरा योगदान करवे करते हैं।

वैसे, आरक्षण जैसन समस्या का एक ठो बढ़िया विकल्प हमरे पास है। चलिए आपको भी बता ही देता हूं। का है कि आश्चर्यजनक रूप से एक्कीसवीं शताब्दियों में भगवान का अस्तित्व कायम है औरो मजबूरी में लोग उसको सृष्टिकर्ता मान लेते हैं। तो काहे नहीं कुछ ऐसन किया जाए कि भगवान को मजबूर किया जाए कि उ मानव उत्पादन वाला अपना फैकटरी में जातिगत कोटा लागू कर दें-- फारवर्ड में मात्र पांच परसेंट काम करने वाला दिमाग फिट किया जाए और बैकवार्ड में हंडरेड परसेंट काम करने वाला दिमाग। सवर्णों के पास दिमागे नहीं होगा, तो पढ़ेगा क्या! और पढ़वे नहीं करेगा, तो आईआईटी औरो आईआईएम जैसन परीक्षा देगा कैसे? और जब परीक्षे नहीं देगा, तो आरक्षण का झंझटे खतम। जब फारवर्ड पढ़ेगा नहीं, तो सब नौकरी बैकवार्डे को न मिलेगा। तब आजादी के पहिले से लेके अभी तक के नेता सब के सपना एके झटका में सच हो जाएगा।

ई बात तो आप भी सुने होंगे न कि अपराध मिटाना है, तो उसके स्त्रोत पर चोट कीजिए। यही बात यहां भी लागू होती है। आरक्षण का झंझट जड़ से खतम करना है, तो भगवान के यहां दिमाग का कोटा लागू करवा दीजिए। देखिए, अगर दिमाग होगा, तो लोग उसका उपयोग करेगा ही और उपयोग करेगा, तो ज्यादा नंबर लेके नौकरी और कॉलेज पर कब्जा करवे करेगा। अब हर कोई भारतीय नेता तो है नहीं कि दिमाग रहते हुए भी उसका उपयोग न करे!

प्रिय रंजन झा

Wednesday, April 12, 2006

सुंदरता की कीमत भुगतिए

खूबसूरती जेतना बढ़िया चीज है, ओतना ही महंगा भी। विश्वास नहीं हो, तो दिल्लिये को देख लीजिए, सुंदर बनने के चक्कर में केतना भारी कीमत चुकाना पड़ रहा है इसको। खुद तो सुंदर बन रही है, लेकिन दिल्लीवाले भीख मांगने के लिए कटोरा का जुगाड़ कर रहे हैं।

हमको तो दिल्ली ऐसन नबकी दुल्हन लगती है, जिसके ब्यूटी पार्लर के खरचा से बेचारे घरवाले के सामने भूखों मरने की नौबत आने वाली है। आखिर एक दुकान बंद होगी, तो बीस लोगों के पेट पर लात पड़ेगी भाई! ऐसे में हमरे समझ में ई नहीं आता कि ई सब हो किसके लिए रहा है। अगर अस्सी प्रतिशत दिल्ली उजड़ जाएगी और आधा से बेसी दुकान बंद, तो दिल्ली में रहबे कौन करेगा? तब कॉमनवेल्थ गेम में भले ही दिल्ली चकाचक दिखे, लेकिन गेम देखने वाला कोयो नहीं होगा और जो होगा भी, उहो मरियल दिखेगा- कुपोषित औरो कुरूप - एकदम सोमालिया वासी जैसे। खैर, सबसे खुश भिखमंगों का ठेकेदार होगा, क्योंकि कॉमनवेल्थ गेम जैसे मेले में कमाने के लिए उसे कुछ और भिखारी मिल जाएंगे।

जो भीख नहीं मांगेगा, उ दिल्ली छोड़ देगा और इससे सबसे बेसी खुश होंगी शीला दीक्षित। आखिर दिल्ली की दुर्दशा के लिए उ बाहरी लोगों को जिम्मेदार जो मानती हैं। अब ई बात अलग है कि जहां अवैध निरमाण के वास्ते खुद मुख्यमंत्री को नोटिस मिला हो, उस राज्य में भला बाहरी आदमी को अव्यवस्था फैलाने की का जरूरत है?

आप ही सोचिए, चकाचक मेट्रो स्टेशन औरो फ्लाई ओवर के सामने में खड़े भिखमंगों की फौज कैसन दिखेगी और विदेशी मेहमानों का रिएक्शन का होगा? तब शायद कोर्ट को भी यह अहसास हो कि इससे बढ़िया तो बदरंग दिल्ली थी। बेसी सुंदर बनाने के चक्कर में बेकारे हमने इसका इज्जत उतार दिया।
वैसे, हमको तो लगता है कि बेसी सुंदर दिखने के चक्कर में इज्जत का उतरना तय ही होता है। अब देख लीजिए, बम्बे फैशन वीक में उ खूबसूरत मॉडलों के साथ का हुआ? भरी सभा में एक की चोली सरक गई, तो दूसरी की स्कर्ट फट गई। अब देह की ऊंचाई-निचाई के एक-एक इंच को झलकाने के लिए बेताब रहिएगा, तो ऐसने न कपड़ा फटेगा औरो इज्जत उतरेगा! कोर्ट भी नहीं चाहता कि दिल्ली का एको इंच गंदा दिखे, इसलिए न उ लोगों को भिखारी बना रहा है। बहुत सीधा फंडा है, सुंदरता की कीमत बेइज्जत होकर चुकाइए और मुगालते में जीइए कि आप बहुते सुंदर हैं!

वैसे, सुंदरता के मुगालते में तो आप भी जी रहे हैं और इसकी कीमत बेइज्जत होकर चुका रहे हैं। बेचारी यमुना आपके सौंदर्यबोध के चलते नाला बन गई है और आप पानी के लिए ऊपी के हाथों बेइज्जत हो रहे हैं। आप सुंदर दिखने के लिए जेतना अधिक मेहनत करते हैं, यमुना ओतना अधिक परदूषित होती है। भोर में दांत चमकाने के बहाने टन के हिसाब से पेस्ट का केमिकल यमुना में बहाते हैं, तो गोरा बनने के लिए देह में बेहिसाब साबुन घिसते हैं। अब चमकने के लिए एतना केमिकल परयोग करेंगे, तो उसको पीने वाली यमुना नाला ही बनेगी ना! और जब यमुना नाला बनेगी, तो आपका गला ऐसे ही सूखता रहेगा और ऊपी आपकी इज्जत उतारता रहेगा। तो आप भी सुंदर बनते रहिए और उसकी कीमत ऊपी से पानी की भीख मांगकर चुकाते रहिए।
Article: PRJ

Tuesday, April 11, 2006

खुश रहना है तो रोकर देखिए

आपने हास्य चिकित्सा या संगीत चिकित्सा के बारे में तो सुना होगा, लेकिन क्या रोकर खुद को तनाव से मुक्ति दिलाई जा सकती है? रोकर मन का भार हल्का कर लेने के फार्मूले को अब थेरेपी के रूप में प्रयोग किया जा रहा है. जापान में वीपिंग थेरेपी तेजी से लोकप्रिय हो रही है।

लोग रोकर तनावमुक्त और तरोताजा महसूस करते हैं। रोने से व्यक्ति की कुंठाएं और तनाव आंसुओं में बह जाता है। रोने के समय व्यक्ति खास तरह के आनंद का अनुभव करते हैं। असाही शिंबुन अखबार ने 1858 लोगों पर इस थेरेपी को लेकर यह सर्वे कराया। एक 34 वर्षीय व्यक्ति ने कहा कि जब से उन्होंने यह प्रयोग अपने जीवन में अपनाया है, वे अधिक खुश होने लगे हैं।