Thursday, March 29, 2007

ब्लॉगर्स के भरोसे नेट पर हिंदी

सरकारी बैसाखी पर भले ही भाषाएं फलती-फूलती हों, लेकिन साइबर स्पेस पर हिंदी ने आम लोगों की बदौलत अपने पैर पसारे हैं। और यहां आम लोग मौजूद हैं अपने-अपने ब्लॉग के साथ, जिन्हें यहां चिट्ठा नाम दिया गया है। जी हां, इंटरनेट पर मौजूद हिंदी कंटेट में सबसे बड़ा योगदान हिंदी में ब्लॉग लिखने वाले ब्लॉगरों का ही है, जिन्हें यहां चिट्ठाकार का नाम दिया गया है। ये चिट्ठाकार हर मुद्दे पर अपनी बेबाक राय रखते हैं, उसे दुनिया के साथ शेयर करते हैं, अपनी मन की भड़ास निकालते हैं, दूसरे ब्लॉगरों को दुलारते-पुचकारते हैं, उनकी खिंचाई करते हैं और जो सबसे बड़ी बात वे करते हैं, वह है हिंदी को समृद्ध करने की।

ये ब्लॉगर्स ही हैं, जिनकी बदौलत आज इंटरनेट पर हिंदी पहले की तरह दरिद्र नहीं है। हां, आपको अपेक्षित क्वॉलिटी वाली बात भले ही वहां नहीं मिले, लेकिन किसी भी चीज को सर्च करने पर खाली हाथ तो आप नहीं ही लौटेंगे। जाहिर है, यह 'कुछ नहीं' वाली स्थिति से तो बेहतर है ही। हिंदी ब्लॉगरों की दुनिया की एक बड़ी खासियत है, यहां के ब्लॉग्स के नाम। कुछ ब्लॉग्स के नाम तो इतने यूनीक हैं कि आप तुरंत उनके नाम का अर्थ जानने के लिए उत्सुक हो जाएं।

वैसे, हिंदी में ब्लॉगिंग का रास्ता इतना आसान भी नहीं रहा है। यह काम कितना कठिन रहा होगा, यह कोई उन लोगों से पूछे, जिन्होंने 'अभावों' के दिन में ब्लॉग लिखना शुरू किया था। तब स्थिति 'खुद लिखकर खुद ही पढ़ने' वाली थी, क्योंकि कोई सर्च इंजन हिंदी ब्लॉग को ढूंढकर पाठक तक पहुंचा नहीं पाता था। ऐसे में विश्व भर में फैले हिंदी प्रेमी भारतीयों, जिनमें आईटी सेक्टर से जुड़े लोगों की संख्या ज्यादा है, ने एक ऐसा प्लेटफॉर्म डिवेलप करने की पुरजोर कोशिश की, जहां हिंदी के तमाम पोस्टों को जमा किया जाए।

शुरुआती लड़खड़ाहट के बाद हिंदी की ब्लॉग यात्रा एक ऐसे ही प्लेटफॉर्म 'नारद' को डिवेलप करने के बाद संभलती चली गई। इसने उन तमाम कठिनाइयों को खत्म करने की कोशिश की, जो नेट पर हिंदी के आगे बढ़ने में बाधा खड़ी कर रही थी। मसलन, इसने नए ब्लॉगरों को तकनीकी सहायता उपलब्ध करवाने के साथ-साथ विश्व भर के हिंदी ब्लॉगरों को एक प्लेटफॉर्म पर लाने के कोशिश की, ताकि लोगों को हिंदी के ब्लॉग पढ़ने के लिए साइबर स्पेस में यूं ही भटकना नहीं पड़े। जाहिर है, हिंदी ब्लॉग को आज की स्थिति में पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को जाता है, तो वह 'नारद' ही है। वास्तव में, यह एक ब्लॉग एग्रीगेटर साइट है, जो तमाम हिंदी ब्लॉगों की फीड का उपयोग कर उनकी पोस्ट एक जगह दिखाती है। जाहिर है, अगर कोई अनजान व्यक्ति हिंदी के ब्लॉग्स पढ़ना चाहता है, तो उसके लिए 'नारद' पर जाने से बढ़िया विकल्प कुछ भी नहीं।

दिलचस्प बात यह है कि इसका कोई व्यावसायिक स्वार्थ नहीं है और यह मूल रूप से चंद ऐसे हिंदी प्रेमी भारतीयों की मेहनत का नतीजा है, जो भारत ही नहीं, भारत से बाहर रहकर भी अपनी मिट्टी से जुड़े हुए हैं। वास्तव में इन लोगों ने तन, मन, धन से हिंदी के विकास के लिए काम किया है और वह भी नि:स्वार्थ भाव से। यह हिंदी को लेकर लोगों की दीवानगी ही है कि विश्व के अलग-अलग जगहों पर रहने के बावजूद 'नारद' के शुरुआती कर्ताधर्ता रहे यूएसए बेस्ड पंकज नरूला व कुवैत बेस्ड जितेंद्र चौधरी ने इतना बड़ा प्लेटफॉर्म विकसित किया। फिर इसे मजबूत करने में देबाशीष सहित कम से कम आठ लोग और हैं, जो अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं और हिंदी ब्लॉगरों की किसी भी समस्या के समाधान के लिए तैयार रहते हैं।

वैसे, हिंदी ब्लॉगरों के सामने सबसे बड़ी समस्या तकनीक की ही है, क्योंकि अभी हिंदी में काम करने में सहायक सॉफ्टवेयर्स की पहुंच हर जगह नहीं हुई है और फिर यहां सारा काम यूनीकोड के भरोसे है। लेकिन अच्छी बात यह है कि अगर आप ब्लॉर्ग्स की इस दुनिया में जाकर अपनी समस्या बताएं, तो एक साथ कई हाथ आपकी मदद में आगे आ जाएंगे। जाहिर है, यह सब यहां संभव हुआ है उन लोगों के भरोसे, जिन्हें दूसरे की मदद में मजा आता है।

इसमें कोई शक नहीं कि साइबर स्पेस में हिंदी की पैठ लगातार बढ़ती जा रही है और इसका सबसे बड़ा प्रमाण है ब्लॉग्स और इनके पाठकों की बढ़ती संख्या। सिर्फ नारद पर एक हफ्ते में औसतन छह हजार लोग आते हैं और यहां लगभग छह सौ ब्लॉग्स सक्रिय हैं, जिसमें हर तरह के ब्लॉग्स शामिल हैं। इसे देखकर आप कह सकते हैं कि आज हिंदी ब्लॉग जगत हर तरह से परिपूर्ण है। यहां ह्यूमर है, साहित्य है, रोजमर्रा की घटनाओं पर बहस है, सामाजिक-राजनीतिक चर्चा है, देश के हर क्षेत्र की खबर है और जो सबसे बड़ी बात है, वह है कि यहां हिंदी का एक बड़ा संसार है, जिसमें दुनिया भर में फैले हिंदी जानने वाले लोग हैं।

दिलचस्प बात यह है कि हिंदी ब्लॉग जगत में हर साल अवॉर्ड भी दिए जाते हैं। ऐसे ही एक 'इंडीब्लॉगिज अवॉर्ड' में इस साल सर्वश्रेष्ठ हिंदी ब्लॉगर का खिताब जीता है कनाडा बेस्ड समीर लाल ने। यानी हिंदी सही मायने में ग्लोबल लैंग्वेज है, कम से कम हिंदी ब्लॉग जगत को देखकर तो आप यह कह ही सकते हैं!

साभारः नवभारत टाइम्स

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अब लीजिए असली वर्ल्ड कप का मजा!!

टीम इंडिया वर्ल्ड कप से बाहर हो गई तो क्या आप मैच देखना छोड़ देंगे? जी नहीं, ऐसा मत कीजिए। अब हर मैच दूसरे से बढ़िया होगा। क्रिकेट के शौकीनों के लिए अब वाकई दिलचस्प स्थिति है। अब महज भारतीय टीम के चौके-छक्के चाहने वालों के लिए बेशक कुछ न हो लेकिन क्रिकेट के सच्चे प्रेमियों के लिए वाकई बहुत कुछ है। फिर भारतीय टीम नहीं है तो कोई टेंशन भी नहीं है।

क्रिकेट खासकर वन डे क्रिकेट की खूबसूरती उसकी अनिश्चितता में है। यह जितना अनिश्चित होगा, गेम उतना ही दिलचस्प होगा। याद कीजिए वे दर्जनों मैच जिनमें आखिरी समय तक यह पता नहीं लग रहा था कि जीतेगा कौन। याद कीजिए ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका का वह ऐतिहासिक मैच जिसमें 434 का वर्ल्ड स्कोर महज साढ़े तीन घंटे तक ही रहा और कहीं कमजोर माने जाने वाली साउथ अफ्रीकी टीम ने वह मैच कैसे जीत लिया। याद है वह सीरीज जिसमें न्यूजीलैंड ने ऑस्ट्रेलिया के छक्के छुड़ा दिए थे। और इसी वर्ल्ड कप का वह मैच याद कीजिए जिसमें बिल्कुल नई टीम ने पाकिस्तान की धुरंधर टीम को पटकनी दे दी। यही तो है क्रिकेट की शानदार अनिश्चितताएं जिसमें अगले पल के बारे में कोई कुछ नहीं बात सकता। यह उन तमाम दूसरे खेलों से अलग है जहां आप पक्के तौर पर कुछ कह सकते हैं।

इसी वर्ल्ड कप में कई ऐसे नए खिलाड़ी दिखे जिन्होंने अपने खेल से समां बांध दिया। देखने वाले उन्हें देखते रह गए। कई अनजान खिलाड़ी अपनी प्रतिबद्धता से खेल को समृद्ब कर गए। नई टीमों के कई खिलाड़ियों ने शानदार करतब दिखाए। और अब तो बिसात बिछ चुकी है। कई रिकॉर्ड बनेंगे, कई खिलाड़ियों के कारनामे देखने को मिलेंगे और कुछ मैच ऐसे भी होंगे जिनमें आपको दांतों तले उंगली दबानी पड़ सकती है।

तो बस भूल जाइए टीम इंडिया को और आनंद लीजिए इस वर्ल्ड कप के शानदार मैचों का।

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Saturday, March 17, 2007

लाजवाब कार्टून!!!


साभारः हिंदुस्तान