Monday, November 28, 2005

मूर्ति की आंखों से बहते खून के आंसू

Virgin Mary statue cries tears of blood

इन दिनों वर्जिन मैरी की इस तस्वीर की खासी चर्चा हो रही है. वियतनाम के कैथोलिक चर्च में वर्जिन मैरी की मूर्ति की आंख से खून के आंसू बह रहे हैं. कहा जा रहा है कि पिछले सप्ताह इस मूर्ति की आंखों से निकल रहे आंसूओं को पोंछ दिया गया था, लेकिन फिर से आंखों से आंसू से बहने लगे. अब इस चमत्कार को देखने के लिए वहां लोगों का तांता लगा हुआ है.

Thursday, November 24, 2005

खतम हो गया 'भालू राज'

तो लीजिए, जनाब हम फिर से आ गया हूं मैदान में। अब आप ई पूछिएगा कि अब तक हम कहां थे, त सुनिए- - वैसे, तो लोकतंत्र के असली शेर हमहीं जनता हैं, लेकिन का है कि जंगलराज में सब उल्टे न होता है, इसलिए हम बकरी बन गए थे औरो नंदन कानन में भालू राज था। अब जाके जब भालू राज खतम हुआ है, त हम मांद से बाहर आ गया हूं।

का कहे, हम शेर थे, तो मांद में काहे दुबके हुए थे? अरे, ई सब समय का फेर है। हमको थोड़े ई पता था कि हमरे बल पर सत्ता में आया भालू एतना मजबूत हो जाएगा कि हमको बिलाड़ो नहीं बूझेगा। और फिर कमजोर तो हम इसलिए भी हो गए थे, क्योंकि भालू राज में हम सबका चारा कोयो और खा गया। अब आप ही बताइए, खाने नहीं मिलेगा, तो शेरे रहने से का आप भालू को हरा दीजिएगा?

उ तो धनवाद दीजिए सुधरल इलेक्शन कमिशन को कि हम सबको भोट देने का मौका मिला। नहीं तो इहो बेर ईवीएम से जिन्नै न निकलता! अब ई तो भलूए का चमत्कार था कि जिन्न चिराग के बदले ईवीएम से निकलने लगा था। अब आप ईहो बूझ गए होंगे कि हुंआ बच्चा सब के खिस्सा-कहानी से जिन्न-विन्न काहे गायब हो गया और बच्चा सब दिल्ली- कानपुर के फैकटरी में क्यों मजदूर हो गया। वही जिन्न न मदद करता था भलूआ के, लेकिन का है कि इस बार राव ने जिन्न को घाव कर दिया आ उ ईवीएम में घुसिए नहीं सका। अब आपको ई त पता चलिए न गया होगा कि भालू एतना निक्कमा था, त एतना साल से शासन कैसे कर रहा था!

का है कि दुर्भाग अब तक नंदन कानन का पीछे नहीं छोड़ रहा था। नहीं त बरिस भर पहिले न हम आजाद हो जाते। उ तो भालू को एगो खूंटा सिंह मिल गया और भालू राज एक साल और खिंच गया। और आप तो जानते ही हैं कि खूंटा मजबूत हो, तो बछड़ा केतना उछलता है, बिना ई बूझे कि उसको फिर से धरती पर उतरना है! का है कि उछलने के बाद आना तो आपको धरतिए पर है, हवा में तो रहिएगा नहीं और जेतना जोर से उछलिएगा, जमीन पर ओतना ही जोर से गिरएगा भी। त फिलहाल भालू जमीन सूंघ रहा है और हम आ गया हूं अपनी जगह पर। अब आप भी चैन से बदाम टूंगिए औरो हमर बेहतरी के कामना कीजिए, तब तक हम तनि घूम-घाम कर आता हूं। अभी तो हम शेर बना ही रहूंगा, जब तक कि हमरा राज खतम नहीं हो जाता।

लेखः प्रिय रंजन झा

Saturday, November 19, 2005

सलाह

कभी-कभी दूसरों की सलाह मानना कितना भारी पड़ जाता है इसकी एक बानगी देखिए...

एक आदमी सब्जी बेच कर अपना गुजारा चलाता था। सौभाग्य से उसकी दुकान खूब चल निकली। एक दिन एक ग्राहक आया और बोला, वैसे तो तुम्हारी दुकान अच्छी चलती है, लेकिन अच्छा हो कि तुम एक बोर्ड बनवा लो। आजकल विज्ञापन का जमाना है, बिक्री बढ़ जाएगी। उसने सलाह मान ली और किसी पढ़े-लिखे ग्राहक से पूछ कर बोर्ड पर लिखवा दिया- यहां पर ताजी सब्जियां मिलती हैं। बोर्ड दुकान के बाहर लटका दिया गया।

अगले दिन ही एक अन्य ग्राहक बोला, 'वाह! बोर्ड लगवा लिया, अच्छा है, लेकिन यह गलत है।' सब्जी वाला चौंका, पूछा, क्या? ग्राहक बोला, तुम्हारी कहीं और भी ब्रांच है? उसने कहा, नहीं। तो फिर 'यहां पर' क्यों लिखवाया। 'ताजी सब्जियां मिलती हैं' पर्याप्त है। सब्जी वाला बोला, इसमें क्या, अभी इसको पुतवा देते हैं। उसने पुतवा दिया। अगले दिन दूसरा ग्राहक आया और बोला, ये तुमने बोर्ड में क्या लिखवा दिया?' ताजी सब्जियां मिलती हैं।' इससे लगता है कि तुम अब तक हमें बासी सब्जियां बेचते थे। तुम्हारे सारे ग्राहक चले जाएंगे। सब्जी वाले ने घबरा कर 'ताजी' पुतवा दिया। अब सिर्फ 'सब्जियां मिलती हैं' लिखा रह गया।

फिर एक दिन एक ग्राहक आया और बोर्ड को पढ़ने लगा। बाद में बोला, तुम पहले कुछ और बेचते थे क्या? दुकानदार ने कहा, नहीं! मेरी तो हमेशा से सब्जी की ही दुकान रही। ग्राहक ने कहा, तुम्हारे बोर्ड से ऐसा भ्रम होता है। लिखा है 'सब्जियां मिलती हैं।' यानी पहले कुछ और मिलता था, अब सब्जियां मिलती हैं। सब्जी वाले ने घबराकर 'सब्जियां' पुतवा दिया। फिर ग्राहक पढ़ कर हंसने लगे 'मिलती हैं!' अरे भाई क्या मिलती हैं।' सब्जी वाले ने उसको भी पुतवा दिया। अब खाली बोर्ड था। लोगों ने कहना शुरू किया, भाई खाली बोर्ड को क्यों लटका रखा है? या तो कुछ लिखवा लो या उतार फेंको। सब्जी वाले ने अंतत: उस बोर्ड को उतार ही दिया। वह सोचने लगा, कहां झंझट में फंस गया लोगों की सलाह सुन-सुनकर। इसलिए दूसरों की सलाह पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं करना चाहिए।

साभारः एनबीटी

Wednesday, November 16, 2005

Miss Universe on India AIDS tour


Miss Universe 2005 of Canada, Natalie Glebova, poses for media representatives during an AIDS awareness campaign in New Delhi, 15 November 2005. Glebova arrived in india for an AIDS awareness Tour of India and will visit the Indian cities of Mumbai, Chennai, Bangalore, Hyderabad and Kochi from 14 to 26 November.

Pic of the day

Monday, November 14, 2005

राज्यों की सांस्कृतिक झलक दिखाता मेला


India International Trade Fair 2005

हर साल प्रगति मैदान में लगने वाला व्यापार मेला दिल्ली के मुख्य आकर्षण है. न सिर्फ दिल्लीवासियों के लिए बल्कि देश भर के लोगों में यह खासा लोकप्रिय है. पिछले कुछ सालों में व्यापार मेले का आकर्षण काफी बढ़ गया है. 14 नवम्बर से शुरू होकर दो सप्ताह तक चलने वाले मेले में लोगों का हुजूम बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं.
देश भर के अलग-अलग राज्यों का एक ही जगह पर एकत्रित होना जहां हमारे देश की सांस्कृतिक झलकी दर्शाता हैं, वहीं यह इस मेले का मुख्य आकर्षण भी है. हर साल मेले में हिस्सा लेने आए विभिन्न राज्यों के पैवेलियनों को सजावट दर्शकों को अपनी ओर खींचती है. लेकिन इस बार मेले में दर्शकों को राज्यों के पैवेलियनों की विशिष्ट सांस्कृतिक छवि देखने को मिलेगी.
व्यापार मेले में भाग ले रहे राज्यों ने अपनी विशिष्ट पहचान से दर्शकों को रूबरू कराने और उन्हें आकर्षित करने के लिए अपने अपने मंडपों को अनूठे अंदाज में सजाया है। मेले में कहीं आपको संसद भवन दिखाई पड़ेगा तो कहीं आप देख सकेंगे फतेहपुर सीकरी का बुलंद दरवाजा या आमेर के किले का गणेशपोल।
भारतीय व्यापार सवंर्द्धन संगठन द्वारा आयोजित 25वें अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले के रजत जयन्ती वर्ष का थीम 'ऊर्जा और संचार' रखा गया है. इसी को देखते हुए अधिकांश राज्यों ने अपने क्षेत्रों में हुई प्रगति को दर्शाने का प्रयास किया है.
इस बार मेले में फोकस राज्य के रूप में शामिल होने वाले पश्चिम बंगाल ने अपने मंडप पर बडे़ अक्षरों में लिखा है 'लुक ईस्ट'।
मेले में बाहर से आने वाले दर्शक ने अगर संसद भवन को न देखा हो तो दिल्ली के मंडप की ओर अवश्य आकर्षित होगा। दिल्ली के मंडप को संसद भवन का रूप दिया गया है।
उत्तर प्रदेश ने अपने मंडप को फतेहपुर सीकरी के बुलंद दरवाजे से निखारा है।
सभी राज्यों ने मेले की थीम का विशेष ध्यान रखा है और अपने-अपने राज्यों में ऊर्जा एवं संचार के क्षेत्रों में हुई प्रगति को खासतौर से दर्शाया है.
इन सब के अलावा मेले में राज्यों के हस्तकलाओं की ओर दर्शकों रुझान अधिक होता है.

Friday, November 11, 2005

ये जीत है या हार!!!

CBI brought underworld don Abu Salem and his girlfriend Monica Bedi to Mumbai on Friday 11 November 2005.

कुख्यात अबू सलेम को आज भारत लाने वाली खबर मुंबईवासियों के लिए जितनी अहम है, उतनी ही दिल्लीवालों के लिए भी। चौंकिए मत! वह इसलिए क्योंकि अपराध के मामले में दिल्ली मुंबई की राह पकड़ता जा रही है। जहां इक्का-दुक्का अपराध यहां रोज होते हैं, वहीं हाल ही में सीरियल बम ब्लास्ट से भी पिछले दिनों दिल्ली दहल चुकी है।

अबू सलेम के सिर पर 1993 के मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट का इल्जाम है, तो आज 12 साल बाद दिल्ली में हुए हालिया सीरियल बम ब्लास्ट के अपराधियों का अभी तक पता नहीं चल पाया है। सच पूछिए, तो दिल्ली का यह कांड दहशतगर्दां द्वारा बंदूक के बदले शुरू हुई बारूदी लड़ाई की ही एक कड़ी है और हम अबू सलेम को इसके मार्गदर्शकों में से एक मान सकते हैं। तो क्या दिल्ली में दहशत फैलाने वालों पर भी कानून का शिकंजा 12 साल बाद कसेगा?

नहीं, यह अनर्थ नहीं होना चाहिए। यह देश के हित में कतई नहीं है। वैसे, सच तो यही है कि अपने देश में अपराध भी इसलिए ज्यादा हो रहे हैं, क्योंकि यहां के कानून व न्यायिक प्रक्रिया में तमाम तरह की खामियां हैं और जिन्हें दूर करने के लिए र्प्याप्त प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।

Thursday, November 10, 2005

समय प्रबन्धन की अनूठी मिसाल

Mumbai's Dabbawallas

समय प्रबन्धन तो कोई इनसे सीखें, न तो कोई डिग्री, न डिप्लोमा और न कोई क्लास लेकिन मुंबई के डिब्बावालों का समय प्रबन्धन गजब का है। आपके ऑफिस में लंच का समय हुआ नहीं कि उसके पहले आपका डिब्बावाला आपके खाने का डिब्बा लिए आ पहुंचा और तो और ब्रिटेन के युवराज चार्ल्स और उसी देश की सबसे बड़ी विमानन कंपनी एटलांटा वर्जिनिया के प्रमुख रिचर्ड भी उनके समय प्रबन्धन के कायल हैं।
रोज करीब दो लाख से ज्यादा लोगों को खाने का डिब्बा पहुंचाने वाले डिब्बावालों की खास पहचान है सफेद या लाल कमीज, धोती और सिर पर गांधी टोपी। कम से कम पच्चीस किलोमीटर तक की दूरी तय कर पांच हजार से ज्यादा डिब्बावाले दफ्तरों में काम करने वाले बाबूओं को घर का बना खाना खिला देते हैं। खाना बनाने के काम में पच्चीस हजार पुरूष और महिलाएं लगे हुए हैं।
मजाल कि डिब्बों में हेर फेर हो जाए या किसी का डिब्बा किसी और को मिल जाए। डिब्बों की पहचान के लिए रंगों का कोड होता है। डिब्बों की छंटाई की पद्धति डाक विभाग की तरह होती है। पहले रंगों के हिसाब से छंटाई और कोड के हिसाब से उसे सही जगह तक पहुंचाना।
डिब्बों को उनके खरीददारों तक पहुंचाने के लिए डिब्बावालों को लोकल ट्रेन साइकिल तथा हाथ गाड़ी का भी इस्तेमाल करना होता है। लंच के समय डिब्बा देना और बाद में उसे दूसरे दिन पहुंचाने के लिए ले जाना। मतलब रोज चार लाख से ज्यादा डिब्बों का फेरबदल। इनके टाइम मेंनजमेंट के आगे तो बड़े-बड़े मेंनेजमेंट गुरुओं के मंत्र फीके नजर आते है, तभी तो अब डिब्बेवालों के प्रबंधन गुरु को सीखने के विदेशों से लोग आने लगे हैं।

Wednesday, November 09, 2005

Picture of Akshardham temple

Beautiful night view of Akshardham Temple, New Delhi.

कला व स्थापत्य की अनुपम कृति है अक्षरधाम

Swaminarayan Akshardham, a cultural monument on the banks of the Yamuna in New Delhi, was inaugurated and dedicated to the nation by President A P J Abdul Kalam on Nov 6, 2005.

दिल्ली की सांस्कृतिक स्मारकों में प्राचीन भारतीय कला व स्थापत्य की अनुपम कलाकृति अक्षरधाम मंदिर का नाम भी जुड़ गया है. पूर्वी दिल्ली में यमुना किनारे बनाए गए इस भव्य स्मारक को 6 नवम्बर को माननीय राष्टपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम ने देश को समर्पित किया.
100 एकड़ में फैले हल्के गुलाबी रंग के रेतीले पत्थरों और सफेद संगमरमर से बना है जिसके भीतर स्वामी नारायण की विशालकाय मूर्ति रखी है. यह मंदिर भारतीय सांस्कृतिक कला की अद्भूत मिसाल पेश करता है. इस मंदिर की भव्यता और खूबसूरती देखते ही बनती है.

इसकी भव्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 100 एकड़ की विशाल क्षेत्र में बने मंदिर की इमारत 141 फुट ऊंची, 370 फुट लंबी है और 316 फुट तक फैली है. इसकी खासियत है कि इसकी इमारत पत्थर के 148 हाथियों की पीथ पर टिकी हुई है. यही नहीं मंदिर में सैकड़ों खंभे और करीब हजारों देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों की पत्थर की मूर्तियां हैं.

मंदिर की भव्यता व खूबसूरती से दिल्लीवासी ही नहीं सभी अभिभूत हैं. इसकी भव्यता को देखकर राष्टपति कलाम ने तो यहां तक कहा कि ऐसा लग रहा है मानो मैं किसी दूसरे लोक में हूं. राष्टपति ने इसे अध्यात्म और समाज सेवा का उत्कृष्ट नमूना व धर्म और विज्ञान का अनूठा संगम बताया.
वैसे तो देश-विदेश में बने अक्षरधाम मंदिरों की स्थापत्य कला की अपनी एक अलग पहचान है. लेकिन दिल्ली का अक्षरधाम मंदिर इस मायने में और भी खास है चूंकि 45 विभिन्न देशों में बने करीब 650 मंदिरों में यह सबसे विशाल है. अक्षरधाम मंदिरों की यह विशेषता है कि इनके निर्माण में सीमेंट और धातु का प्रयोग नहीं किया जाता. रात में मंदिर की छटा में म्यूजिक फव्वारों से निकती वेद-मंत्रों की गूंज के साथ देखते ही बनती है.

एक ओर जहां मंदिर की खूबसूरती यहां आने वालों को अपनी ओर आकर्षित करती है, वहीं यह एक ज्ञान का केंद्र भी है. यही नहीं यहां आने वालों को वेद, गीता और पुराण शास्त्रों की जानकारी देने की भी पूरी व्यवस्था है.

तो कहना न होगा कि यह वाकई इतिहास, तकनीक, संस्कार व उच्च विचारों का अद्भूत नमूना है.

Saturday, November 05, 2005

रेत और पत्थर

दो दोस्त एक बार रेगिस्तान से गुजर रहे थे। रास्ते में उनके बीच बहस छिड़ गई और पहले दोस्त ने दूसरे को थप्पड़ मार दिया। दूसरे दोस्त ने बिना कुछ कहे रेत पर लिखा, आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने मुझे थप्पड़ मारा। यह लिखने के बाद दोनों फिर चल दिए। रास्ते में एक नदी आई। दूसरा दोस्त उसमें नहाने के लिए उतरा और डूबने लगा। पहले दोस्त ने तुरंत नदी में कूद कर उसकी जान बचा ली। इस बार दूसरे दोस्त ने पत्थर पर लिखा, आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने मेरी जान बचाई। यह देख पहले दोस्त ने उससे रेत और पत्थर पर लिखने का कारण पूछा। उसने उत्तर दिया, जब कोई कष्ट पहुंचाए तो उसे रेत पर लिखना चाहिए, ताकि क्षमा की हवा उसे मिटा सके। लेकिन अगर कोई सहायता करे तो उसे पत्थर पर लिखना चाहिए, जिससे आप हमेशा उस उपकार को याद रख सकें।
साभार: एनबीटी

Friday, November 04, 2005

अब पुरूषों के लिए गोरेपन की क्रीम

Fairness Cream for Men

Tall, Dark & Handsome एशियाई पुरूषों की तारीफ में आमतौर पर प्रयोग किया जाने वाला यह नुक्ता जल्द ही बदल कर Tall, Fair & Handsome होने वाला है. भारतीय मानसिकता की बात करें तो हमारे यहां आज भी खूबसूरती का एकमात्र पैमाना गोरेपन को माना जाता है. अब तक तो यह पैमाना स्त्रियों के लिए ही लागू था. इस बात की गवाही शादी के विज्ञापनों की पंक्तियां 'सुंदर, गौरी व पढ़ी-लिखी वधु की तलाश' वगैहर-वगैहर तथा सांवले रंग को निखारने वाले तमाम तरह के ब्यूटी प्रॉडक्ट देते हैं. लेकिन अब यही पैमाना पुरूषों पर भी लागू होने जा रहा है. भारतीय पुरूषों के आकर्षक व्यक्तित्व को उनके लंबे कद-काठी व सांवले रंग के कारण एक अलग ही पहचान मिली हुई थी. किंतु बाजारवाद की नजर में यह पैमाना अब और अधिक नहीं चल सकता. इसलिए इसे बदलने, पुरूषों की खूबसूरती निखारने और सांवले मर्दों को गोरा बनाने का इंतजाम कर दिया गया है. अब तक साबुन और क्रीम का बाजार स्त्रियों के लिए ही था, परंतु ब्यूटी प्रोडक्ट के बड़े मार्केट में मर्दों को भी शामिल कर लिया गया है. अब वह भी सुपर स्टार शाहरूख खान की तरह ब्यूटी सोप लक्स से अपनी खूबसूरती निखार सकते हैं व बेहिचक गोरेपन की क्रीम का इस्तेमाल कर सकते हैं. आखिर उन्हें भी सुंदर दिखना चाहिए.

Thursday, November 03, 2005

स्वाबलंबी बने

एक गरुड़ ने अपने बच्चे को पीठ पर बैठाया और मादा गरुड़ के साथ किसी सुरक्षित स्थान पर जाने का फैसला किया। दिन भर यात्रा करने और दाना चुगने के बाद यह परिवार अपनी मनपसंद जगह पर पहुंचा। वहाँ गरुड़ ने अपने बच्चे को समझाया कि अब वह बड़ा हो चुका है और खुद भी उड़ा करे। लेकिन आलसी होने की वजह से बच्चा हमेशा पिता की पीठ पर बैठकर ही यात्रा करता। गरुड़ अपने बच्चे के आलस को बड़ी सतर्कता से देखता रहा। उसे सबक सिखाने के लिए एक दिन गरुड़ ने उड़ते समय धीरे से अपने पंख खींच लिए। बच्चा गिरने लगा, पर थोड़ी देर में वह फड़फड़ा उठा और गिरते-गिरते बच गया। उसने उड़ने की आवश्यकता जान ली। शाम को घर लौटते हुए उसने अपनी मां से कहा, 'माँ, अगर मैंने आज समय पर पंख न फड़फड़ाए होते तो पिताजी ने बीच रास्ते में मुझे गिरा ही दिया होता। तब मादा गरुड़ ने मुस्कराते हुए कहा, 'बेटा, जो अपने आप नहीं सीखते और स्वावलंबी नहीं बनते, उन्हें सिखाने-समझाने का यही तरीका है।