Thursday, May 17, 2007

धर्मों के बीच लड़ाई का क्या काम

भटिंडा में सिखों व डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों के बीच का संघर्ष बेहद अजीब है। मानवता और विश्व बंधुत्व का संदेश देने वाले धर्मों और धर्मगुरुओं की जमीन कितनी पोली है, यह इस संघर्ष से साफ झलकता है।

यह बात बड़ी अजीब-सी लगती है कि धार्मिक गुरु अपने चेलों को पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक से डराकर अपनी सेवा तो करवा सकते हैं, पैसा तो बना सकते हैं, लेकिन मानव बनाने के लिए और इंसानियत दिखाने के लिए प्रेरित नहीं कर सकते।

चलिए मान लेते हैं कि सिखों को कंट्रोल करने के लिए कोई एक शख्स नहीं था, जिसकी बात मानकर सिख कंट्रोल में रहते, लेकिन डेरा सच्चा सौदा के गुरु तो इस स्थिति में हैं कि वे अपने अनुयायियों को सड़क पर न उतरने और अमन बनाए रखने के लिए प्रेरित कर सकें। लेकिन लगता है, जैसे उनकी भी रुचि टकराव में ही है। वैसे भी डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी तमाम तरह के विवादों और अपनी हिंसक कार्रवाइयों के चलते पहले भी सुर्खियों में रहे हैं, लेकिन किसी धार्मिक पंथ का इस तरह से हिंसक कार्रवाइयों में हिस्सा लेना उसकी बुनियाद और शिक्षा पर प्रश्न चिह्न खड़ा करता है।

इसी तरह सिख धर्म के गुरुओं ने भी अपने अनुयायियों से कभी यह नहीं कहा कि मेरी नकल करने वालों को तुम मटियामेट कर दो। वे तो धार्मिक सहिष्णुता और मानवता का संदेश देने के लिए ही पूजे जाते हैं। तो फिर आखिर वह कौन-सा वीक पॉइंट है, जिसने दोनों धामिर्क घटकों को इस संघर्ष के लिए उत्प्रेरित किया।

गौर करें, तो इस संघर्ष के दो ही कारण नजर आते हैं और वे हैं-- गुरुओं व धर्मों की घटती ताकत और नेताओं की अपने स्वार्थों को लेकर धर्म को हथियार बनाने की बढ़ती प्रवृति। और सच पूछिए तो इन्हीं दो बातों को ठीक कर भविष्य में इस तरह के टकराव को रोका जा सकता है।

Labels: , ,