Wednesday, April 12, 2006

सुंदरता की कीमत भुगतिए

खूबसूरती जेतना बढ़िया चीज है, ओतना ही महंगा भी। विश्वास नहीं हो, तो दिल्लिये को देख लीजिए, सुंदर बनने के चक्कर में केतना भारी कीमत चुकाना पड़ रहा है इसको। खुद तो सुंदर बन रही है, लेकिन दिल्लीवाले भीख मांगने के लिए कटोरा का जुगाड़ कर रहे हैं।

हमको तो दिल्ली ऐसन नबकी दुल्हन लगती है, जिसके ब्यूटी पार्लर के खरचा से बेचारे घरवाले के सामने भूखों मरने की नौबत आने वाली है। आखिर एक दुकान बंद होगी, तो बीस लोगों के पेट पर लात पड़ेगी भाई! ऐसे में हमरे समझ में ई नहीं आता कि ई सब हो किसके लिए रहा है। अगर अस्सी प्रतिशत दिल्ली उजड़ जाएगी और आधा से बेसी दुकान बंद, तो दिल्ली में रहबे कौन करेगा? तब कॉमनवेल्थ गेम में भले ही दिल्ली चकाचक दिखे, लेकिन गेम देखने वाला कोयो नहीं होगा और जो होगा भी, उहो मरियल दिखेगा- कुपोषित औरो कुरूप - एकदम सोमालिया वासी जैसे। खैर, सबसे खुश भिखमंगों का ठेकेदार होगा, क्योंकि कॉमनवेल्थ गेम जैसे मेले में कमाने के लिए उसे कुछ और भिखारी मिल जाएंगे।

जो भीख नहीं मांगेगा, उ दिल्ली छोड़ देगा और इससे सबसे बेसी खुश होंगी शीला दीक्षित। आखिर दिल्ली की दुर्दशा के लिए उ बाहरी लोगों को जिम्मेदार जो मानती हैं। अब ई बात अलग है कि जहां अवैध निरमाण के वास्ते खुद मुख्यमंत्री को नोटिस मिला हो, उस राज्य में भला बाहरी आदमी को अव्यवस्था फैलाने की का जरूरत है?

आप ही सोचिए, चकाचक मेट्रो स्टेशन औरो फ्लाई ओवर के सामने में खड़े भिखमंगों की फौज कैसन दिखेगी और विदेशी मेहमानों का रिएक्शन का होगा? तब शायद कोर्ट को भी यह अहसास हो कि इससे बढ़िया तो बदरंग दिल्ली थी। बेसी सुंदर बनाने के चक्कर में बेकारे हमने इसका इज्जत उतार दिया।
वैसे, हमको तो लगता है कि बेसी सुंदर दिखने के चक्कर में इज्जत का उतरना तय ही होता है। अब देख लीजिए, बम्बे फैशन वीक में उ खूबसूरत मॉडलों के साथ का हुआ? भरी सभा में एक की चोली सरक गई, तो दूसरी की स्कर्ट फट गई। अब देह की ऊंचाई-निचाई के एक-एक इंच को झलकाने के लिए बेताब रहिएगा, तो ऐसने न कपड़ा फटेगा औरो इज्जत उतरेगा! कोर्ट भी नहीं चाहता कि दिल्ली का एको इंच गंदा दिखे, इसलिए न उ लोगों को भिखारी बना रहा है। बहुत सीधा फंडा है, सुंदरता की कीमत बेइज्जत होकर चुकाइए और मुगालते में जीइए कि आप बहुते सुंदर हैं!

वैसे, सुंदरता के मुगालते में तो आप भी जी रहे हैं और इसकी कीमत बेइज्जत होकर चुका रहे हैं। बेचारी यमुना आपके सौंदर्यबोध के चलते नाला बन गई है और आप पानी के लिए ऊपी के हाथों बेइज्जत हो रहे हैं। आप सुंदर दिखने के लिए जेतना अधिक मेहनत करते हैं, यमुना ओतना अधिक परदूषित होती है। भोर में दांत चमकाने के बहाने टन के हिसाब से पेस्ट का केमिकल यमुना में बहाते हैं, तो गोरा बनने के लिए देह में बेहिसाब साबुन घिसते हैं। अब चमकने के लिए एतना केमिकल परयोग करेंगे, तो उसको पीने वाली यमुना नाला ही बनेगी ना! और जब यमुना नाला बनेगी, तो आपका गला ऐसे ही सूखता रहेगा और ऊपी आपकी इज्जत उतारता रहेगा। तो आप भी सुंदर बनते रहिए और उसकी कीमत ऊपी से पानी की भीख मांगकर चुकाते रहिए।
Article: PRJ

4 Comments:

At 10:58 PM, Blogger अनूप शुक्ल said...

ये है सुंदरता की साइड इफेक्ट । लेख बढ़िया लिखे!

 
At 7:21 AM, Blogger Udan Tashtari said...

अच्छा लेख है, पसंद आया. बधाई.
समीर लाल

 
At 3:38 PM, Anonymous Anonymous said...

सच बात तो यह है की आप जैसे लोगों के कारण ही देश कूङेदान दिखता है.

अरे भाई सुन्दर नहीं तो स्वच्छ तो रह सकते हैं. आजादी का लोग हमेशा गलत फायदा उठाते रहते हैं.

गरीब होने का मतलब ये नहीं है की कुछ भी करने का लाइसेन्स मिल गया है. बहुत से लोगों को देखा है मैंने जो गरीबी का लेबल लगा कर कुछ भी करते रहते हैं.

मेरे अनुसार,जो अवैध निर्माण करते हैं, उनको तो नंगा करके, सरे आम गोली मार देनी चाहिये.

जब रूल नियमों का पालन ही नहीं करना था, तो फिर इतने सारे कायदे कानून बनाये ही क्यों ??

 
At 5:42 PM, Anonymous Anonymous said...

हिमांशु जी,
आपकी बात बिल्कुल ठीक है. सुंदर नहीं स्वच्छ तो रहा ही जा सकता है. लेकिन दिक्कत यह है कि स्वच्छ रहने के लिए भी संसाधन चाहिए. हाथियों के लिए तो यह संभव है कि उसके आसपास सभी कुछ चकाचक हो लेकिन बात जब चीटियों की होती है तो स्वच्छता कोई मायने नहीं रखती. अगर एक बॉबी में एक लाख चीटियां होती हैं तो वहां स्वच्छता ढूंढना मूखर्ता ही है. भारत चीटियों का देश है हाथियों का नहीं. दिल्ली में भी जहां हाथी बसते है (साउथ दिल्ली) वहां सुंदरता को लेकर कोई समस्या नहीं है. लेकिन दिक्कत यह है कि उनके घर की सुंदरता भी इन्हीं चीटियों के अस्तित्व पर कायम है. इसलिए नजरिया व्यापक कीजिए.
PRJ

 

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