भूखल पेट हाई वे पर चलने का सुख
लीजिए, सरकार ने बजट-बजट खेल लिया। जैसन कबड्डी खेलते हैं, न वैसने। का कहे, खेल काहे कहते हैं? अरे भाई, जब खुदे सरकार उस बात पर कायम नहीं रहती, जो बजट में कहती है, तो ई खेले न हो गया। कबड्डी में तो तभियो एक बार लंगड़ी मारकर पिलयर आउट हो जाता है, यहां तो सरकार साल भर लंगड़ी मारती रहती है। आज ई टैक्स, कल उ टैक्स। अब देख लीजिए, इस बजट में सरकार ने कोयो नया टैक्स नहीं लगाया न, लेकिन एक महीना बाद जब नून-तेल खरीदने जाइएगा, तो पिताजी याद आ जाएंगे।
वैसे भी हमरा मानना है कि सरकार बेकारे बजट बनाती है। उसके हाथ में तो कुछो है नहीं, सब कुछ बाजार तय करता है, तो फिर काहे का बजट? कल्हे अगर डीजल-पेट्रोल वाली कंपनी अपना दाम बढ़ा दे, तो सरकारी बजट धरले रह जाएगा। नून-तेल से लेकर कपड़ा-लत्ता तक, सब कुछ महंगा। सरकार बनाती रहे बजट! अब जो चीज आपके हाथ में है ही नहीं, उसमें आप हाथ डाल रहे हैं, तो इसको खेले न कहिएगा। इस बजट के चलते तो हमरे साथ भी खेल होते-होते बच गया! का है कि बजट से पांच दिन पहले हमरे पंडित जी मिले, कहने लगे, 'जजमान, ई बजट पर पंडिताई पर सर्भिस टैक्स लगने वाला है। बजट से पहले ब्याह कर लीजिए, सस्ते में निबट जाइएगा, नहीं तो बाद में दक्षिणा महंगा बैठेगा।' हमने हड़बड़ाकर शादी नहीं की औरो संजोग देखिए कि पंडिताई पर टैक्स भी नहीं लगा। अब अगर पंडितजी की बात हम मान लेते, तो आज बजट के पहले कार खरीदने वालों की तरह बैठ के माथा धुन रहे होते कि नहीं।
हां, तो हम खेल की बात कर रहे थे। का है कि कबड्डी में एक ठो पिलयर को पकड़ने के लिए दस ठो पिलयर दौड़ता है, बजट में भी दस तरह का टैक्स औरो सरचार्ज वाला भूखल कुत्ता भूखल गरीब पर छोड़ दिया जाता है। मजबूत हैं तो बच जाइएगा, कमजोर हैं तो निगम बोध घाट है ही। खेल में कमजोरे लोग न हारता है, आप मरिए जाइएगा, तो कौन बड़का बात हो गया? सरकार के पास आपके पेट को देखने के अलावा भी बहुते काम है। उसको देश का चेहरा चमकाना है, सड़क, मॉल औरो पुल बनवाना है, उस पर कार चलवाना है, आपको विदेशी शराब औरो कोल्ड ड्रिंक पिलवाना है, चावल-दाल के बदला में आपको पास्ता औरो नूडल्स खिलवाना है, हर हाथ में कंप्यूटर औरो मोबाइल देना है...। ई सब होगा, तो आप भूखल पेट भी दुनिया में सिर उठा कर जी पाइएगा। गलोबल पीपुल कहलाइएगा। भूखल पेट हाई वे पर आप घिसट कर भी चल सकते हैं। इसका अपना सुख है। आम रोड पर तो एक डेग नहीं चल सकते, काहे कि उन पर रोड से बेसी गड्ढा होता है। अब तो आप बूझिए गए होंगे कि सरकार हाई वे पर आम सड़क से बेसी ध्यान काहे दे रही है।
का कहे खेती औरो कुटीर उदयोग को सब्सिडी चाहिए? काहे का सब्सिडी, भाई? खेती आप ठीक से करते नहीं औरो कुटीर उदयोग का जो मतलब आप समझते हैं, उसका तो भगवाने मालिक है! कुटीर उदयोग का मतलब घर में बैठकर छोटका-मोटका रोजगार करना होता है, लेकिन आप हैं कि घर में रहकर बच्चा पैदा करने को कुटीर उदयोग समझते हैं! अब अगर आपको यही कुटीर उदयोग चलाना है, तो सब्सिडी नहिए दिया जाए, इसी में फायदा है। वैसे, आपका भी क्या दोष दें, जब बेरोजगारी में घर में बैठल रहिएगा, तो कुछ न कुछ खुराफात तो कीजिएगा ही।
खैर, चिंता छोडि़ए। चिंता से चतुराई घटता है, इसलिए हम चिंता करता ही नहीं हूं। का है कि मुर्दा पर एक किलो लकड़ी डालिए कि एक टन लकड़ी, बेचारे पर कौन फरक पड़ने वाला है! हम तो वैसे भी कुपोषण के शिकार हूं, एक-आध सिरिंज खून सरकार औरो निकाल लेती है, तो क्या फरक पड़ेगा?
Article: PRJ
4 Comments:
भोत ई सई भिष्लेशन किये हो भईया.. ई खेलवा का!!
धन्यवाद नितिन बाबू आपको लेख पसंद आया.
अपने देश में ज्यादातर वस्तुओं में सरकारी सब्सडी मिलती है इसलिये बजट निकालना पड़ता है, जिससे पूरे साल वस्तुओं की कीमत में ज्यादा ऊतार चढ़ाव ना आये। कीमत जब बहुत ज्यादा बढ़ जाये तो फिर साल के बीच में बड़ा देती है। जैसे पेट्रोल और गैस के दाम हर दिन कम होते और बढ़ते रहते हैं लेकिन भारत में ऐसा नही होता।
सरकार चाहे कोई भी हो समस्या ये है कि बजट कैसा भी हो विरोध होना ही है। जैसे जैसे देश का बाजार मुक्त होता जायेगा और पालिसी भी तो
शायद इस तरह का बजट का कोई मूल्य ना रह जाये। ऐसे में गरीब चाहे अमीर देश का हो या गरीब देश का पिसता वो ही है।
wah! kasam se anand aa gaya padh ke.. abhi tak has rahe hain.. hum phir aayenge :)
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