Friday, February 03, 2006

बिहार कॉलिंग!

दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उस दिन विसेसर चचा मिल गए। दिल्ली आते तो बहुतों को देखा था, लेकिन बोरिया -बिस्तर समेट के यहां से जाना पहली बार देख रहा था। इससे पहले कि आश्चर्य से हमरी आंख बाहर निकल आती, उ फुसफुसाए- 'बिहार कॉलिंग'... नीतिश बाबू गांधी मैदान में मास्टरी का जुवाइनिंग लेटर लेकर बैठल हैं, खाली आपके पास बीएड की डिगरी होनी चाहिए। इसीलिए ई मुलुक को टा-टा!

हमरा तो जैसे माथा चकरा गया। अटल जी अगर हजार पूर्ण चांद देख चुके हैं, तो विसेसर चचा जरूर पांच सौ देख चुके होंगे। अब इस उमर में उ मास्टर का नौकरी करेंगे, तो उनके कलम-घिस्सू बेटा पप्पुआ को नौकरी कहां से लगेगी? ई कैसन क्रांतिकारी विचार है भाई? चचा बोले, 'ई तो नीतिश का 'बिग बाजार' के जैसे 'महा छूट ऑफर' है, जो पहले पहुंचे, सारा लूट ले। हम धरती पर पहिले आए, इसीलिए बीएड कर पाए, इसलिए अब हमको नौकरी मिलेगी, भले ही पप्पुआ हमेशा से बेसी विदवान हो। अगर हमहूं पप्पुआ जैसे लालू कालीन अभिशप्त पीढ़ी के होते, तो बीएड का होता है, कभियो नहीं जानते। उनको नौकरी तो देनी नहीं थी किसी को, तो काहे का ट्रेनिंग स्कूल? बेकारी में लोग गाय-भैंस ही तो चराएंगे, सो सारा पैसा चरवाहा विद्यालय के खाते में दे दिया और बाद में उसे भी चर लिया।'

अब तक हम संभल चुके थे, 'बीएड कॉलेज नहीं होने से तो चलिए एक ही पीढ़ी बर्बाद हुई, लेकिन आप मास्टर बनेंगे, तो वहां की सात पीढ़ी बर्बाद होती जाएगी।'

सुनके चचा तंबाकू ठोंकने में मगन हो गए और हम सोचने में। हमको नीतिश बाबू पर तरस आने लगा। अच्छा- खासा आदमी कुर्सी पर बैठते ही बौरा गया! सच कहूं, तो हमको बिहार के सीएम के कुर्सिये में खोट नजर आने लगा है- भगवानों बैठ जाएं, तो चिरकुट हो जाएं। हम चिंता में थे कि पार्किंग का ठेकेदारी करते-करते 'ए पलस बी का होल स्क्वायर' वाला बेसिक फारमूला तक भूल चुके चचा पढ़ाएंगे का? तनिके देर में हमको पप्पुआ दोषी लगने लगा? अब आप ही बताइए, उसको नीतिश के राज में नौकरी चाहिए थी, तो चचा से पैदा होने का इंतजार क्यों किया? किसी और का बेटा होकर पहले दुनिया में आ जाता। वैसे, दोष चचो का नहीं है। का है कि चाची मिलवे नहीं की थी, तो चचा क्या खाकर पप्पुआ को पैदा करते!

हालांकि पप्पुआ अपनी गलती नहीं मानता। गलती है तो लालू, नीतिश औरो चचा की। ऐसन में उ क्यों भुगते? उसने तो सिकंदर और बाबर के पूरा खानदान से लेकर सोनिया गांधी के नाती तक का नाम रट के जीके मजबूत किया है। परीक्षा हो, तो उ मास्टर बने। लेकिन नीतिश अड़ल हैं कि बीएड नहीं किया, तो नौकरी नहीं मिलेगी। अरे भाई, जब 15 साल पहिले राज्य से बीएड कॉलेज खतम हो गया है, तो डिगरी कहां से लाएगा लोग?

खैर, हमको पप्पुआ के लिए इसकोप अभियो नजर आ रहा है। का है कि चिकना घड़ा पर कभियो रंग नहीं चढ़ता है। इतने साल में सब ज्ञान को तंबाकू के गर्दा में उड़ा चुके विसेसर चचा को क्लास में टिकने लायक बनाने के लिए नितीश को उन्हें दस आदमी से ट्यूशन पढ़वाना होगा। बस हो तो गया! उन दस में एक पप्पुआ तो होगा ही।

Article: PRJ

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