Friday, January 13, 2006

ट्रैफिक पुलिस का आदेश

मेरा एगो नेता मित्र है। नेता है, इसलिए सब कुछ को राजनीतिक चश्मे से देखता है। उ मोटरसाइकिल को बीजेपी मानता है, तो टरैफिक पुलिस को आरएसएस। दिल्ली टरैफिक पुलिस के सड़क सुरक्षा सप्ताह में दिल्ली के रोड पर उसका एक्सपीरियंस देखिए:

उस दिन फटफटिया पर बैठा उ सत्ता से हटे बीजेपी के जैसे हिचकोले खाता जा रहा था। बैरीकेड पर एगो टरैफिक पुलिस उसको संघ के जैसे घूरते मिल गया। उ रुकना तो चाह रहा था, लेकिन कमबख्त इंडिया शाइनिंग के नियोन वाला विज्ञापन से आंखे चुंधिया गई। जब तक संभलता, पुलिस को ठोंक चुका था। वैसे, रोक-टोक से तंग होकर उसको ठोंकना तो उ बहुते दिन से चाहता था।

खैर, पुलिस पट्ठा मजबूत निकला। खुद उठा, उसको उठाया और टूटे स्टैंड वाला फटफटिया को पांच-दस गो ईंटा के 'सामूहिक नेतृत्व' के सहारे खड़ा कर दिया। अब उ फटफटिया का निरीक्षण कर रहा था। पुर्जा-पुर्जा ढीला था। लौह पुरुष जैसा हेडलाइट बूझने से पहले खूब चमक रहा था, गियर बदलने पर गाड़ी जैसे दुलत्ती मारते पीछे भागती थी, चेन का खांचा सब बीजेपी की दूसरी लाइन के झोलटंगा नेता के जैसे एक-दोसरा को लंगड़ी मार रहा था, तो फ्री-व्हील उमा जैसे थोड़े-थोड़े समय पर पूरी चेन को उतारने पर अड़ल था। फ्री-व्हील से परेशान ब्रेक अक्सर जैसे ऑफ द रिकॉर्ड ब्रीफिंग करने लगती थी औरो फेर सब कुछ भगवान भरोसे हो जाता था। साइलेंसर को सूंघकर पुलिस ने इहो पता लगाया कि गाड़ी मिट्टी के तेल में पेट्रोल मिलाकर चल रही है! पुलिस परेशान, आखिर क्या करे? जिस दिव्य- दृष्टि वाले संजय को जोश में गड़बड़ी रोकने के लिए भेजा था, उहो मिलावटी निकला! भोपाल वाला सीडी सामने था।

खैर, पुलिस ने उसको चाल, चरित्र व चिंतन बदलने को कहा औरो चालान बुक निकाला। लेकिन पुलिस परेशान! आखिर केतना गड़बड़ी के लिए चालान करता उ। उसको गोस्सा आ गया, 'अपने बल पर खड़ा नहीं हो सकता, लेकिन हेडलाइट देखो केतना तेज है! आंख चुंधिया रही है।' फिर क्या था, हेडलाइट बदल दी गई औरो कम वाट का एगो बलब लगा दिया गया। भविष में गाड़ी एतना तेज हेडलाइट नहीं लगा सके, इसके लिए स्टैंड के बदला में 'सामूहिक नेतृत्व' का ईंटा जोड़ने का आर्डर हुआ। और फ्री-व्हील? उसको फेंक दिया गया। समस्ये खतम! अब विकल्प तलाशा जाएगा।

लेकिन ई सबसे गाड़ी की परेशानी बढ़ गई है। उसके दिमाग में एके गो प्रश्न है - एतना कंट्रोल में दिल्ली के रोड पर कहीं गाड़ी चलती है? उ भी तब, जब रोड पर ऐसन ब्लू लाइन बस चल रही हो, जो चंद्रबाबू, मुलायम व अमर के साइकिल औरो जयललिता व ममता के घास-पात को मिट्टी में मिलाने पर तुला हुआ हो।

हमरे खयाल से तो अब गाड़ी के पूर्जा सबको ई फैसला ले ही लेना चाहिए कि बेलगाम ब्लू लाइन से दबके अकाल मौत मरा जाए या पुलिस का आदेश माना जाए। आप का सोचते हैं?

Article: PRJ

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