Saturday, December 31, 2005

बदलने की जरूरत

'द मांक हू सोल्ड हिज फरारी' का नायक जूलियन मेंटल अमेरिका का एक सफल वकील अचानक अपनी फरारी, मकान सब कुछ बेचकर हिमालय में निकल पड़ता है। एक संतुलित जिंदगी की खोज में। वह लौटकर आता है, तो अमेरिकवासियों की जिंदगी बदलने के लिए। रॉबिन एस. शर्मा की यह किताब दुनिया में अच्छी खासी संख्या में बिकने वाली किताबों में से है। आखिर वह कौन सी बात है, जो आदमी के भीतर ऐसा अहम परिवर्तन ला देती है? और वाकई क्या ऐसे किसी परिवर्तन की जरूरत भी है?

वास्तव में सब पूर्णता के लिए छटपटा रहे हैं। संघर्ष और प्रतिस्पर्धा भी इसी पूर्णता की छटपटाहट है। सब लोग लगातार प्रतियोगिता में नहीं रह सकते। तो वह पूर्णता क्या है? भारतीय दर्शन ने हमें यही सिखाया था। भीतरी ज्ञान की आंखें खोलनी होंगी। गुस्सा, घृणा, द्वेष और डर जैसे नकारात्मक विचारों से मुक्ति पानी होगी। मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि कैसे ये नकारात्मक विचार गर्दन में जकड़न, अल्सर, अस्थमा या त्वचा की कई समस्याएं पैदा करने के कारण बनते हैं। आधुनिक विज्ञान खोजने में लगा है कि सकारात्मक विचार स्वस्थ ही नहीं बनाते, बल्कि रचनात्मक ऊर्जा का विस्फोट करते हैं। आप एक ऐसे व्यक्ति में बदलते हैं, जिसका स्विचबोर्ड उसी के पास होता है।

परिवर्तन की कुंजी आपकी चेतना के परिवर्तन में है। चेतना में परिवर्तन से विचार और भावनाएं बदल जाती हैं। मन और शरीर बदल जाते हैं। कौन आदतों और अतीत की गुलामी से मुक्त नहीं होना चाहता? आदतें हमारी रचनात्मक शक्ति को निगल जाती हैं। अतीत की यादें हमारी स्मृति का सबसे ज्यादा हिस्सा घेरकर रखती हैं, ठीक कंप्यूटर की हार्ड डिस्क की तरह। वह कौन सा क्षण है, जब हम बदल सकते हैं? इसका जवाब बहुत पहले जनक ने अष्टावक्र को दिया था- अधुनैव। अभी ही। किसी भी समय या फिर कभी नहीं।

रॉबिन एस. शर्मा के संन्यासी जूलियन मेंटल की तरह क्या आपको भी नहीं लगता कि आपने जो पीछे छोड़ दिया और जो भविष्य में है, वह उतना महत्वपूर्ण नहीं। महत्वपूर्ण है, तो यह कि आपके भीतर क्या है।'

चलिए आइए फिर हम क्यों देर करे अपने भीतर को जानने की उसे पहचान कर अपनी जिंदगी का रुख बदलने की। नववर्ष की शुरुआत हम एक नई सकारात्मक ऊर्जा से करें... इसी के साथ सुर की ओर से सभी को नववर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनाएं!!!

साभारः हिंदुस्तान

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