Thursday, January 12, 2006

समय का उपवास

समय जिसे भारतीय मनीषियों ने काल भी कहा है, अपनी सुविधा के लिए हमने उसे कई हिस्सों में बांटा है। दिलचस्प बात यह है कि आज हर कोई समय की कमी महसूस करता है। समय धन भी है और उससे ज्यादा भी। मौजूदा दौर का मनुष्य अगर किसी से आक्रांत है तो समय से। अगर समय प्रबंधन सबसे बड़ी चुनौती है, तो समय की गिरफ्त बड़ी जबरदस्त है। सभ्यता ने एक शब्द और खोजा है- डेडलाइन। एक ऐसी अदृश्य रेखा जो निरंतर लोगों के सिर पर हांट करती रहती है। कई लोग इस डेडलाइन से इतने आक्रांत हैं कि अपनी पहले से कठिन जिंदगी को और दूभर बना लेते हैं। चौबीस घंटे घड़ी देखते रहने की आदत हमारी जिंदगी को यंत्रवत बना डालती है और इसका हमें आभास तक नहीं होता।

व्यस्तता के इस दौर में आप अपनी आमदनी पर कोई विपरीत असर डाले बिना ही एक मजेदार अभ्यास आप सकते हैं। कुछ खास नहीं करना है, बस अवकाश के दिन अपनी घड़ी को ताले में बंद कर रख देना है। हर चीज को बिना प्रबंधन के होने दीजिए। स्वस्फूर्त ढंग से। आपको लगेगा कि जैसे आप किसी दासता से मुक्त हो गए हैं। सप्ताह में कम से कम इस दिन आप बिना किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के काम कर के देखिए। संभव है यह अभ्यास कुछ अटपटा सा लगे। आपको लगे कि बड़ी अजीब मुसीबत में फंस गए हैं। लेकिन यह मुसीबत नहीं है। समझिए कि यह भी समय का उपवास ही है। और कोशिश कीजिए कि किसी से समय ही नहीं पूछें इस दिन। बस वह काम करते रहिए, जो आपको अच्छा लगता है। नतीजा यह होगा कि एक मजेदार घटना घटेगी। आपको लगेगा कि कुछ छूट गया है, लेकिन आप जो कर रहे हैं, वह और भी अच्छा है। आपकी स्वाभाविक शक्तियां एक बने बनाए ढांचे से बाहर सोच रही होंगी।

रचनात्मक लोगों की एक खूबी यह होती है कि वे फ्रेम को तोड़ते हैं। फ्रेम से बाहर जाकर सोचते हैं। वे सीमाओं से परे जाते हैं। लेकिन नतीजे अमल में लाने के लिए जरूरी है कि कार्यक्रम और समयविहीनता में एक तालमेल बैठाया जाए। समयविहीनता का यह दिन, जब आप समय की काराएं तोड़ते हैं, देखेंगे कि आप एक उत्फुल्लता से भरे हुए हैं।

1 Comments:

At 7:57 AM, Blogger अनूप शुक्ल said...

ये काम तो हम पिछले १३ सालों से कर रहे हैं। कैलेन्डर देखकर काम करते हैं।

 

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