आलू ने भी साथ नहीं दिया लालू का
एगो कहावत है खुदा मेहरबान, तो गदहा पहलवान। एकदम सटीक कहावत है। लेकिन दिक्कत ई है कि लोग इसके मर्म को समझने की कोशिशे नहीं करता है। अपने मसीहा जी को ही लीजिए। खुदे ई कहावत दोसरा के लिए बत्तीस बार कहते रहे हैं, लेकिन कभियो ई नहीं सोचे कि ई उन पर भी लागू हो जाएगी। जब तक उ पहलवान थे, किसी की औकात आलू से बेसी की नहीं थी। एक उ थे और एक आलू था! लेकिन खुदा क्या रूठे कि जिस आलू को अपने हाथों से खेतों में लगाया, उहो किसी और का होने वाला है।
राज्य की सड़क उ भले हेमा के गाल की तरह नहीं बना सके, लेकिन उनकी गाल जरूर हीरोइनों की तरह लाल हो गई थी। लेकिन समय का फेर देखिए, आजकल सूखे गोभी की तरह मुरझाए हुए हैं। का है कि ध्वजा-प्रेमी भाजपाई और उसका छोटका भाई सब चुनाव जीतने के बाद उनके किला पर अपना ध्वजा फहराने को लेकर अड़ा है। एक तो किला छिन रहा है औरो ऊपर से लोग उनकी रईसी का मजाक ऐसे उड़ा रहे हैं, जैसे कभी सत्ता जाने के बाद सद्दाम हुसैन का उड़ाते थे। कोयो कहता है कि गरीब का मसीहा स्विमिंग पुल में नहाता था! कोयो कहता है एसी में रहने वाला उनका शाही घोड़ा औरो गाय-बैल सब अब रोड पर आ जाएगा औरो उ सामंत सब भी, जो अब तक उन पर पलते रहे हैं? का करें, सुन-सुन के दिल बैठा जा रहा है।
लेकिन कुछो हो, उनका सेंस ऑफ ह्यूमर अभी गया नहीं है। कहने लगे 'अरे, लोग जिसको स्विमिंग पुल कह रहा है, उ तो तालाब है। तालाब को सिमेंटेड करा दिया, तो उ का स्विमिंग पुल हो गया? हद हो गई भाई! उ भी तो हम लचारी में बनवाए थे। जानते हैं हमको एक कम एक दर्जन बच्चा है। अगर एक आदमी आधो घंटा बाथरूम बंद रखता, तो भगवाने मालिक था। तालाब में तो सब एके बेर घुसता था और नहा के बाहर आ जाता था, जैसे भैंस सब नहाता है। औरों उ गाय-गोरू? हम जा रहे हैं सबको हाई कोर्ट से लेकर सचिवालय तक में खूटिया देंगे। जब रोड जाम होगा, तब बात सबके समझ में आएगी कि किसी का आशियाना उजाड़ना केतना महंगा पड़ता है।'
वैसे, मसीहा जी का ई कदम खतरनाक है। का है कि पंद्रह साल में सड़क पर सर्वहारा छाप गाय-बैल सब के संख्या बहुत बढ़ गया है और अब तक उसके हिस्सा का चारा खाकर पल रहा मसीहा जी के बुर्जुआ गाय-माल अगर रोड पर आ जाएगा, तो दंगे न होगा। रहने दो भाई किला उन्हीं के पास, झंडा कहीं और फहरा लो, लेकिन तब सामंत सबका क्या होगा?
1 Comments:
बहुतए बढिया लेख है... :)
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