Tuesday, January 24, 2006

साइबर स्पेस पर शिकंजा

  • अभी हाल में सर्च इंजन गूगल ने अपनी वीडियो साइट पर 'ब्लफ मास्टर' और 'बंटी और बबली' जैसी लेटेस्ट बॉलिवुड फिल्में मुफ्त में बांटनी शुरू कर दीं। यह खुलेआम कॉपीराइट की डकैती थी, जिसके खिलाफ यशराज फिल्म ने कानूनी कार्रवाई की धमकी दी।
  • कुछ अरसा पहले एक इंटरनेट साइट सीनेट ने एक धमाका किया। उसने गूगल के सीईओ एरिक श्मिड्ट के निजी जीवन, राजनीतिक दान, रिहाइश और तनख्वाह के ब्यौरे प्रकाशित कर दिए। यह सारी जानकारी उसने गूगल पर सर्च के जरिए ही निकाली, यह दिखाने के लिए कि गूगल लोगों की जिंदगी के बारे में कितना ज्यादा जानता है।
  • पिछले दिनों नेट पर 'एपिक 2014' नाम से आठ मिनट का एक वीडियो रिलीज हुआ। यह आज से आठ साल बाद की एक फेंटेसी है, जिसमें दिखाया गया है कि कैसे गूगल और अमेजन के एक साझा अवतार 'गूगलेजोन' ने मीडिया पर कब्जा कर लिया है, जो हर पाठक के लिए उसकी निजी पसंद और जरूरत के हिसाब से न्यूज, एंटरटेनमेंट और जानाकरी का एक पैकेज मुहैया कराता है। यह सारा मैटर इंटरनेट से जोड़-तोड़ कर गूगलेजोन के सॉफ्टवेयर रोबोट तैयार करते हैं और इस पर्सनल मीडिया ने मास मीडिया को तबाह करके रख दिया है। नतीजतन न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे ताकतवर अखबार नेट से हटने को मजबूर हो गए हैं।
पश्चिम में हंगामा मचा हुआ है और इस हंगामे के केन्द में है गूगल। वह सर्च इंजन जो आज इंटरनेट पर जानकारी की तलाश का सबसे बड़ा मीडियम बन चुका है, इस कदर कि इंटरनेट की कल्पना गूगल के बिना नहीं की जा सकती। दुनिया भर में नेट पर हर रोज जो 25 करोड़ खोजें होती हैं, उनका आधा गूगल के हिस्से आता है। भारत में 90 परसेंट, यानी तीन करोड़ नेट खोजों पर गूगल की छाप लगती है। सिर्फ आठ बरस में गूगल ने याहू और एमएसएन जैसे सर्च इंजनों को दूर पीछे छोड़ दिया है। वह इंटरनेट का चौधरी बन चुका है।

अभी हाल तक गूगल को इंटरनेट की आत्मा कहा जा रहा था। पूछा जा रहा था कि क्या वह साइबर स्पेस का भगवान है? माना जा रहा था कि उसने लाखों (और शायद करोड़ों) वेब पेजों-पोर्टालों के इस विश्व व्यापी बीहड़ में ऐसा रास्ता खोल दिया है कि सब कुछ सुगम लगने लगा है। नेटिजन के लिए गूगल मनपसंद जानकारी पाने का सबसे पहला जरिया बन गया, क्योंकि उसके सर्च इंजन का कोई जवाब नहीं था।

लेकिन आज माहौल बदल रहा है। गूगल को एक ऐसे विशालकाय ऑक्टोपस की तरह देखा जा रहा है, जिसकी बांहें पूरे नेट को घेरे हुए हैं। वह हर क्षण साइबर स्पेस के अंधेरे भूगर्भ में रेंगता रहता है, वहां सुरंगें बनाता है और चुपचाप हर चीज दर्ज करता रहता है। वह नेट की सूक्ष्म से सूक्ष्म धड़कन को रेकॉर्ड करता है, लेकिन जब वह यह सब आप-हम तक लेकर आता है, तो बदले में हमारे डेस्कटॉप के जरिए हमारे जीवन में भी अदृश्य रास्ते बना चुका होता है। हर सर्च गूगल के दिमाग में हमेशा के लिए दर्ज हो जाती है और साथ में तारीख, समय और आईपी एड्रेस भी। गूगल हम सब के बारे में कुछ न कुछ जानता है। वह हमारे गूढ़ रहस्यों का अकेला साझीदार है। हमारे खुफिया ब्यौरों तक उसकी पहुंच है। इसके अलावा जब कोई गूगल टूलबार को अपने पीसी में इंस्टॉल करता है, तो अपनी हार्ड डिस्क में गूगल के लिए एक सेंध बना देता है।

और उसका इस तरह सर्वव्यापी, सर्वज्ञाता होना लोगों में डर पैदा कर रहा है। यह डर वाजिब भी है। गूगल के पास लोगों के बारे में जितनी सूचना है, उतनी आज से पहले किसी के पास नहीं हुई, शायद सरकारों के पास भी नहीं। इसलिए अब कहा जाने लगा है कि गूगल ऐसा शैतान है, जो इंटरनेट पर कब्जा कर लेना चाहता है। उसकी तुलना '1984' के बिग ब्रदर से की जा रही है, जो हर इंसान पर नजर रखता है।

सवाल यह है कि गूगल इस हैसियत से क्या कर सकता है। वह जानकारी के इस खजाने का कमर्शल इस्तेमाल कर सकता है। उसके गलत फायदे उठा सकता है। दूसरे कॉरपोरेशनों को बेच सकता है, या फिर उन सरकारों को, जो अपनी जनता की जिंदगी पर पकड़ बनाए रखना चाहती हैं। यानी मामला प्राइवेसी का है और इसके साथ ही कॉरपोरेट मॉरेलिटी का।

गूगल का सिद्धांत है, 'बुरा मत करो'। लेकिन इस वादे पर यकीन तब दरकना शुरू हुआ, जब गूगल एक विशाल कंपनी में बदलने लगा। एक तरफ उसकी पहुंच, आमदनी और मार्केट वैल्यू तेजी से बढ़ी, तो दूसरी तरफ उसमें वैसी ही प्रवृत्तियां नजर आने लगीं, जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम के शहंशाह माइक्रोसॉफ्ट में हैं-अपने प्रतिद्वन्द्वी को मिटा देने की। जल्द ही ऐसा लगने लगा कि गूगल बाजार पर एकछत्र राज के लिए बेताब है और अपनी भलमनसाहत छोड़ रहा है। लोगों को उसकी सर्च प्राथमिकताओं में भेदभाव नजर आने लगा। उसने अपने आलोचकों का मुंह बंद करने की कोशिश की और घमंड के अहसास से घिरा नजर आने लगा।

सवाल अभी अस्पष्ट इरादों और जनता के नजरिए का है, लेकिन सोचिए गूगल अगर चाहे, तो इंटरनेट पर उसका शिकंजा सचमुच कस सकता है। अगर ऐसा हुआ, तो साइबर स्पेस का खुलापन, जो उसकी असली ताकत है, खतरे में पड़ जाएगा। लेकिन क्या किसी कानून से इसे रोका जा सकता है? वह इलाज तो मर्ज से भी बदतर होगा। उम्मीद कोई है, तो सिर्फ टेक्नोलॉजी से, जिसकी एक हरकत गूगल को हाशिए पर धकेल सकती है। या फिर नेटिजन का सात्विक क्रोध गूगल की भटकन को अलोकप्रिय और इसलिए अलाभकर बना सकता है। आखिरकार बाजार पर हमारी पसंद का राज अभी बचा हुआ है। बस, वह पसंद सही हो।

साभारः एनबीटी

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