Wednesday, January 18, 2006

बार बाला से किसकी मौज

दिल्ली के पियक्कड़ सब आजकल बहुते खुश हैं। अब बार में सुंदरी के हाथ से सुरा जो मिलेगी, मतलब नशा का डबल डोज न हो गया! एतना खुश हैं कि अपना अवैध निर्माण गिरता देखकर भी उनको दुख नहीं हो रहा। हमको तो लगता है कि अब दिल्ली का कायाकल्प हो जाएगा।

सब कहता है कि इससे ला एंड आर्डर की स्थिति बिगड़ेगी, लेकिन हमको लगता है सुधर जाएगी। एक बार 'बार बाला' सब को काम पर पहुंचने दीजिए, फेर देखिएगा रोड पर कैसे मवालियों का अकाल हो जाता है। सब बांका रात भर मयखाने में रहेगा औरो दिन भर हैंगओवर में। आप छेड़ने की बात करते हैं! रोड पर लड़कियां तरस जाएंगी, कोई उनको देखने वाला नहीं मिलेगा। और बार में...? बाला सब उनको एतना टंच पिला देंगी कि उनसे गिलास नहीं संभलेगा, आप बंदूक-पेस्तौल चलाने की बात करते हैं। औरो ऐसने चलता रहा, तो एक दिन दिल्ली के सब बदमाश डैमेज लिवर औरो किडनी के साथ एम्स में भरती होकर इलाज के अभाव में मर जाएगा। पूछ लीजिए अपने रवि बाबू से, इसका इलाज केतना महंगा होता है। न हींग लगा न फिटकरी औरो रंग देखिए क्राइम कंट्रोल केतना चोखा हो गया... आप सरकार को बेकूफ समझते हैं। हां, कुछ भलो लोग मरेगा, लेकिन का कीजिएगा, कुछ पाने के लिए कुछ तो गंवाना ही पड़ता है।

आप बूझ नहीं रहे हैं कि एक सरकारी तीर से केतना शिकार हो गया। अब सरकार का रेवेन्यू तो बढ़वे करेगा, ऐसन तथाकथित बुद्धिजीवियो सब निबट जाएगा, जिसको बिना पिये बौद्धिक बहस में मजे नहीं आता है या ई कह लीजिए कि जो पीने के बाद ही बुद्धिजीवी बन पाता है। होश में रहेगा, तब न सरकार की आलोचना करेगा। 'बार बाला' पिला के एतना टाइट कर देगी कि सरकार को गटर में फेंकते-फेंकते उ खुदे गटर के बगल में लुढ़क जाएगा।

सरकार की मौज तो औरो सब है, जैसे- लोग जब मयखाना में पैसा बहाएगा, तो अवैध निरमाण के लिए पैसे नहीं बचेगा, लोग कारो नहीं खरीद पाएगा। फिर सरकार को कोर्ट में अवैध निरमाण के वास्ते फजीहत नहीं झेलनी पड़ेगी। ऐसे में कोयो बच्चा को प्राइवेट स्कूल में नहीं भेज पाएगा? मतलब सब सरकारिये स्कूल में पढ़ेगा। सरकार कहेगी- देख लो प्रशासन, अवैध निर्माण खतम... शिक्षा का स्तर सुधार दिया, परदूषण औरो टरैफिक कंट्रोल हो गया। फायदा औरो सब है। हमर ऐगो दोस्त जब मुंबई के बियर बार में जाता था, तो बार डांसर को हजार रुपया टिप देते भी ऐसे शर्माता था, जैसे देना तो उसको दस हजार था, लेकिन चेकबुक घरे भूल आया। यही बात यहां भी होगी। विशवास कीजिए, जल्दिये दिल्लीवाला सब पांच रुपया को लेकर ऑटो वाला से हुज्जत करना छोड़ देगा। लोग का दिल बड़ा हो जाएगा।

वैसे, मौज तो बिना पट्टा के घूमे वाला उ जंतुओं सब का हो जाएगा। जब लोग सब पीके यहां-वहां लुढ़कल रहेगा, तो जंतु सब को 'टांग उठाने' के लिए हर चार कदम पर एगो खुला मुंह तो जरूरे मिल जाएगा। झूठे पूरे पार्क का चक्कर लगाना पड़ता है।

मौज 'बार बाला' औरो बार मालिको सब का है। पांच 'पटियाला' के बाद, गिलास में खाली सोडे गिरेगा, लेकिन दाम पूरा शराब के आएगा। मौज समाज का भी है। सामाजिक समरसता आ जाएगी। शराब के एतना नशा के सामने बाकी सब नशा लोग भूल जाएगा। मतलब अब निरीह लोग सब को सत्ता के नशा या पद औरो पैसा के नशा से घबराने की जरूरत नहीं होगी। ऐसन समाज की कल्पना तो प्लूटो और अरस्तूओं ने नहीं किया होगा!

1 Comments:

At 6:47 AM, Blogger Tarun said...

क्‍या ठाठ होंगे पियक्‍कड़ों के, सुरा और सुन्‍दरी दोनों का एक साथ लुत्‍फ। कही ऐसा ना हो, उनके मजे देख ना पीने वाले भी शुरू कर दें।

 

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