वो जलता रहा, चैनलों का कैमरा चलता रहा
भारत में खबरिया चैनलों की शैशवास्था का यह चरम उदाहरण था। पटियाला के एक व्यापारी द्वारा आत्मदाह और इस आत्मदाह के वीभत्स दृश्य का लाइव प्रसारण! फूलों की माला से लकदक व्यापारी। चारों तरफ से तमाशा देख रहे लोगों का घेरा। इस भीड़ में कई चैनल वाले और पुलिस वाले भी। व्यापारी ने खुद पर पेट्रोल डाला। माचिस निकाली और आग लगा ली। धधकती आग में व्यापारी जलने लगा। चैनलों को अद्भुत मसाला मिल गया। मौत के मुंह में खुद को ढकलते व्यक्ति के लाइव प्रसारण का मौका हमेशा नहीं मिलता! मसालेदार खबरों की तलाश में लगे रहने वाले चैनलों के लिए इससे अच्छा मसाला क्या हो सकता है?
व्यापारी मर गया। लेकिन कोई यह पूछने वाला नहीं कि जब वह ऐसी हरकत कर रहा था तो किसी ने उसे रोका क्यों नहीं? अगर आम जनता को इतनी अक्ल नहीं थी तो प्रबुद्ध मीडिया में से किसी ने उसे रोका क्यों नहीं? वे बस मजा लेकर उसे देखते रहे और भावनाओं में बह गया वह बेचारा व्यापारी चैनलों के कैमरे देखकर कुछ ज्यादा ही उत्साहित हो गया। इसके बाद का अंदाजा शायद उसे नहीं रहा होगा। खबरिया चैनलों को थोड़ी देर के लिए ही सही अपनी जिम्मेदारी भी समझ में आई। उनमें से एक ने आत्मदाह के लाइव प्रसारण को दिखाते हुए यह भी दिखाया- 'ये दृश्य आपको विचलित कर सकते हैं।' इसे खबरिया चैनलों का उपकार ही समझिए कि उन्होंने इस वीभत्स दृश्य को दिखाने के साथ-साथ पट्टिका पर यह भी लिख दिया, लेकिन दिखाया बार बार। लगातार।
3 Comments:
अब कोई कहे भी तो क्या कहे, 24 घंटे के न्यूज़ चैनल का आखिर अर्थ ही क्या है, हर समय तो कोई खबर बनती नहीं कि दिखाया जा सके, तो इसलिए जहाँ मौका मिला, जो कोई एकाध मसालेदार खबर मिल गई, उसे ही बार बार दिखाते रहे, भई आखिर विज्ञापन कैसे मिलेंगे, कमाई कैसे होगी? समाचार माध्यम आज के समय में निरे व्यापार बन गए हैं, पूर्णतया स्वार्थ की चाशनी में डूबे हुए, वे वही दिखाते हैं जो लोगों को देखना पसन्द है, नहीं तो विज्ञापन नहीं मिलेंगे और उन्हे भी तो अपने बाल-बच्चे पालने हैं!!
और हमारी जनता-जनार्दन, वह तो सदैव से ही तमाशबीन रही है, सड़क पर कोई झगड़ा हो जाए या कोई दुर्घटना, लोग घेरा डालकर तमाशा देखने के लिए खड़े हो जाते हैं, करता कोई कुछ नहीं है, भई आखिर पंगा क्यों लें? और तो और, यहाँ मेरे घर के पास पिछले महीने सड़क किनारे एक ट्रक गढ़्ढ़े में फंस गया था और जब एक लॉरी उसे निकालने आई तो भी लोग घेरा डालकर तमाशा देखने के लिए खड़े हो गए, जैसे कोई नौटंकी हो रही हो!!
रही उस व्यापारी की बात, तो वह बेचारा तो गफ़लत में मारा गया। पब्लिसिटी हासिल करने के लिए उसने आत्मदाह की घोषणा कर डाली, यदि वह हालात से तंग आकर आत्महत्या ही करना चाहता था तो मरने के और भी कई तरीके हैं जो कि कम पीड़ादायक है, जैसे ज़हर खा लेना, फ़ांसी लगा लेना, अपने को गोली मार लेना, लेकिन उसने आत्मदाह का ही मार्ग क्यों चुना? कारण सीधा और साफ़ है, बाकी किसी तरीके से यदि आत्महत्या करता तो किसी को उसे बचाने का मौका ही नहीं मिलता, और मरना तो वो चाहता ही नहीं था। दूसरी बात यह भी कि आत्मदाह में जो नाटकीय प्रभाव है वह किसी और तरीके में कहाँ!! उसे पूरी पूरी उम्मीद थी कि जब वह पैट्रोल आदि डालेगा तो लोग उसे रोक देंगे या पुलिस गिरफ़्तार कर लेगी और वह नारे लगाता हुआ चला जाएगा, या फ़िर जैसे ही आग लगाएगा तो तब तो उसे रोककर आग बुझा ही दी जाएगी!! परन्तु ऐसा हुआ कुछ नहीं, और कदाचित इस बात का एहसास उसे भी हो गया, तभी वह पूरी तरह आग की लपटों में घिरने के बाद चिल्लाने लगा!!
सीधे सीधे शब्दों में यदि कहूँ तो मुझे उस व्यक्ति से कोई हमदर्दी नहीं है, यदि वह हालात से तंग आया हुआ था तो भी, आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है, वह कायरों का कार्य है और जीवन एक संघर्ष है जिसे कायरों की कोई आवश्यकता नहीं है!! मैं समझता हूँ की उसके परिवार वालों को भी प्रकट रूप से विलाप करने या प्रशासन को उसकी मौत का उत्तरदायी ठहराने का कोई अधिकार नहीं है, वे स्वयं उसे आत्मदाह करने से रोक सकते थे, जब उन्होने स्वयं उसे नहीं रोका तो किसी और को क्यों उत्तरदायी ठहराया जाए? और जिन हालात से तंग आकर उसने आत्मदाह किया, वे केवल उसके लिए नहीं थे, और लोगों के लिए भी थे, तो क्या उन सबको भी आत्मदाह कर लेना चाहिए?
अमित,
अभी तक टैग का फंडा मुझे समझ नहीं आया है. टेक्निकल जानकारी अभी उतनी नहीं है. आप ही टैग के बारे में बताएं.
धन्यवाद
सुर, टैग का कोई फ़न्डा नहीं है। मात्र इतनी सी बात है कि यह एक प्रकार का खेल है, जिसके कुछ नियम है(जो आप मेरी दी गई कड़ी पर पढ़ सकतीं हैं)। मुझे भी पहली बार ही टैग किया गया है, परन्तु समझ में फ़टाफ़ट आ गया। जिस विषय पर मैंने आपको टैग किया है, उसी विषय पर आपको लिखना है, और खेल के नियम पढ़ने हैं और उन्हें अपनी प्रविष्टि के साथ भी डालना है, न भी डालें तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता। किसी नियम को चाहे तो लांघ भी सकती हैं, जैसे मुझे आठ बातें बतानी थी, मैंने ग्यारह बता दीं। मुझे आठ लोगों को शिकार बनाना था, मैंने नौ को बना दिया। बस, अंत-पंत मतलब तो आपके विचारों से है!! ;)
Post a Comment
<< Home