Friday, February 10, 2006

दिल्ली, यानी दिल का बाजार

दिल्ली को दिलजला सब दिल का बाजार मानता है, जबकि हमको ई प्यार का शेयर बाजार लगता है। उधर, शेयर बाजार में सेंसेक्स 10,000 पार कर रहा है, इधर लव का सेंसेक्स दिल्ली में टाप पर है। लेकिन 14 तारीख को आप इसका राग 'विरोध बजरंगी' भी सुनिएगा, लेकिन हमरा मानना है कि 'बाजार के धुन' के सामने कुछ नहीं सुनाई देता।

आइए, हम आपको घुमाते हैं बाजार। शेयर बाजार के स्मॉल कैप, मिड कैप, बिग कैप जैसन शेयर के जैसे यहां भी आपको इन्वेस्टमेंट के लिए हर तरह का मुर्गा-मुर्गी मिल जाएगा। रंग, रूप, साइज औरो भविष्य को देखकर निवेश करते रहिए बस। जोखिम आपका। जैसे लोग बेसी कमाई कराने वाले शेयर में निवेश करता है, ई नहीं देखते कि उ दारू का है कि दवाई का, वैसे ही यहां भी तड़क-भड़क देखके निवेश होता है, अंदर कोयो नहीं झांकता।

ई है डीयू। यहां दिल के बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) आपको भारी दिखेगा। ई निवेशक सब लिवाली के लिए जेतना उतावला रहता है, ओतना ही बिकवाली के लिए भी। यहां के निवेशक (इस्टूडेंट) को थोड़ा भी घाटा का अनुमान हुआ कि उ धराधर बिकवाली (छुटकारे) पर उतारू हो जाते हैं और लव का सेंसेक्स जमीन सूंघने लगता है। मतलब खूंटा तोड़के फरार। जबकि जेएनयू में खुदरा निवेश बेसी होता है, मतलब ई कि आप एक ठो शेयर को पकड़ के बैठे हैं। निवेश करके चांदी काट रहे लोगों को जैसे बाजार की जोखिम से डराने वाले लोग वहां बहुते हैं, वैसने देवदास बनने का खतरा बताने वाले लोग यहां बहुते हैं। जबकि हकीकत ई है कि ऐसन लोग खुदे निवेश नहीं कर पाने के चलते मर रहे होते हैं।

अगर दिल्ली के प्यार-व्यवस्था (अर्थव्यवस्था जैसे) का पैमाना जानना हो, तो आप डीयू (दिल-लगी यूनिवर्सिटी कहिए) को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और जेएनयू (जान-निसार यूनिवर्सिटी कहिए) को नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) मान सकते हैं। डीयू का लव मीटर हमेशा जेएनयू से हाई रहता है, जैसे बीएसई का एनएसई से होता है।

जैसे शेयर बाजार भारतीय अर्थव्यवस्था को परभावित करती है, वैसने प्यार का व्यापार दिल्ली की अर्थव्यवस्था को। उ जो सीढ़ी पर बैसल भाई साहब एक घंटा से मोबाइल पर बतिया रहे हैं, उ देश से गरीबी मिटाने के उपाय पर किसी से चर्चा नहीं कर रहे, बल्कि रोमांस फरमा रहे हैं। ई गुटर-गूं में मोबाइल औरो फोन कंपनी सब यहां रोज लाखों रुपया कमाती हैं। इरफान खान 'नाक बचाने' के लिए 10 रुपया का रिचार्ज कूपन खरीदने की सलाह मुफ्त में थोड़े देते हैं।

ई प्यार है कि दिल्ली के बिजनेसमैन सब जंगलो में मंगल कर रहे हैं। लोदी गार्डन औरो बोंटा पहाड़ी से लेकर बुद्धा गार्डन तक में दिल के मरीज सब रोज हजारों रुपया का कुरकुरे और कोल्ड ड्रिंक गटक जाता है। बेचारा 'जवान' सब दुख सह के गर्लफ्रेंड को महंगा-महंगा गिफ्ट देता है। इन्हीं लोगों के चलते तो बरिश्ता से लेकर मैकडोनाल्ड तक आबाद है औरो ब्यूटी पार्लर से लेकर स्नो-पाउडर के दुकान तक चल रहा है। प्यार नहीं मिलता, तो लोग देवदास बन जाते हैं, तभियो फायदा बाजारे का होता है, दारू खूब बिकती है। तो ई है प्यार का अर्थशास्त्र। अब आप ही कहिए इस अर्थशास्त्र में 'बजरंगी' सब बेकारे न समाजशास्त्र घुसाने लगता है!
Article: PRJ

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