Tuesday, February 07, 2006

आदर्श प्रेमी की विश लिस्ट

अमित जी ने आपने किस झमेले में डाल दिया. अभी तो चलना भी पूरी तरह आया नहीं कि आपने दिग्गजों के साथ रेस में खड़ा कर दिया, वो भी बिना किसी पूर्व सूचना के. अब जिस तरह क्लास में पिछली सीट पर बैठने वाले कमजोर छात्र से टीचर महोदय अचानक कोई प्रश्न का जवाब पूछ बैठते हैं, तो बेचारे छात्र की जो हालत होती है, बस वही इस समय मेरी भी है. वैसे प्रश्न बेहद सामान्य व आसान है और प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में इस मुद्दे को लेकर तकरार भी होती रहती है (अब ये मत पूछिएगा कि किस से), लेकिन जब से आपने आदर्श प्रेमी या भावी जीवनसाथी के बारे में लिखने के लिए टैग किया गया है, मानो रोज मन में आने वाली बातों को शब्द नहीं मिल रहे हैं.

वैसे मैंने कभी दोस्ती, प्यार वगैहर के बारे में सोचा नहीं था. ये सब मुझे अपने स्वभाव के विपरीत लगते थे. जैसे कि अमित ने अपनी टिप्पणी में कहा है विचार उग्र हैं, साथ ही स्वभाव भी. इसलिए हमेशा ही प्यार-मोहब्बत को अपने स्वभाव के विपरीत पाती थी. साथ ही स्कूल-कॉलेज के दिनों में कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया. लेकिन फिर एक दिन ऐसा भी आया जब खुद को दोस्ती की डोर से बंधा पाया और दोस्ती की ये डोर अब इतनी उलझ गई है कि हम चाहकर भी इसे सुलझा नहीं पा रहे. इसलिए इसे वक्त के हाथों में छोड़ देना ही बेहतर समझा है. फिर जो भी होगा, अंततः अच्छे के लिए ही होगा.

लीजिए बात कहा से कहा पहुंच गई. खैर वापिस मुद्दे पर चलते हैं. पिछले कुछ सालों में मैंने जो अनुभव किया है वो ये है कि जब तक हम किसी रिलेशन में बंधे नहीं होते, तो उसके बारे में जो विचार हमारे मन में होते हैं वह किसी संबंध में बंधने के बाद पूरी तरह बदल जाते है. यानी संबंधों की वास्तविकता हमारे ख्यालों से काफी अलग होती है. अक्सर लोगों को कहते सुना है कि जो जैसा है, उसे उसी रूप में स्वीकार करना चाहिए, लेकिन जब व्यावहारिक तौर पर ऐसा करने के बारी आती है तो ये काफी कठिन साबित होता है और हम अपने साथी को अपने अनुसार बदलने की कोशिश करने लगते हैं. यानी अपने प्रेमी/प्रेमिका को आदर्शों के अनुसार ढालने की कोशिश करते है. इसका एक दूसरा अर्थ यह है कि हम सभी ने अपने जीवनसाथी के बारे में कुछ न कुछ सोचा हुआ है कि उसे कैसे होना चाहिए. बस कभी ये आदर्श हमें साथी मिलने से पहले मालूम होते है तो कभी इनका अहसास हमें बाद में होता है.

आदर्श प्रेमी की विश लिस्ट

1. सबसे पहले तो उसे आपका दोस्त होना चाहिए. दोस्त ऐसा, जिसे आप अपने मन की हर छोटी बड़ी बात बता सके, वो भी बिना किसी बंदिश या सोच विचार के. इस बात पर फिल्म "कल हो न हो" के अंतिम सीन में प्रीति जिंटा ने एक डायलॉग भी कहा था, ठीक से याद नहीं पर कुछ ऐसा था, 'पति में दोस्त ढूंढते हैं मैंने अपने सबसे अच्छे दोस्त में अच्छा पति पा लिया'. सो पति तो आसानी से मिल जाते हैं, दोस्त मिलना जरा मुश्किल है. इसलिए पहली और सबसे बड़ी प्राथमिकता यही है.
2. दोस्त बनने के बाद जरुरी है कि वो आपको भी अपना दोस्त मानें. अर्थात सिर्फ आपकी सुने नहीं अपनी सुनाए भी.
3. आपकी हर जरुरत में आपके साथ हो. आपको कभी साथ मांगने की जरुरत न पड़े.
4. धैर्यवान हो. चूंकि मैं स्वभाव से कुछ क्रोधी प्रकृति हूं और जल्दी धैर्य खो देती हूं, इसलिए चाहूंगी कि ऐसे समय पर धैर्य से काम ले. चूंकि बड़े-बुजुर्ग कह गए हैं कि एक के गुस्सा होने पर दूसरे को शांत हो जाना चाहिए वरना तिल का ताड़ बनते देर नहीं लगती.
5. किसी भी विवादित मुद्दे को टालने की बजाए, आराम से बैठकर बात करके उस मुद्दे को सुलझाने का प्रयास करे.
6. आप पर विश्वास करे. खुद भी आगे बढ़े और आपको भी आगे बढ़ाए.
7. आपकी कमियों व अच्छाइयों दोनों को अपनाए. पुरुषों अच्छाइयों की तारीफ करने में जितनी कंजूसी दिखाते हैं, कमियां गिनाने में उतनी ही तेजी दिखाते हैं. कमियां दूर भी की जा सकती हैं अगर उन्हें पॉजिटिव एप्रोच के साथ बताया जाए.
8. और अंत में.... महोदय कभी-कभार छुट्टी के दिन बेड-टी बनाकर पिलाए.

और अब इस कड़ी का सबसे कठिन काम टैग करना...

शशि- कोई ओर चारा नहीं, संकट की घड़ी में सबसे पहले मित्रों की ही याद आती है न इसलिए.
प्रतीक- संभव है आपको भी किसी ने शिकार बनाया हो. पर चलिए मुझे फिलहाल कोई और सूझ नहीं रहा है.
गाड़ी का टाइम हो गया है, इसलिए अब दिमाग काम नहीं कर रहा. आज जल्दी में इतना ही. कमजोर और नए बच्चों को थोड़ी रियायत दीजिए और गलतियों पर ज्यादा ध्यान न दें.
शुभ रात्रि

1 Comments:

At 4:56 AM, Anonymous Anonymous said...

देर आए, दुरूस्त आए, आखिरकार आए तो सही। सो देर से ही सही, आपने भी अपने हृदय से दिमाग तक का राजमार्ग खोला तो सही!! :)

वैसे प्रश्न बेहद सामान्य व आसान है और प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में इस मुद्दे को लेकर तकरार भी होती रहती है (अब ये मत पूछिएगा कि किस से)
माता पिता के अलावा यदि वह कोई और है तो हमें भी बताएँ!! :) बताने की घड़ी का निर्णय आप पर छोड़ा पर ऐसा मत कीजिएगा कि कयामत तक प्रतीक्षा करनी पड़े!! ;)

वैसे मैंने कभी दोस्ती, प्यार वगैहर के बारे में सोचा नहीं था.
ऐसा मैंने अनुभवी लोगों से सुना है कि प्यार और दोस्ती के बारे में सोचा नहीं जाता, वे तो बस हो जाती हैं। वैसे मैं प्रत्येक कार्य सोच-विचार कर करने में विश्वास रखता हूँ, इसलिए अभी तक किसी से प्यार करा नहीं, या यूँ कहें कि होने नहीं दिया(जैसे "दिल चाहता है" में आमिर खान का कहना था)!! ;)

वैसे तो आपकी प्रविष्टि को पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि आपका प्रेमी पुल्लिंग है(या होगा), परन्तु नियमों में यह स्पष्ट कहा गया है कि आपको प्रेमी का लिंग बताना अनिवार्य है। तो कृपया सुधार करें। :)

 

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