Friday, March 31, 2006

व्यर्थ है यह मूर्ख दिवस

हे नादान आम आदमियों
हमेशा मूर्ख बनते रहो


आज मूर्ख दिवस है, यानी लोगों को बेवकूफ बनाने का एक सुनहरा दिन। आज आप दूसरों को गुस्से में अपने बाल नोचने की हद तक पहुंचाने लायक मूर्ख बनाने का अधिकार रखते हैं और वह भी बिना कोई गाली खाए! आमतौर पर जब आप कोई खास दिवस मनाते हैं, तो उसके पीछे उद्देश्य यह होता है कि उस दिन किसी ऐसे उपेक्षित चीज या फिर शख्स को याद कर लिया जाए, जिसे आप साल भर याद नहीं रखते, जैसे आप महिला दिवस, शहीद दिवस आदि मनाते हैं। ऐसे में मेरे समझ में यह बात नहीं आती कि आप लोग मूर्ख दिवस क्यों मनाते हैं? क्योंकि आप तो डेग-डेग पर दूसरों के द्वारा मूर्ख बनाए जाते हैं।

वैसे, आप इतने भोले हैं ही कि आपको मूर्ख बनाने में दूसरों को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है। अब अगर बिना किसी मेहनत के कोई मूर्ख बन जाए, तो उसे मूर्ख नहीं बनाने वाला ही तो बेवकूफ कहलाएगा न। ऐसे में आपको बेवकूफ बनाने वालों की भी कोई गलती नहीं है।

अब आप ही देख लीजिए कि आपको सालों भर मूर्ख बनाया जाता है और आप आप हैं कि आज मूर्ख दिवस मना रहे हैं। अभी-अभी सरकार ने अध्यादेश जारी कर आपको कुछ दिनों के लिए ही सही, मूर्ख तो बना ही दिया। आप यह सोचकर खुश हैं कि सरकार ने मिक्स्ड लैंड यूज के तहत आपको फूल लिबर्टी दे दी है कि आप नीचे दुकान रखिए और ऊपर मकान। कितने भोले हैं आप! आपको नहीं पता कि कल कोर्ट इस अध्यादेश को मानने से इनकार भी कर सकता है। तब सरकार आपसे कहेगी, 'लो, मैंने तो तुम्हारे कल्याण लाने के लिए कानून बनाया, लेकिन कोर्ट ने लंगड़ी लगा दी। अब मैं क्या करूं?' फिर वह आपसे सहानुभूति जताते हुए एक नया चुग्गा डालेगी और मुझे पूरा विश्वास है कि आप उस पर भी विश्वास कर लेंगे और अगले चुनाव में कांग्रेस को डुबाने की बात नहीं करेंगे।

सबसे ज्यादा मूर्ख तो आप बाजार के हाथों बनते हैं। आप 'सेल' में जाकर सौ रुपये की चीज दो सौ में खरीदते हैं और फिर भी खुशी-खुशी सबको यह बताते फिरते हैं कि आपने वह चीज सस्ते में 'लूट' ली है। ऐसे में अगर कोई आपसे यह कह दें कि आप ठगा गए हैं, तो बुरा मानने में आपको मिनट नहीं लगता। आप मान लेते हैं कि सामने वाले के लिए 'अंगूर खट्टे हैं' वाली बात है। वह तो आपकी सस्ती खरीदारी से जल रहा है। तो इतने बेवकूफ हैं आप।

मुझे तो विश्वास नहीं होता कि आप एक रुपये के लिए भी मूर्ख बन सकते हैं, जबकि हकीकत यही है कि बाजार आपको एक रुपये के लिए मूर्ख बना डालती है। आप कोई घटिया-सा डिटरजेंट या साबुन भी थोक में सिर्फ इसलिए खरीद डालते हैं कि उसकी खरीद पर एक रुपये की छूट का ऑफर होता है। तब आप एक मिनट को भी यह नहीं सोचते कि यह छूट आपकी सेहत पर भारी पड़ सकता है।

हद तो यह है कि आप खुद यह जानते हुए भी मूर्ख बन जाते हैं कि आपको बेवकूफ बनाया जा रहा है। इस तरह से मूर्ख बनाने में अपने देश की मनोरंजन इंडस्ट्री सबसे आगे है, लेकिन आप इतने भोले हैं कि आप उनका कभी बुरा नहीं मानते। क्या आपको याद है कि टीवी पर आने वाले रियलिटी शोज के अमित शाना, अभिजीत सावंत, काजी तौकीर, देबोजीत, विनीत आदि के रोने-गिड़गिड़ाने और इमोशनल ब्लैक मेलिंग के झांसे में आकर कितने रुपये एसएमएस और फोन कॉल्स में फूंके हैं या फिर करोड़ों रुपया जीतने के लिए केबीसी, कम या ज्यादा और डील या नो डील में कितने कॉल्स किए हैं? नहीं याद है न। होगा भी नहीं, यही तो बाजार की मीठी चाकू है, जिससे आपकी जेब काट ली जाती है और आपको पता भी नहीं चलता। कितने मूर्ख हैं आप कि गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए आप दो रुपये दान नहीं कर सकते, लेकिन ऐसे शोज के लिए एक एसएमएस पर छह रुपये खर्च करने में भी आपको कोई हिचक नहीं होती।

आपकी बेवकूफी का फायदा आपके बॉस भी कम नहीं उठाते। वह आपको साल भर यह आश्वासन देते रहते हैं कि आपके काम को देखते हुए इस बार वह आपको जरूर जबर्दस्त इंक्रीमेंट दिलवाएंगे, लेकिन होता कुछ नहीं। फिर भी आप इस आशा में ऑफिस में हाड़-तोड़ मेहनत करते रहते हैं कि अगले साल जरूर आपकी सेलरी अच्छी-खासी बढ़ जाएगी। यह सिलसिला कई सालों तक चलता रहता है और फिर आप इतने घिसे-पिटे हो चुके होते हैं कि कोई दूसरा आपको अपने यहां नौकरी नहीं देता!

यहां तक कि चौबीस घंट का खबरिया चैनल भी आपको मूर्ख बनाता रहता है। जब सचिन क्रिकेट टीम में नहीं होता, तब भी उसकी पूरी जीवनी दिखाता है और जब शतक मारता है, तब भी। अमिताभ की अमित कथा तब भी दिखाई जाती है, जब अमिताभ बीमार पड़ते हैं और तब भी दिखाई जाती है, जब जया बच्चन राज्यसभा से विदा होती हैं। और आप भी कम नहीं हैं, महीने में पांच बार एक ही चीज देखकर भी आपका जी नहीं उबता।

दिलचस्प बात यह है कि मनोरंजन के नाम पर जो टीवी सीरियल आपको जितना अधिक बेवकूफ बनाता है, आप उसकी टीआरपी रेटिंग उतनी ही हाई कर देते हैं। अब तो मैं विश्वास करने लगा हूं कि आपको कोई मूर्ख बना रहा है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह ज्यादा चालाक है, बल्कि वह इसलिए सफल हो जाता है कि आप अव्वल दर्जे के बेवकूफ हैं।

अगर आप बेवकूफ नहीं होते, तो चोपड़ाओं या जौहरों की फिल्में बनाने वाली दुकानें इतनी कमाई नहीं कर रही होतीं। वे अपनी पिछली फिल्म में ही थोड़ा-सा तड़का लगाकर आपके सामने परोस देते हैं और आप हैं कि उसे नई डिश समझकर उस पर टूट पड़ते हैं। आप बोस पर बनी अच्छी फिल्म को नकार सकते हैं, आप गांधी के बहाने संवेदनशील फिल्म बनाने वाले अनुपम खेर की हौसला आफजाई नहीं कर सकते, लेकिन मसाले में रंगी बसंती आपको बहुत भाती है। स्थिति तो यह है कि बेचारे गूंगे इकबाल की क्रिकेट में आपको कोई दिलचस्पी नहीं होती, लेकिन आमिर की मसालेदार क्रिकेट आपसे पूरा लगान वसूल लेती है। ऐसे में मुझे तो यही लगता है कि कुछ लोगों ने आपको मूर्ख बनाने के लिए आपकी कमजोर नस पहचान ली है और वे उसी के अनुसार आपको आसानी से बेवकूफ बनाते रहते हैं। आप हैं कि खुशी-खुशी बनते भी रहते हैं।

ऐसे ही अगर आप पुरुष हैं, तो आपको अंदाजा होगा कि कैसे आपकी बीवी साल भर मूर्ख बनाकर आपसे काम निकालती रहती हैं और अगर आप महिला हैं, तो आपको यह पता होगा कि कैसे हर असंभव काम को करने के लिए आपको नई जूलरी का प्रलोभन दिया जाता है। अगर आप बच्चे के अभिभावक हैं, तो आपको पता होगा कि बच्चे जब आपको बेवकूफ बना रहे होते हैं, तो कितने मासूम लगते हैं और अगर आप बच्चे को बेवकूफ बना रहे होते हैं, तो आपको कितना संतोष मिलता है, यह सोचकर कि आपने उसे फुसला लिया है। फिर यह काम तो साल भर चलता रहता है।

वैसे, मुझे लगता है कि आप मूर्ख बन जाते हैं, तो इसमें बहुत ज्यादा आपकी गलती भी नहीं है। दिक्कत यह है कि आप अव्वल दर्जे के संवेदनशील लोग हैं, इसलिए आप जल्दी बेवकूफ बन जाते हैं। रोने-धोने और पारिवारिक मूल्यों की बातें पता नहीं क्यों आपको इतना द्रवित कर देती हैं कि आप मूर्ख बन जाते हैं!

खैर, लीजिए, लगे हाथ मैंने भी आपको मूर्ख बना डाला। आपने सोचा होगा कि मैंने कितनी बड़ी-बड़ी बातें कर लीं, लेकिन आप ही बताइए इसमें कौन-सी बात मैंने नई कही है? फिर इतना बड़ा लेख पढ़कर आप भी तो मूर्ख ही बन गए न! अब आप ही बताइए, जब साल भर आप बेवकूफ बनते रहते हैं, तो फिर आज मूर्ख दिवस क्यों मना रहे हैं?

आपका
महामूर्खाधिपति

1 Comments:

At 9:10 AM, Blogger Manish Kumar said...

Achche examples diye aapne moorkh banane ke! Waise jaan samajh ke moorkh banna utna khalta bhi nahin kyuni kahin na kahin usse kuch santosh bhi milta hai:).

 

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