Thursday, March 23, 2006

दिल्ली की होली

होली जैसा परब और दिल्ली जैसा शहर। यहां के अपार्टमेंट कल्चर में जहां कि ई पूछ के रंग लगाना पड़ता है कि कहीं सामने वाला बुरा न मान जाए, एडिटर के निरदेश पर हम निकल पड़े होली का तैयारी देखने।

सबसे पहले हम पहुंचे कुरताफाड़ होली खेलने वाले 'गरीबों के मसीहा' के पास। हमने पूछा अबकी बेर केतना कुरता फाड़ना है? नराज हो गए, 'धुर बुड़बक, जले पर नमक छिड़कते हो। मीसा की महतारी का राज खतम हो गया, बारह ठो लोगों का पेट चलाने के लिए अकेला एक रेलवे वाला राज बचा है। उस पर कुरता फाड़े, तो देह ढकने के लिए कुरता का तुम दोगे?'

ठीके कहा उन्होंने, पिछले साल तो बिहार जैसन भैंस तबेले में थी, जब चाहा दुह लिया, अब का बैल दूहेंगे! अब हम जाना तो रबड़ी जी के पास भी चाहते थे, लेकिन जब से उनने विधानसभा में सत्ता पक्ष को चप्पल दिखाया है, हम कोनो गुस्ताखी करने से डर रहा हूं।

गरीबों के मसीहा का ई हाल देखा, तो सोचा तनिक गरीबो सब को देख लिया जाए। सो पहुंच गए कलुआ की झुग्गी में। वहां हड्डी का ढेर लगा था। हमने पूछा होली ...? बोला, 'एकदम टंच। इससे बढ़िया होली का होगा... आलू के भाव मुर्गा बिक रहा है... सुबह से शाम तक खाता रहता हूं... सब कुपोषण महीने भर में दूर हो गया। बर्ड फलू बहुत सही चीज है हो, ई साल भर नहीं रह सकता?'

बर्ड फलू के नाम सुनते ही हमरा होश गुम हो गया। वहां से निकले, तो चंदरमोहन जी के कुत्ता सब पीछे पड़ गया। तनिए दूर पर घेर के लगा भूंकने, 'बेकारे भाग रहे थे, तुम्हरे जैसे निरीह आदमी को काटकर हम क्या करूंगा? हमलोग तो ई कह रहा हूं कि हमरी होली एकदम झकास है। सहिए कहता है आदमी सब कि एक दिन कुत्ता का दिन भी फिरता है। देख लो, विदेशी ही सही, लेकिन अपना एक भाई, उस समाधि तक तो पहुंचिए न गया, जहां तुम भी नहीं जा सकते। हमरा लिए ई गरव का बात है, इसलिए एतना खुश हूं कि भर रात 'फाग के राग' में बिना कोनो कारण के भूंकता रहता हूं।'

इससे पहले कि ऊ टांग उठाता हमको रंगने के लिए, हम भाग लिए। रास्ते में कुछ कामरेड दादा भांग वाला रसगुल्ला उड़ाते मिल गए। अजीब ई था कि एतना भांग खाने के बाद भी उनको नशा नहीं आ रहा था! फिर जला हमरे दिमाग का भुकभुकिया ...याद आया कि आजकल तो ई लोग सत्ता के नशा में हैं। एतना बड़ा नशा के सामने भला भांग कहां से असर करेगा! खैर, हमने पूछा होली... ? बोल पड़े, 'होली तो होली, हम तो दीवालियो अभिए मना रहा हूं। का है कि बिहार चुनाव का हीरो के जे राव चुनाव आयोग छोड़ चुके हैं। मतलब ई बंगाल में सत्ता के रास्ता का सबसे बड़का कांटा खुदे निकल गया। अब तो सत्ता तय है।'

उसी समय बगल से कोर्ट के एक ठो जज गुजर रहे थे। बेचारा कार से निकले, कमर झुका हुआ था। बोले, 'काम करते-करते कमर टूट गया। दिल्ली में सरकार तो कोर्ट से ही चलता है। आज जेसिका लाल का हत्यारा ढूंढो, कल पूरा दिल्ली का नाला साफ करवाओ ... दिल्ली में व्यवस्था कायम करने से फुर्सत मिले, तब न होली मनाएं।' तब तक वहां दिल्ली के कुछ नेता सब रंग-अबीर पोत के पहुंच गए। कहने लगे, 'जज तो बेकारे शहर के अंदेशे में काजी जी जैसे दुबले हो रहे हैं। भांग खाके होली मनाएंगे, सो नहीं, तो हमरी फटी में टांग अड़ाते हैं। हमरी होली टंच है काहे कि हमरा होटल अवैध निरमाण के बावजूद टूटा नहीं है औरो उ नेताजी का अवैध घर भी सुरक्षित है। होली का हाल तो बेचारा जनता सब से पूछो, जिनका आशियाना कोर्ट की किरपा से एमसीडी वालों ने ढहा दिया।'

अब बारी थी नई दिल्ली टीशन की। पेसेंजरों का एतना भीड़ कि देखके होश गुम हो गया। कोई विदेशी पतरकार देखता, तो अपने एडिटर को खबर करता--हम भारत में इतिहास का सबसे बड़ा माइग्रेशन (देशांतरण) देख रहा हूं! आप कहें, तो आठ कॉलम की खबर लिख दूं।

अब उसको क्या पता कि ई तो यहां हर होली-दिवाली का दृश्य है। हम पलेटफारम पर पहुंचे ही थे कि पीछे से आए लोगों के रेला ने उठा के हमको गाड़ी के बगल में पटक दिया। एक भाई साहब से पूछा कि कहां जा रहे हैं? बोला, 'टरेन में चढ़ गए तो अपने घर सहरसा औरो आपके कारण नहीं चढ़ पाए तो भाभी जी से होली खेलने आपके घर... पता नहीं कहां कहां से आ जाते हैं!' एतने में एक धक्का औरो लगा... अब हम बॉगी में हूं। निकलने का कोई रास्ता अब है नहीं, सो हमहूं जा रहा हूं अब घर। वैसे, एक बात बताऊं, बढ़िया ही हुआ कि हम टरेन में चढ़ गए। अब तो घर जाने का बहाना है, ऑफिस से तो वैसे छुट्टी नहिए मिलती!
Article: PRJ

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