Thursday, March 30, 2006

दोहरे लाभ का चक्कर

दिल्ली में आजकल खूब झगड़ा हो रहा है। जनता जनता से लड़ रही है, नेता नेता से लड़ रहा है, तो कोर्ट सरकार से। कोई किसी को दोहरा लाभ होते नहीं देखना चाहता। अगर आप नेता हैं, तो लाभ का दो पद नहीं चलेगा औरो अगर जनता हैं, तो दोहरा लाभ नहीं चलेगा। खैर, जनता औरो नेता सब का आपस में लड़ना तो उनका जनम सिद्ध अधिकार है, लेकिन दुकानदार से जो रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन सब लड़ाई लड़ रहा है, उहो कम मजेदार नहीं है। हमरे मित्र हैं बाबू साहेब। एक ठो ऐसने एसोसिएशन के उ लीडर हैं। उ दू घंटा कोर्ट में इसलिए टैम देते हैं, ताकि एम्स रोड वाली अपनी दुकान बंद होने से बचा सके, तो पांच घंटा एसोसिएशन की मीटिंग में इसलिए टैम देते हैं, ताकि अपनी कॉलोनी के दुकानदारों की दुकान बंद करवा सके। दिल्ली का आधा आदमी अभी आपको बाबू साहेब के जैसे आधा दिन कोर्ट का समर्थन करते, तो आधा दिन कोर्ट को गरियाते मिल जाएंगे!

मतलब ई कि अपना तो दोहरा लाभ सब लेना चाहता है, लेकिन दूसरा ई फायदा उठाए, ई बात किसी को हजम नहीं हो रहा। अब कांग्रेसिये सब को देख लीजिए, जया बच्चन को लाभ के दू ठो पद पर देखना नहीं चाहते थे, लेकिन सोनिया लपेटे में आ गईं, तो सब को मिर्ची लग गई। हमको तो लगता है कि ई सब ईर्ष्या के कारण हो रहा है। आखिर घर में पत्नी और बाहर में प्रेमिका से गुटरगूं करने का दोहरा लाभ किसी और को होते कोई कैसे देख सकता है। हां, अगर खुद ऐसन मौका मिले, तो ई पुण्य कार्य कोयो छोड़ना नहीं चाहता।

ई ईर्ष्या बड़ी खराब चीज है हो। अब जो हमरे बाबू साहेब उनको कोयो और दिक्कत नहीं है। दिक्कत है तो बस एतना कि उनका पड़ोसी अपने घर में दुकान चलाता है। बाबू साहेब को ई बात बहुते अखरती है। कहां तो 20 किलोमीटर दूर अपनी दुकान पर रहकर दिन भर में उ घरवाली का एक-दू चुम्मा ही ले पाते हैं औरो उहो फोन पर, जबकि उनका पड़ोसी दिन भर बीवी की आंचल की हवा खाता रहता है। उसका दुकान का दुकान चल रहा है औरो चौबीसो घंटे बीवी का प्यारो मिल रहा है। बाबू साहेब की आंखों में पड़ोसी को मिल रहा यही दोहरा लाभ चुभ रहा है।

वैसे, बाबू साहेब दोहरा लाभ के विरोधी वैसने नहीं हैं। परिस्थिति ने उनको ऐसा बना दिया है। उ खुद हरियाणा से हैं, जहां लोग सब को बेटी तो नहीं चाहिए, लेकिन बेटे की शादी के लिए लड़की जरूर चाहिए। तमाम जुगत लगाकर उ बेटी का बाप होने से तो बच गए, लेकिन जबसे उनके नौकर ने लड़की खरीदकर शादी की है, उ चिंतित हो रहे हैं। बेटी को पालने और शादी की खरच से तो उ बच गए, लेकिन लड़कियों के अकाल में उनके बेटे को दस साल बाद बीवी नहीं मिलेगी, इसको लेकर उ चिंतित हैं। और तो और उनका दांव तब भी उल्टा पड़ा था, जब उन्होंने अपने सोसाइटी के आगे की झुग्गी बस्ती को ई सोचकर तुड़वा दिया था कि इससे सोसाइटी बदसूरत लगती है। सोसाइटी तो खूबसूरत लगने लगी, लेकिन झुग्गी टूटने से उसमें रहने वाली उनकी नौकरानी ने भी नौकरी छोड़ दी। फिर तो बाबू साहेब की बीवी ने बाबू साहेब की ऐसी फजीहत की कि सोसाइटी की खूबसूरती को वर्षों याद रखेंगे।
प्रिय रंजन झा

2 Comments:

At 9:51 PM, Anonymous Anonymous said...

sahi keh rahe ho ranjan, Chit bhi meri pat bhi meri

 
At 3:58 PM, Blogger अनुनाद सिंह said...

इसी को तो दोगलई करना कहते हैं |

 

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