Saturday, February 25, 2006

दूसरे ग्रह का प्राणी

हमको जिस चीज की शंका बहुते दिन से थी, उ अब सही साबित हो रही है। दिल्ली की कानून-व्यवस्था को देखकर हमको लगता था कि यहां जेतना गलत काम होता है, सबको दूसरे गरह का पराणी सब अंजाम देता है। उ तो गलत काम सब करके भाग जाता है, फंसता बेचारा दिल्ली का आदमी है। ई बात अलग है कि कभियो दिल्ली पुलिस इसके लिए पाकिस्तान को गलिया देती है, तो कभियो बेचारे हरियाणा औरो ऊपी के गुंडा-बदमाश को उसकी गाली सहनी पड़ती है।

अब देख लीजिए, एतना साल के बाद दिल्ली पुलिस ने ई तो साबित करिये न दिया कि जेसिका लाल का मरडर किसी मानव ने नहीं किया है! पुलिस को लगा कि एके ठो पिस्तौल से गोली मारी गई थी, लेकिन फारेंसिक विशेषज्ञ दो ठो पिस्तौल की बात कर रहा है। अब चूंकि दिल्ली पुलिस गोली मारने वाले एको ठो आदमी को नहीं पकड़ पाई औरो नेता के आरोपी बेटा सब केस से बरी हो गया, तो हमरे खयाल से कोर्ट को भी अब मान ही लेना चाहिए कि जेसिका को मारने के लिए दोसरे गरह का पराणी सब आया होगा। वैसे भी सुंदर लड़की के पीछे तो हजारों आदमी लगा रहता है, एक-दो ठो दोसरे गरह का पराणी लग गया, तो कौन बड़का बात हो गया!

वैसे, बिग्यानी पतरकार संजय बाबू ई सुनके हंसते हैं, लेकिन हमरे पास दोसरा गरह के पराणी का एक ठो नहीं, बत्तीस ठो परमाण है। अब देखिए, दिल्ली में जेतना अवैध निरमाण हुआ एमसीडी के ओभरसियर-इंजीनियर ने एको ठो को बनते देखा? नहीं देखा। सिरी फोर्ट में जो अंगरेज महिला से बलात्कार हुआ था, उसका दोषी पकड़ाया? नहीं पकड़ाया। एम्स वाले बलात्कार का दोषी पकड़ाया? नहीं पकड़ाया। 84 के सिख दंगा में किसी को सजा मिली? नहीं मिली। अब अपराधी पकड़ाएगा, तभिये न उसको सजा मिलेगी। औरो अपराधी तभिये पकड़ाएगा, जब उ आदमी होगा। अगर अपराधी आदमी होता, तो हजारों अवॉर्ड पाने वाली दिल्ली पुलिस से उ कैसे बच जाता? इसलिए आप मानिए या नहीं मानिए, हमको तो हंडरेड परसेंट लगता है कि दिल्ली में जेतना गलत काम होता है, दोसरे गरह का पराणी सब करता है औरो इसीलिए उ पकडै़वो नहीं करता है।

ऐसे ही जेतना अवैध निरमाण हुआ है, आप विशवास कीजिए सब दूसरे गरह के पराणियों ने रातों-रात किया है। दिन में करता, तो पकड़ा नहीं जाता। अब चूंकि न तो दूसरे गरह का पराणी दिखता है और न उसका बनाया निरमाण, इसलिए हमरा मानना है कि बेचारे एमसीडी के निर्दोष इंजीनियर सब को माफ कर देना चाहिए।

वैसे, हमरे एक मित्र का कहना है कि दिल्ली के अफसर हों या एमसीडी के करमचारी, सब में दोसरा गरह से आए पराणियों ने एक ठो नायाब रोग फैला दिया है। ई रोग का नाम है लॉ-ब्लाइंड (जैसन 'कलर ब्लाइंड' होता है, वैसने), जो घूस से फैलता है औरो इससे ग्रस्त आदमी को बस वही चीज देखाई पड़ता है, जो कानून के अनुसार हो। मतलब उनको गलत काम औरो गलत आदमी दिखवे नहीं करता है। अब जो चीज दिखता ही नहीं है, उस पर कंट्रोल तो भगवान ही कर सकते हैं। सो, भूल जाइए पुलिस, सरकार औरो कोर्ट को, भगवत भजन कीजिए। दोसरा गरह के पराणियों से आपकी रक्षा बस भगवाने कर सकते हैं।
Article: PRJ

Monday, February 20, 2006

फितरती बेईमान होते हैं राजनेता!

भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में लोगों की यह आम धारणा है कि नेता और खास कर राजनेता बेईमान होते हैं। वर्ल्ड इकोनामिक फोरम के लिए 60 देशों में वॉयस ऑफ पीपुल की ओर से किए गए एक सर्वेक्षण में 61 प्रतिशत लोगों का मत था कि राजनेता बेईमान होते हैं।

बहरहाल राजनेताओं को यह जान कर थोड़ी राहत मिल सकती है कि उनके प्रति लोगों की सोच में थोड़ा सकारात्मक बदलाव आ रहा है क्योंकि 2004 के ऐसे ही सर्वेक्षण में 62 फीसदी लोग इन्हें बेईमान मानते थे।

राजनेताओं की बनिस्बत आर्थिक नेताओं के बारे में लोगों की थोड़ी अच्छी राय है। 40 फीसदी लोग ही उन्हें बेईमान मानते हैं। उनकी छवि में भी थोड़ा सुधार आया है। 2004 में 43 फीसदी लोगों की निगाह में आर्थिक नेता बेईमान थे।

ये सर्वेक्षण पिछले साल नवंबर और दिसंबर में किए गए। सर्वेक्षण के दायरे में 60 देशों के 50,000 लोगों को शामिल किया गया। विश्व आर्थिक फोरम का कहना है कि ये नतीजे दो अरब से ज्यादा लोगों के विचारों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

Wednesday, February 15, 2006

एक कानपुरिया की तलाश

आज अतुल अरोरा जी का संस्मरण "लाइफ इन ए एचओवी लेन" पढ़ा. संस्मरण इतना पसंद आया कि आज ही 10 के 10 अध्याय पढ़ डाले. बीच में छोड़ने का मन नहीं हुआ. एक कानपुरिया के अमेरिका तक के सफर की दास्तान वाकई शानदार है.

संस्मरण को पढ़कर एक मित्र रवि अवस्थी की याद आ गई, जिससे अब कोई संपर्क नहीं है. आखिरी बार कब बात हुई थी ये भी याद नहीं. शायद कोई छह-सात साल पहले. अचानक इस मित्र की याद शायद इसलिए आ गई कि वो भी एक कानपुरिया ही है और कभी उसका भी सपना यूएस जाना था.
संभव है आज उसका सपना पूरा हो गया हो और उसे दिल्ली के अपने पुराने संपर्कों की याद तक न हो. पर न जाने क्यों फिर भी आज उसे तलाशने की इच्छा हो रही है. ऐसा नहीं है कि इससे पहले कभी उसकी याद नहीं आई पर यही सोचकर तस्सली कर ली कि संपर्क करने का कोई साधन नहीं है. जिस समय दोस्ती हुई थी उस समय न तो मोबाइल क्रांति भारत में हुई थी और न ही इंटरनेट का इतना प्रचार-प्रसार था कि मेल इत्यादि की जानकारी होती. लगता नहीं कभी उससे संपर्क हो सकेगा.

रवि दिल्ली के लाजपत नगर में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम करता था और अपने दोस्त पंकज के साथ जनकपुरी में महावीर एन्कलेव में रहता था. पंकज भी रवि के ही ऑफिस में काम करता था. रवि से मेरा परिचय पड़ोस में रहने वाली मेरी एक मित्र के जरिए हुआ था. रवि से उतना अधिक मेरा परिचय नहीं था. बस कुछेक बार फोन पर बात हुई थी और दो या तीन बार संक्षिप्त मुलाकात. एक बार उसने बताया था कि उसे अरहर की दाल और चावल पसंद है.

बस इतनी ही पहचान थी उससे. अब वो कहां है, क्या कर रहा है कुछ पता नहीं. अब कभी उस कानपुरिये से बात होगी लगता नहीं. हो सकता है वो भी इसी तरह पुराने दोस्तों को याद करता हो....

Friday, February 10, 2006

दिल्ली, यानी दिल का बाजार

दिल्ली को दिलजला सब दिल का बाजार मानता है, जबकि हमको ई प्यार का शेयर बाजार लगता है। उधर, शेयर बाजार में सेंसेक्स 10,000 पार कर रहा है, इधर लव का सेंसेक्स दिल्ली में टाप पर है। लेकिन 14 तारीख को आप इसका राग 'विरोध बजरंगी' भी सुनिएगा, लेकिन हमरा मानना है कि 'बाजार के धुन' के सामने कुछ नहीं सुनाई देता।

आइए, हम आपको घुमाते हैं बाजार। शेयर बाजार के स्मॉल कैप, मिड कैप, बिग कैप जैसन शेयर के जैसे यहां भी आपको इन्वेस्टमेंट के लिए हर तरह का मुर्गा-मुर्गी मिल जाएगा। रंग, रूप, साइज औरो भविष्य को देखकर निवेश करते रहिए बस। जोखिम आपका। जैसे लोग बेसी कमाई कराने वाले शेयर में निवेश करता है, ई नहीं देखते कि उ दारू का है कि दवाई का, वैसे ही यहां भी तड़क-भड़क देखके निवेश होता है, अंदर कोयो नहीं झांकता।

ई है डीयू। यहां दिल के बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) आपको भारी दिखेगा। ई निवेशक सब लिवाली के लिए जेतना उतावला रहता है, ओतना ही बिकवाली के लिए भी। यहां के निवेशक (इस्टूडेंट) को थोड़ा भी घाटा का अनुमान हुआ कि उ धराधर बिकवाली (छुटकारे) पर उतारू हो जाते हैं और लव का सेंसेक्स जमीन सूंघने लगता है। मतलब खूंटा तोड़के फरार। जबकि जेएनयू में खुदरा निवेश बेसी होता है, मतलब ई कि आप एक ठो शेयर को पकड़ के बैठे हैं। निवेश करके चांदी काट रहे लोगों को जैसे बाजार की जोखिम से डराने वाले लोग वहां बहुते हैं, वैसने देवदास बनने का खतरा बताने वाले लोग यहां बहुते हैं। जबकि हकीकत ई है कि ऐसन लोग खुदे निवेश नहीं कर पाने के चलते मर रहे होते हैं।

अगर दिल्ली के प्यार-व्यवस्था (अर्थव्यवस्था जैसे) का पैमाना जानना हो, तो आप डीयू (दिल-लगी यूनिवर्सिटी कहिए) को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और जेएनयू (जान-निसार यूनिवर्सिटी कहिए) को नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) मान सकते हैं। डीयू का लव मीटर हमेशा जेएनयू से हाई रहता है, जैसे बीएसई का एनएसई से होता है।

जैसे शेयर बाजार भारतीय अर्थव्यवस्था को परभावित करती है, वैसने प्यार का व्यापार दिल्ली की अर्थव्यवस्था को। उ जो सीढ़ी पर बैसल भाई साहब एक घंटा से मोबाइल पर बतिया रहे हैं, उ देश से गरीबी मिटाने के उपाय पर किसी से चर्चा नहीं कर रहे, बल्कि रोमांस फरमा रहे हैं। ई गुटर-गूं में मोबाइल औरो फोन कंपनी सब यहां रोज लाखों रुपया कमाती हैं। इरफान खान 'नाक बचाने' के लिए 10 रुपया का रिचार्ज कूपन खरीदने की सलाह मुफ्त में थोड़े देते हैं।

ई प्यार है कि दिल्ली के बिजनेसमैन सब जंगलो में मंगल कर रहे हैं। लोदी गार्डन औरो बोंटा पहाड़ी से लेकर बुद्धा गार्डन तक में दिल के मरीज सब रोज हजारों रुपया का कुरकुरे और कोल्ड ड्रिंक गटक जाता है। बेचारा 'जवान' सब दुख सह के गर्लफ्रेंड को महंगा-महंगा गिफ्ट देता है। इन्हीं लोगों के चलते तो बरिश्ता से लेकर मैकडोनाल्ड तक आबाद है औरो ब्यूटी पार्लर से लेकर स्नो-पाउडर के दुकान तक चल रहा है। प्यार नहीं मिलता, तो लोग देवदास बन जाते हैं, तभियो फायदा बाजारे का होता है, दारू खूब बिकती है। तो ई है प्यार का अर्थशास्त्र। अब आप ही कहिए इस अर्थशास्त्र में 'बजरंगी' सब बेकारे न समाजशास्त्र घुसाने लगता है!
Article: PRJ

Tuesday, February 07, 2006

आदर्श प्रेमी की विश लिस्ट

अमित जी ने आपने किस झमेले में डाल दिया. अभी तो चलना भी पूरी तरह आया नहीं कि आपने दिग्गजों के साथ रेस में खड़ा कर दिया, वो भी बिना किसी पूर्व सूचना के. अब जिस तरह क्लास में पिछली सीट पर बैठने वाले कमजोर छात्र से टीचर महोदय अचानक कोई प्रश्न का जवाब पूछ बैठते हैं, तो बेचारे छात्र की जो हालत होती है, बस वही इस समय मेरी भी है. वैसे प्रश्न बेहद सामान्य व आसान है और प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में इस मुद्दे को लेकर तकरार भी होती रहती है (अब ये मत पूछिएगा कि किस से), लेकिन जब से आपने आदर्श प्रेमी या भावी जीवनसाथी के बारे में लिखने के लिए टैग किया गया है, मानो रोज मन में आने वाली बातों को शब्द नहीं मिल रहे हैं.

वैसे मैंने कभी दोस्ती, प्यार वगैहर के बारे में सोचा नहीं था. ये सब मुझे अपने स्वभाव के विपरीत लगते थे. जैसे कि अमित ने अपनी टिप्पणी में कहा है विचार उग्र हैं, साथ ही स्वभाव भी. इसलिए हमेशा ही प्यार-मोहब्बत को अपने स्वभाव के विपरीत पाती थी. साथ ही स्कूल-कॉलेज के दिनों में कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया. लेकिन फिर एक दिन ऐसा भी आया जब खुद को दोस्ती की डोर से बंधा पाया और दोस्ती की ये डोर अब इतनी उलझ गई है कि हम चाहकर भी इसे सुलझा नहीं पा रहे. इसलिए इसे वक्त के हाथों में छोड़ देना ही बेहतर समझा है. फिर जो भी होगा, अंततः अच्छे के लिए ही होगा.

लीजिए बात कहा से कहा पहुंच गई. खैर वापिस मुद्दे पर चलते हैं. पिछले कुछ सालों में मैंने जो अनुभव किया है वो ये है कि जब तक हम किसी रिलेशन में बंधे नहीं होते, तो उसके बारे में जो विचार हमारे मन में होते हैं वह किसी संबंध में बंधने के बाद पूरी तरह बदल जाते है. यानी संबंधों की वास्तविकता हमारे ख्यालों से काफी अलग होती है. अक्सर लोगों को कहते सुना है कि जो जैसा है, उसे उसी रूप में स्वीकार करना चाहिए, लेकिन जब व्यावहारिक तौर पर ऐसा करने के बारी आती है तो ये काफी कठिन साबित होता है और हम अपने साथी को अपने अनुसार बदलने की कोशिश करने लगते हैं. यानी अपने प्रेमी/प्रेमिका को आदर्शों के अनुसार ढालने की कोशिश करते है. इसका एक दूसरा अर्थ यह है कि हम सभी ने अपने जीवनसाथी के बारे में कुछ न कुछ सोचा हुआ है कि उसे कैसे होना चाहिए. बस कभी ये आदर्श हमें साथी मिलने से पहले मालूम होते है तो कभी इनका अहसास हमें बाद में होता है.

आदर्श प्रेमी की विश लिस्ट

1. सबसे पहले तो उसे आपका दोस्त होना चाहिए. दोस्त ऐसा, जिसे आप अपने मन की हर छोटी बड़ी बात बता सके, वो भी बिना किसी बंदिश या सोच विचार के. इस बात पर फिल्म "कल हो न हो" के अंतिम सीन में प्रीति जिंटा ने एक डायलॉग भी कहा था, ठीक से याद नहीं पर कुछ ऐसा था, 'पति में दोस्त ढूंढते हैं मैंने अपने सबसे अच्छे दोस्त में अच्छा पति पा लिया'. सो पति तो आसानी से मिल जाते हैं, दोस्त मिलना जरा मुश्किल है. इसलिए पहली और सबसे बड़ी प्राथमिकता यही है.
2. दोस्त बनने के बाद जरुरी है कि वो आपको भी अपना दोस्त मानें. अर्थात सिर्फ आपकी सुने नहीं अपनी सुनाए भी.
3. आपकी हर जरुरत में आपके साथ हो. आपको कभी साथ मांगने की जरुरत न पड़े.
4. धैर्यवान हो. चूंकि मैं स्वभाव से कुछ क्रोधी प्रकृति हूं और जल्दी धैर्य खो देती हूं, इसलिए चाहूंगी कि ऐसे समय पर धैर्य से काम ले. चूंकि बड़े-बुजुर्ग कह गए हैं कि एक के गुस्सा होने पर दूसरे को शांत हो जाना चाहिए वरना तिल का ताड़ बनते देर नहीं लगती.
5. किसी भी विवादित मुद्दे को टालने की बजाए, आराम से बैठकर बात करके उस मुद्दे को सुलझाने का प्रयास करे.
6. आप पर विश्वास करे. खुद भी आगे बढ़े और आपको भी आगे बढ़ाए.
7. आपकी कमियों व अच्छाइयों दोनों को अपनाए. पुरुषों अच्छाइयों की तारीफ करने में जितनी कंजूसी दिखाते हैं, कमियां गिनाने में उतनी ही तेजी दिखाते हैं. कमियां दूर भी की जा सकती हैं अगर उन्हें पॉजिटिव एप्रोच के साथ बताया जाए.
8. और अंत में.... महोदय कभी-कभार छुट्टी के दिन बेड-टी बनाकर पिलाए.

और अब इस कड़ी का सबसे कठिन काम टैग करना...

शशि- कोई ओर चारा नहीं, संकट की घड़ी में सबसे पहले मित्रों की ही याद आती है न इसलिए.
प्रतीक- संभव है आपको भी किसी ने शिकार बनाया हो. पर चलिए मुझे फिलहाल कोई और सूझ नहीं रहा है.
गाड़ी का टाइम हो गया है, इसलिए अब दिमाग काम नहीं कर रहा. आज जल्दी में इतना ही. कमजोर और नए बच्चों को थोड़ी रियायत दीजिए और गलतियों पर ज्यादा ध्यान न दें.
शुभ रात्रि

Friday, February 03, 2006

बिहार कॉलिंग!

दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उस दिन विसेसर चचा मिल गए। दिल्ली आते तो बहुतों को देखा था, लेकिन बोरिया -बिस्तर समेट के यहां से जाना पहली बार देख रहा था। इससे पहले कि आश्चर्य से हमरी आंख बाहर निकल आती, उ फुसफुसाए- 'बिहार कॉलिंग'... नीतिश बाबू गांधी मैदान में मास्टरी का जुवाइनिंग लेटर लेकर बैठल हैं, खाली आपके पास बीएड की डिगरी होनी चाहिए। इसीलिए ई मुलुक को टा-टा!

हमरा तो जैसे माथा चकरा गया। अटल जी अगर हजार पूर्ण चांद देख चुके हैं, तो विसेसर चचा जरूर पांच सौ देख चुके होंगे। अब इस उमर में उ मास्टर का नौकरी करेंगे, तो उनके कलम-घिस्सू बेटा पप्पुआ को नौकरी कहां से लगेगी? ई कैसन क्रांतिकारी विचार है भाई? चचा बोले, 'ई तो नीतिश का 'बिग बाजार' के जैसे 'महा छूट ऑफर' है, जो पहले पहुंचे, सारा लूट ले। हम धरती पर पहिले आए, इसीलिए बीएड कर पाए, इसलिए अब हमको नौकरी मिलेगी, भले ही पप्पुआ हमेशा से बेसी विदवान हो। अगर हमहूं पप्पुआ जैसे लालू कालीन अभिशप्त पीढ़ी के होते, तो बीएड का होता है, कभियो नहीं जानते। उनको नौकरी तो देनी नहीं थी किसी को, तो काहे का ट्रेनिंग स्कूल? बेकारी में लोग गाय-भैंस ही तो चराएंगे, सो सारा पैसा चरवाहा विद्यालय के खाते में दे दिया और बाद में उसे भी चर लिया।'

अब तक हम संभल चुके थे, 'बीएड कॉलेज नहीं होने से तो चलिए एक ही पीढ़ी बर्बाद हुई, लेकिन आप मास्टर बनेंगे, तो वहां की सात पीढ़ी बर्बाद होती जाएगी।'

सुनके चचा तंबाकू ठोंकने में मगन हो गए और हम सोचने में। हमको नीतिश बाबू पर तरस आने लगा। अच्छा- खासा आदमी कुर्सी पर बैठते ही बौरा गया! सच कहूं, तो हमको बिहार के सीएम के कुर्सिये में खोट नजर आने लगा है- भगवानों बैठ जाएं, तो चिरकुट हो जाएं। हम चिंता में थे कि पार्किंग का ठेकेदारी करते-करते 'ए पलस बी का होल स्क्वायर' वाला बेसिक फारमूला तक भूल चुके चचा पढ़ाएंगे का? तनिके देर में हमको पप्पुआ दोषी लगने लगा? अब आप ही बताइए, उसको नीतिश के राज में नौकरी चाहिए थी, तो चचा से पैदा होने का इंतजार क्यों किया? किसी और का बेटा होकर पहले दुनिया में आ जाता। वैसे, दोष चचो का नहीं है। का है कि चाची मिलवे नहीं की थी, तो चचा क्या खाकर पप्पुआ को पैदा करते!

हालांकि पप्पुआ अपनी गलती नहीं मानता। गलती है तो लालू, नीतिश औरो चचा की। ऐसन में उ क्यों भुगते? उसने तो सिकंदर और बाबर के पूरा खानदान से लेकर सोनिया गांधी के नाती तक का नाम रट के जीके मजबूत किया है। परीक्षा हो, तो उ मास्टर बने। लेकिन नीतिश अड़ल हैं कि बीएड नहीं किया, तो नौकरी नहीं मिलेगी। अरे भाई, जब 15 साल पहिले राज्य से बीएड कॉलेज खतम हो गया है, तो डिगरी कहां से लाएगा लोग?

खैर, हमको पप्पुआ के लिए इसकोप अभियो नजर आ रहा है। का है कि चिकना घड़ा पर कभियो रंग नहीं चढ़ता है। इतने साल में सब ज्ञान को तंबाकू के गर्दा में उड़ा चुके विसेसर चचा को क्लास में टिकने लायक बनाने के लिए नितीश को उन्हें दस आदमी से ट्यूशन पढ़वाना होगा। बस हो तो गया! उन दस में एक पप्पुआ तो होगा ही।

Article: PRJ