Saturday, October 28, 2006

छठ की छटा अनूठी

छठ पर्व प्रकृति पूजा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। सूर्य देव की यह पूजा दीवाली से छह दिनों तक चलती है। जातपांत के बंधन से परे इस पर्व की सबसे बड़ी बात यह है कि सूर्य पूजन के लिए किसी पंडित की आवश्यकता भी नहीं होती।

इस पूजा में बांस के बने बर्तनों में ठेकुआ, भुसवा, फल, मिठाई आदि भर कर नदी या सरोवर के जल में स्नान कर और उसी में खड़े हो डूबते और उगते समय को अर्ध्य अर्पित किया जाता है। छठ व्रत का विधिवत शुभारंभ नहाय खाय से हो जाता है और सप्तमी पारण मोरका अर्ध्य तक चलता है।

सबसे पहले पंचमी को दिन भर व्रत रख कर रात में गुड़ रसिया यानी गुड़ और चावल का प्रसाद बनाकर व्रतकटी खाती हैं। इसके बाद बिना अन्न जल सप्तमी तक व्रत में रहती हैं। इसमें पेड़ सहित हल्दी, ईख, अदरक, शकरकंद आदि का प्रयोग प्रसाद के रूप में होता है। पूजा के दौरान हाथी, कुरबार कलश, चौमुख दीप, आरतपात वगैरह का विशेष महत्व होता है। सप्तमी के दिन सुबह में गाय के दूध से उगते सूरज को अर्ध्य देकर भगवान भास्कर की पूजा करते हैं। कहते हैं छठ रोगनाशक पर्व है।

छठ पर्व के अवसर पर सफाई और गीतों का भी खास महत्व है। इन दिनों आप बिहार और यूपी में अगर निकल जाएं तो वे शहर और कस्बे भी साफ मिलेंगे जहां हरदम गंदी पसरी रहती है। छोटी-बड़ी गलियां हों या सड़कें, लोग बाग नगर पालिका या नगर निगम का इंतजार न कर खुद बिना किसी शिकायत के सफाई करते हैं। शहर और कस्बे तो दुल्हन की तरह सज जाते हैं। साफ सुथरी और सजी-धजी सड़कों पर झुंड के झुंड महिलाएं गीत गाती चलती हैं तो छठ की छटा देखने लायक होती है।
(छठ पर्व के बारे में और जाने)

Friday, October 20, 2006

शुभ दीपावली!

आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!!!

Thursday, October 19, 2006

पटाखे जलाएं, डेंगू भगाएं

जी हां, जब से पटाखों और आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगाया गया है, तब से मलेरिया जैसी बीमारियों का आतंक कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है. कुछ साल पहले तक किसी ने डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों के बारे में सुना तक नहीं था. और अब हालात ये हैं कि घर-बाहर हर जगह मच्छरों का आतंक फैला है. लेकिन जब से प्रदूषण नियंत्रण के लिए उपाय किए जाने लगे, पटाखों से फैलने वाले प्रदूषण और आतिशबाजी के नुकसान के बारे में अभियान चलाया जाने लगा है तभी से मच्छरों की चांदी हो गई है. लोगों का जमकर खून चूस रहे हैं और दिन-रात अपनी संख्या बढ़ा रहे हैं.

समस्या यह है कि इनसे छुटकारा पाने के लिए किए जाने वाले पारंपरिक उपाय आजकल के एडवांस कल्चर से मेल नहीं खाते. कुछ साल पहले तक मानसून के बाद घरों को सीलनमुक्त करने और मक्खी-मच्छरों से बचाने के लिए त्योहारी सीजन में रंगाई-पुताई कराई जाती थी. इसके लिए चुना, सफेदी का उपयोग किया जाता था पर अब इसकी जगह प्लास्टिक पेंट और डिस्टेंपर ने ले ली है.

यही नहीं, घर के बाहर हरियाली और पेड़-पौधें देखने के लिए तरसने वाले महानगर निवासी घर में पेड़-पौधों को लगाकर इस कमी को पूरा करते हैं. उनके बेडरुम में भी आपको विभिन्न तरह के पेड़ पौधे देखने को मिल जाएंगे. अब आप यह भी कह सकते हैं कि हम खुद ही डेंगू के पनपने के लिए घरों में जंगल तैयार कर रहे हैं. घरों में लगाए जाने वाले छोटे-छोटे पौधे मच्छरों को पनपने के लिए उपयुक्त माहौल प्रदान कर रहे है. वहीं दूसरी ओर, घर-घर में एयरकंडीशनर और कूलर की मौजूदगी ने हम इंसानों की ही नहीं बल्कि मच्छरों की जिंदगी भी सुकूनभरी बनी दी है और अब ये हमारे स्थायी साथी बन गए हैं जो समय-समय पर किसी न किसी “अवतार” (मलेरिया, डेंगू, चिकगुनिया) में अपनी मौजूदी दर्शाते रहते हैं.


अब क्या?

प्रदूषण नियंत्रण के सीमित और सुरक्षित उपायों के बारे में पुनर्विचार किया जाना जरुरी है. ऐसी समस्याओं से निपटने के लिए कुछ हद तक प्रदूषण भी जरुरी हैं. शहरों में प्रदूषण नियंत्रण के लिए सीएनजी के प्रयोग को जरुरी करने से दिल्ली की हवा में प्रदूषण में तो कमी आई है. लेकिन यह भी ध्यान देने योग्य है कि पिछले कुछ सालों में ही मच्छरों से होने वाली घातक बीमारियों का भी जन्म हुआ है. पिछले कुछ सालों में घरों में चुल्हा और अँगीठी का प्रयोग भी बहुत कम हो गया है और इसकी जगह एलपीजी ने ले ली है. चुल्हे और अँगीठी का धुंआ बंद होने से भी मच्छरों को घरों में घुसपैठ करने का भरपूर मौका मिला है.

प्रदूषण के उपायों के साथ-साथ इन समस्याओं पर भी गौर किया जाना चाहिए और इसके बारे में अध्ययन होना चाहिए. शहरों में हरियाली को बढ़ाने के उपाए होने चाहिए. बगीचों, पार्कों और जंगलों का विकास किया जाना चाहिए. लेकिन घरों में ऐसे पेड़-पौधों को उगाने से बचना चाहिए जिनमें रोज पानी देना पड़ता है. अगर पेड़-पौधों घरों में लगाने ही हैं तो फन्स, कैक्टस और मॉस्किटो रेप्लेंट यानी मच्छर भगाने वाले औषधीय पौधों जैसे तुलसी को घर में लगाएं.

घरों में हर साल साफ-सफाई और चुना-मिट्टी से रंगाई-पुताई जारी रखी जाए. इसमें किसी तरह की शर्म या पिछड़ापन महसूस करने की जरुरत नहीं हैं. ये ध्यान रखें कि भारत एक उष्णकटीबंधीय देश है. हमारे देश की जलवायु और वातावरण यूरोप और अमेरिका से बिल्कुल अलग है.

तो भूल जाइए एक्सपर्ट की राय. इस दिवाली खूब पटाखें जलाएं और आतिशबाजी का मजा लें. बिजली के दीयों से घर को रोशन करने की बजाए तेल और घी के दीपक जलाएं और रोशनी के इस पर्व का आनंद लें.

(लेख का आइडिया यहां से लिया)

Tuesday, October 03, 2006

अपनी भी साइट हैक हुई याहूज हैकर्स डे पर

लीजिए जनाब याहू के पब्लिक “हैक डे” (खबर पढ़े) का आयोजन क्या किया किसी महाशय ने हमारी अपनी साइट को हैक कर लिया. अपनी इसलिए क्योंकि इस साइट के परोक्ष रुप से ही सही पर हम जुड़े हुए हैं.

बात दरअसल ये है कि आज ऑफिस पहुंचते ही मेरे सहयोगी ने बताया कि किसी हैकर महाशय ने उनकी साइट के फोरम को हैक कर लिया है. हैक करने वाले वाले महाशय कौन है इसके बारे में उनकी साइट पर जाने पर भी कुछ पता नहीं चल सका. साइट हैक करके महाशय अफगान का नक्शा चस्पा कर गए हैं और उनके बारे में जानकारी जुटाना इसलिए संभव नहीं हो सका कि उनकी साइट फारसी में है. हां, पर साइट विजिट करने पर ये आभास हुआ कि हैकर महोदय को फोरम से कुछ ज्यादा ही लगाव है और उन्होंने अलग-अलग साइटों के करीब 25-30 फोरम्स को निशाना बनाया है. हैक होने वाले सभी लिंक उनकी साइट पर मौजूद हैं.

अब परेशानी है कि मेरे सहयोगी को ये समझ नहीं आ रहा कि इस समस्या का निदान कैसे किया जाए. तकनीकी सहयोग के लिए सर्वर एडमिनस्ट्रेशन को संपर्क साध लिया है, पर सर्वर कंपनी हैदराबाद में होने के कारण वहां से मदद मिलने में देर होगी. इसलिए सभी तकनीकी जानकारों से मदद की अपेक्षा है. क्या किया जा सकता है इसके बारे में जो भी संभव हो बताए.