पटाखे जलाएं, डेंगू भगाएं
जी हां, जब से पटाखों और आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगाया गया है, तब से मलेरिया जैसी बीमारियों का आतंक कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है. कुछ साल पहले तक किसी ने डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों के बारे में सुना तक नहीं था. और अब हालात ये हैं कि घर-बाहर हर जगह मच्छरों का आतंक फैला है. लेकिन जब से प्रदूषण नियंत्रण के लिए उपाय किए जाने लगे, पटाखों से फैलने वाले प्रदूषण और आतिशबाजी के नुकसान के बारे में अभियान चलाया जाने लगा है तभी से मच्छरों की चांदी हो गई है. लोगों का जमकर खून चूस रहे हैं और दिन-रात अपनी संख्या बढ़ा रहे हैं.
समस्या यह है कि इनसे छुटकारा पाने के लिए किए जाने वाले पारंपरिक उपाय आजकल के एडवांस कल्चर से मेल नहीं खाते. कुछ साल पहले तक मानसून के बाद घरों को सीलनमुक्त करने और मक्खी-मच्छरों से बचाने के लिए त्योहारी सीजन में रंगाई-पुताई कराई जाती थी. इसके लिए चुना, सफेदी का उपयोग किया जाता था पर अब इसकी जगह प्लास्टिक पेंट और डिस्टेंपर ने ले ली है.
यही नहीं, घर के बाहर हरियाली और पेड़-पौधें देखने के लिए तरसने वाले महानगर निवासी घर में पेड़-पौधों को लगाकर इस कमी को पूरा करते हैं. उनके बेडरुम में भी आपको विभिन्न तरह के पेड़ पौधे देखने को मिल जाएंगे. अब आप यह भी कह सकते हैं कि हम खुद ही डेंगू के पनपने के लिए घरों में जंगल तैयार कर रहे हैं. घरों में लगाए जाने वाले छोटे-छोटे पौधे मच्छरों को पनपने के लिए उपयुक्त माहौल प्रदान कर रहे है. वहीं दूसरी ओर, घर-घर में एयरकंडीशनर और कूलर की मौजूदगी ने हम इंसानों की ही नहीं बल्कि मच्छरों की जिंदगी भी सुकूनभरी बनी दी है और अब ये हमारे स्थायी साथी बन गए हैं जो समय-समय पर किसी न किसी “अवतार” (मलेरिया, डेंगू, चिकगुनिया) में अपनी मौजूदी दर्शाते रहते हैं.
अब क्या?
प्रदूषण नियंत्रण के सीमित और सुरक्षित उपायों के बारे में पुनर्विचार किया जाना जरुरी है. ऐसी समस्याओं से निपटने के लिए कुछ हद तक प्रदूषण भी जरुरी हैं. शहरों में प्रदूषण नियंत्रण के लिए सीएनजी के प्रयोग को जरुरी करने से दिल्ली की हवा में प्रदूषण में तो कमी आई है. लेकिन यह भी ध्यान देने योग्य है कि पिछले कुछ सालों में ही मच्छरों से होने वाली घातक बीमारियों का भी जन्म हुआ है. पिछले कुछ सालों में घरों में चुल्हा और अँगीठी का प्रयोग भी बहुत कम हो गया है और इसकी जगह एलपीजी ने ले ली है. चुल्हे और अँगीठी का धुंआ बंद होने से भी मच्छरों को घरों में घुसपैठ करने का भरपूर मौका मिला है.
प्रदूषण के उपायों के साथ-साथ इन समस्याओं पर भी गौर किया जाना चाहिए और इसके बारे में अध्ययन होना चाहिए. शहरों में हरियाली को बढ़ाने के उपाए होने चाहिए. बगीचों, पार्कों और जंगलों का विकास किया जाना चाहिए. लेकिन घरों में ऐसे पेड़-पौधों को उगाने से बचना चाहिए जिनमें रोज पानी देना पड़ता है. अगर पेड़-पौधों घरों में लगाने ही हैं तो फन्स, कैक्टस और मॉस्किटो रेप्लेंट यानी मच्छर भगाने वाले औषधीय पौधों जैसे तुलसी को घर में लगाएं.
घरों में हर साल साफ-सफाई और चुना-मिट्टी से रंगाई-पुताई जारी रखी जाए. इसमें किसी तरह की शर्म या पिछड़ापन महसूस करने की जरुरत नहीं हैं. ये ध्यान रखें कि भारत एक उष्णकटीबंधीय देश है. हमारे देश की जलवायु और वातावरण यूरोप और अमेरिका से बिल्कुल अलग है.
तो भूल जाइए एक्सपर्ट की राय. इस दिवाली खूब पटाखें जलाएं और आतिशबाजी का मजा लें. बिजली के दीयों से घर को रोशन करने की बजाए तेल और घी के दीपक जलाएं और रोशनी के इस पर्व का आनंद लें.
(लेख का आइडिया यहां से लिया)
6 Comments:
Definitly, it looks better Idea
Definitly, It seems better idea
बढ़िया सुझाव हैं.
सही सुझाव.
सुझाव आपका ठीक है ।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ये ध्यान रखें कि भारत एक उष्णकटीबंधीय देश है. हमारे देश की जलवायु और वातावरण यूरोप और अमेरिका से बिल्कुल अलग है.बहुत सही मशविरा
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