Thursday, August 10, 2006

अभी और इंतजार....

13 साल, दस हजार पन्नों में लिखे गए आरोप, 600 गवाह..... ये है कहानी 1993 मुंबई बम ब्लास्ट हादसे की, जिसे अभी भी फैसले का इंतजार है. 13 साल से न्याय की आस लगाए लोगों को अभी न जाने कितना और इंतजार करना होगा. ये वो लोग हैं जिन्होंने हादसे में अपना सब कुछ गवां दिया. लेकिन फिर भी न्याय की आस नहीं छोड़ी और यह उम्मीद लगाए रहे कि आज नहीं तो कल उन्हें इंसाफ मिलेगा और सैकड़ों मासूमों की जान लेने वाले अपने अंजाम तक पहुंचेंगे.

लेकिन एक बार फिर हमारी न्याय व्यवस्था की खामी के चलते हादसे के शिकार लोगों निराशा होकर लौटना पड़ा. फिलहाल उन्हें अभी और इंतजार करना है (शायद एक महीना या और...). जहां किसी देश की न्याय व्यवस्था उसका मजबूत पक्ष होती हैं वहीं ये हमारी न्यायिक व्यवस्था “weakest link” के रूप में उभर रही है. पिछले दिनों एक खबर आई जिसमें बताया गया कि हमारे देश में 50 लाख से अधिक मुकदमें पेंडिंग पड़े हैं. ऐसे में शीघ्र न्याय की उम्मीद लगाना व्यर्थ ही है.

लेकिन इसके अलावा भी दूसरे पहलू हैं जिसके चलते अपराधी कानून की खिल्ली उड़ाते खुलेआम घूम रहे हैं. मुंबई बम ब्लास्ट पर आज फैसला न आने पर टीवी पर एक वरिष्ठ पत्रकार की टिप्पणी भी गौर करने लायक है कि बिना किसी ठोस कारण के फैसले को टाले जाने का कोई औचित्य नहीं था. यही कारण है कि न्याय के लिए चलने वाली सालों साल की प्रक्रिया आतंकवादियों और अपराधियों के हौसले बढ़ा रही है.

पिछले दिनों टीवी कार्यक्रम पर एक कार्यक्रम देखा, जिसमें प्रियदर्शनी मामले में हाई कोर्ट में दाखिल एक याचिक पर सुनवाई में हो रही देरी पर बहस चल रही थी. इस कार्यक्रम में सोली सोराबजी, किरण बेदी और एडवोकेट रानी जेठमलानी शामिल थे. न्याय में हो रही पर जब उनसे पूछा गया कि इसके लिए वो किसे जिम्मेदार मानते हैं तो सभी ने अपने कार्यक्षेत्र का बचाव करते हुए दूसरे पक्ष को जिम्मेदार ठहराया. पुलिस का बचाव करते हुए जहां किरन बेदी जी का कहना था कि पुलिसवाले भी इंसान हैं और यह संभव है कि साक्ष्य जुटाने में उनसे गलती हो जाए. वहीं ठोस साक्ष्य न पेश कर पाने और आरोपियों के बरी हो जाने के लिए उन्होंने पुलिस को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया. पर किसी के पास भी इस बात का जवाब नहीं था कि किस तरह इस व्यवस्था को बदला जाएगा. ये एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब ढूढ़ने में शायद अभी न जाने कितने साल और लग जाए. और तब तक प्रियदर्शनी मट्टू...., जेसिका लाल..., नीतिश कटारा के परिवार .... और मुंबई बम हादसों के शिकार लोग इसी तरह न्याय की बाट जोहते रहें.....

1 Comments:

At 8:07 AM, Blogger Jagdish Bhatia said...

अभी तो मीडिया बहुत जागरूक है और अदालतों को जल्दी न्याय देने का दबाव बना हुआ है वरना सोचिये क्या होता?

 

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