साबुन या आरडीएक्स
मुंबई के डॉक्टर खालिद ठाकुर के साथ बुरी बीती। और यह सब कुछ हुआ पांच किलो काले साबुन के कारण। डॉ. खालिद मुंब्रा मुंबई में रहते हैं और वहीं उनका क्लीनिक भी है। वह दांतों के डॉक्टर हैं। गत १३ अगस्त को वह अपनी मारुति कार में घरेलू सामान लेने अपने किरयाना दुकानदार के पास गए तो उन्हें सपने में भी ख्याल नहीं था कि वह कितनी बड़ी मुसीबत मोल ले रहे हैं।
उस दिन उनकी पत्नी ने उन्हें घर के सामान की एक लंबी लिस्ट थमा दी थी। उन्होंने सारा सामान अपनी कार में लादा और घर लौट आए। सारा सामान तो उतार दिया गया पर पांच किलो कपड़े धोने का साबुन कार की डिक्की में ही भूल गए। फिर वह अपनी कार सर्विस सेंटर पर सर्विस के लिए दे आए। १५ अगस्त के मद्देनजर उस दिन शहर में कड़ी चेकिंग की जा रही थी। इस दौरान एक कार में काली सी चीज मिली और पता चला कि कार एक मुस्लिम व्यक्ति की है तो पुलिस फौरन हरकत में आ गई।
इसके बाद जो हुआ वह इस प्रकार है। १५ अगस्त की शाम वह अपने क्लीनिक में मरीजों की जांच कर रहे थे, तभी उनके पास मुंब्रा थाने से फोन आया कि कुछ पूछताछ के लिए वह थाने आ जाएं। तीन बच्चों के पिता खालिद यह सोच भी नहीं सकते थे कि उनकी कार में कपड़ा धोने का साबुन रह गया है, और पुलिस ने उसे साबुन न समझ कर आरडीएक्स (विस्फोटक) समझ लिया है। इधर पुलिस की बात देखिए, ११ जुलाई की घटना के बाद तो उनके लिए दूध का जला छाछ भी फूंककर पीने का सा मामला हो गया था। उन्हें सीधा सा साबुन आरडीएक्स लग लग रहा था। इसकी जांच बम निरोधी दस्ते और दूसरे एक्सपर्ट से भी कराई गई। सबने यह पाया कि यह आरडीएक्स नहीं बल्कि साबुन है।
सीनियर अफसर सुरेश पवार फौरन समझ गए कि यह साबुन है, आरडीएक्स नहीं। पर दूसरे सीनियर अफसर यह मानने को तैयार नहीं हुए।
सुरेश पवार ने डॉक्टर खालिद को अपनी कार के साथ घर लौटने की इजाजत दे दी। लेकिन थोड़ी ही देर बाद वागले पुलिस ऑफिस से फोन आया कि यहां बम विरोधी दस्ता उनकी कार में पाए सामान की एक बार फिर जांच कर रहा है, आ जाएं। खालिद फिर अपने कुछ मित्रों के साथ वहां पहुंचे। उनसे लंबी पूछताछ की गई। खालिद ने बताया: वहां एक बार जब बम निरोधी दस्ते के लोगों ने साबुन को बारूद बताया तो मेरा दिल सिर पीटने को हो गया। आखिर यही हमारे बम निरोधी एक्सपर्ट हैं? जिन्हें साबुन और बारूद में भी अंतर नहीं पता।
डॉक्टर खालिद ने बताया: जब मुझ जैसे डॉक्टर के साथ इस तरह का सलूक किया गया तो आम आदमी के साथ कैसा सलूक होता होगा, उसकी कल्पना की जा सकती है। बहरहाल अंत में यही साबित हुआ कि यह साबुन था और उन्हें देर रात घर लौटने की इजाजत दे दी गई। पुलिस का कहना था कि ११ जुलाई के बाद और स्वतंत्रता दिवस होने के नाते हमारी मजबूरी थी कि हम चौकस रहें। पुलिस ने उनसे किसी भी तरह का दुर्व्यवहार करने से इंकार किया है।
अब सुरक्षा के नाम पर पुलिस की चौकसी की बानगी तो आप देख ही रहे हैं. यही कारण है कि ऐसे अवसरों पर आम नागरिक बाहर निकल कर मुसीबत मोल लेने की बजाए घर में बैठना ज्यादा पसंद करते हैं.
2 Comments:
आमतौर पर कार की मरम्मत वाले लोग पहले ही कार में से सब असला सफ़ा करवा के ही कार लेते हैं।
बड़ा नकरात्नक प्रभाव पड़ता है अल्पसंख्यक समुदाय पर इन सब घटनाओं का ! पर सुरक्षाकर्मियों की भी मजबूरी है ।
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