धर्मेंद्र कुमारइन लोगों में अपना प्रतिबिम्ब देख रहे शेष भारत के लोग सहायता के लिए बढ़ कर आगे आ रहे हैं। लेकिन, अपने बचे-खुचे सामान और छोटे-छोटे बच्चों को कंधों पर लादे बूढ़े और जवानों की मार्मिक तस्वीरें देखकर सहायता को आगे बढ़ने वाले ये हाथ अचानक रुक गए।
मदद के लिए लोग लगातार आगे आ रहे हैं लेकिन कैसे करें...यह नहीं पता। शनिवार को एनडीटीवी खबर कार्यालय में कम से कम सौ से ज्यादा आने वाली फोन काल सिर्फ इस बात से संबंधित थीं कि राहत सामग्री में अपना योगदान कैसे करें।
हमने खोजे राहत सामग्री में जुटे लोगों के फोन नंबर। नंबर मिले पर फोन नहीं लगा। तो हमने रुख किया इंटरनेट का। सीधे पहुंचे बिहार के मुख्यमंत्री की वेबसाइट
http://cm.bih.nic.in पर जहां अफसरों का गुणगान और मुख्यमंत्री के भाषणों का संग्रह तो मिला पर मुख्यमंत्री राहत कोष में योगदान कैसे करें, यह पता नहीं चल सका। मुख्यमंत्री राहत कोष के लिंक पर पहुंचे, लेकिन वहां हमें मिला अब तक राहत कोष से लाभान्वित लोगों की सूची। यानी कि राजनीतिक लाभ लेने की पूरी तैयारी। सवाल अभी भी जिंदा कि रोहत कोष में योगदान कैसे करें...
यहां से निराश होकर हम पहुंचे देश के प्रधानमंत्री की वेबसाइट
http://pmindia.nic.in पर। यहां भी कोष का यशोगान तो मिला, लेकिन अपना योगदान कैसे करें, यह सवाल अनुत्तरित। यहां कुछ फोन नंबर जरूर मिले और बैंकों की शाखाओं के पते भी, जो शाम को बंद हो चुकी थीं। हमें ख्याल आया राहत कोष में ऑनलाइन धन जमा कराने का। लेकिन अजीब बात यह कि कोष में ऑनलाइन धन जमा करने की व्यवस्था वेबसाइट पर नहीं मिली।
फिर भी हमारी खोज जारी रही। हम पहुंचे भारतीय दूतावास की साइट
http://www.indianembassy.org पर। यहां मिली हमें ऑनलाइन योगदान देने की जानकारी। लेकिन दुर्भाग्य ने साथ यहां भी नहीं छोड़ा। ऑनलाइन सहायता राशि देने के लिए आगे बढ़े तो एक फॉर्म का प्रिंट लेने का निर्देश दिया गया जिसे भर कर अगले दिन प्रधानमंत्री कार्यालय में जमा करना है।
अंतत: साबित यह हुआ कि देश को आईटी के क्षेत्र में सिरमौर बना देने के दावों के बीच सरकार के कर्ता-धर्ताओं के पास इतना समय नहीं है कि वे देश के नागरिकों को यह जानकारी दे सकें कि अगर वे बाढ़ पीड़ितों की मदद करना चाहें तो कभी भी और कहीं से भी, कैसे करें...
ndtvkhabar से साभार
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