Thursday, May 18, 2006

दिल्ली में इन्कलाबी माहौल

आजकल दिल्ली में वातावरण अचानक इन्कलाबी हो गया है। हर तरफ धरना-परदरशन का जोर है। भले ही समाजिक समस्या को लेकर अपना जवान सब कभियो इन्कलाब जिंदाबाद नहीं करते हों, लेकिन आरक्षण के समरथन औरो विरोध में खूब गला फाड़ रहे हैं, पानी की बौछार झेल रहे हैं। आरक्षण को कोयो सामाजिक समरसता कह रहा है, तो कोयो वोट की राजनीति। ऐसे में हम बहुत कन्फूज हूं।
ऐसने कन्फूजन की स्थिति में हमको एक ठो भयानक सपना दिखा। हम एयर इंडिया के विमान में सवार थे। हवाई जहाज के उड़ने से पहले घोषणा हुई - - आज हम 'समाजिक समरसता' के प्रतिनिधि बिमान में उड़ान भरने वाले हैं। हमारे पायलट 'कोटे' से आए हैं और आज यह उनकी पहली उड़ान है, इसलिए आप लोग कुर्सी की पेटी के अलावा, एक और पेटी से खुद को बांध लें, ताकि हम 'हवाबाजी' का आनंद ले सकें। इस हवाबाजी में अगर किसी की तबीयत बिगड़ती है, तो हमारे साथ 'कोटे' से आए डाक्टर भी हैं, घबराइएगा नहीं उ पराथमिक इलाज करने में सक्षम हैं। हमको खुशी हो रही है कि इस खास उड़ान में माननीय अर्जुन सिंह भी हमारे साथ हैं, जिनको अचानक किसी खास काम से चुरहट जाने के लिए ई बिमान पकड़ना पड़ा है...। अब हम उड़ान भरने के लिए तैयार हैं औरो आपकी सेफ जरनी की कामना करते हैं।

लेकिन ई का! जैसने ई घोषणा हुई, एक ठो बूढ़ा आदमी उठा औरो अपने पीए नुमा आदमी को इस बात के लिए डांटते हुए कि उसने काहे इस 'उड़ते ताबुत' में टिकट बुक कराया, बेहोश हो गया। बिमान उड़ते-उड़ते रुक गया आखिर मंतरी जी वाली बात थी। इससे पहले कि बिमान का डाक्टर उसका इलाज करते, मंतरी जी के पीए ने उसे रोका औरो मरीज को लेकर बिमान विदेश रवाना हो गया। आखिर उनका जिंदा रहना देश के लिए बहुते जरूरी जो था।

ई तो कोटा की बात है, हम आपको एक ठो डोनेशन वाला डाक्टर की कहानी बता रहा हूं। हमरी बाटनी की प्रोफेसर के पति डोनेशन देकर डाक्टरी पढ़े थे। एक दिन पिताजी की तबीयत खराब हुई, तो प्रोफेसर साहिबा ने पति से दवा लिख देने के लिए कहा। जब वह परचा लेकर मेडिकल स्टोर पहुंचीं, तो दुकानदार ने कहा, 'हमरे यहां मवेशियों की दवा नहीं मिलती है। बाई द बे आपने भैंस कब से पालना शुरू कर दिया?'

तो ई है महिमा डाक्टरी में शार्टकट की। अब आप ही कहिए कि ऐसन डाक्टर बेटा से कोयो बाप कैसे अपना इलाज करवाएगा? और जब बाप इलाज नहीं करवा सकता, तो दूसरे अनजान आदमी की जान लेने के लिए उसको लाइसेंस काहे दिया जाता है! का है कि डाक्टरी इंजीनियरिंग तो है नहीं कि ग्यान के अभाव में घर का पिलर टेढ़ा भी बन गया, तो बाद में उसको दुरुस्त कर लिया जाएगा। यहां तो अगर किसी डाक्टर ने आपरेशन में गलतियो से कोयो काम वाला नस काट दिया, तो आपको सीधे स्वर्ग का द्वार दिखने लगेगा।

इस देश में तो वैसने स्थिति कंटरोल से बाहर है। जहां हालत ई हो कि जाइए बायां जबड़े का बेकार दांत निकलवाने, तो डाक्टर दायें जबड़े का बढि़या दांत निकाल के हथेली पर रख दे, उस देश में कोटा का खयाले बेहोश कर देने वाला होता है! आखिर मुन्ना भाई की झप्पी अगर एतना कारगर होती, तो डाक्टर सब जिंदगी भर किताबी कीड़ा काहे बना रहता!

प्रिय रंजन झा

3 Comments:

At 9:33 PM, Blogger Sagar Chand Nahar said...

कई बार अकेले बैठे आपके लिखे लेख याद आ जाते हैं तो बहुत हँसी आती है और देखने वाले सोचते है कि सागर पगला गए हैं।

 
At 9:47 PM, Blogger Kaul said...

बहुत अच्छा लिखे हैं झा जी। बिल्कुल सही है, जितना डर लोगों को आरक्षण वाले डाक्टर से लगता है, उतना ही डोनेशन वाले डाक्टर से भी लगना चाहिए। पर, यह आप इंजीनियरों की बेइज्जती काहे कर रहे हैं? इंजीनियर क्या किसी की जान नहीं ले सकता? पुल का डिजाइन, गाड़ी का डिजाइन, ब्रेक का डिजाइन, या डाक्टर की किसी मसीन का डिजाइन गड़बड़ कर दिया तो? और, यह जबड़ा ऊपर-नीचे के बदले दायाँ-बायाँ कब से होने लगा? :-)

 
At 12:53 AM, Blogger ई-छाया said...

झा जी एतना बढियॉ लीकेंगे (लिखेंगे) तो हम हँस हँस कर पगला नहिना जाऊँगा।

 

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