Wednesday, November 15, 2006

कहीं कहानियों में न सिमट जाए सर्कस

सूचना क्रांति के इस दौर ने भले ही विकास के नए आयाम दिखाए हैं लेकिन सर्कस उद्योग पर इसकी गहरी मार पड़ी है और मनोरंजन के इस बरसों पुराने आकर्षण का भविष्य अंधकारमय है.

एक समय था जब सर्कस का दल किसी शहर में पहुंचता था तो शहर में धूम मच जाती थी. आज यह सब सपने जैसा लगता है क्योंकि अब तो सर्कस का मेला कब लग कर चला जाता है किसी को पता ही नहीं चलता.

लोगों के पास सर्कस के लिए समय ही नहीं है. जिनके पास समय है वे अपने अपने घरों में बैठ कर टीवी देखना कंप्यूटर पर गेम खेलना पसंद करते हैं. सर्कस के मुख्य आकर्षण जानवर होते हुआ करते थे. लेकिन वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के चलते सर्कस में जानवरों के इस्तेमाल पर रोक लग गई और धीरे-धीरे इनका आकर्षण भी खत्म हो गया.

सूचना क्रांति के इस युग में सर्कस जैसे पारंपरिक मनोरंजन के साधनों का भविष्य अंधकारमय है और संभव है कि आने वाले समय में मनोरंजन के इस साधन का अस्तित्व ही न रहे.

2 Comments:

At 9:59 PM, Blogger bhuvnesh sharma said...

मुझे तो लगता है कि ये कहानियों में पहले ही सिमट चुका है मेरे शहर या उसके आसपास कई सालों से कोई सर्कस नहीं आया
पर इसमें निरीह जानवरों पर जो अत्याचार होता था उससे अब उन्हें निजात मिल सकेगी जो अच्छी बात है

 
At 11:02 PM, Blogger Udan Tashtari said...

वाकई, कई बरस बीते सर्कस देखे सिवाय संसद भवन में जो सर्कस होती है, वही टी.वी. से देख लेते हैं. लगभग वैसी ही है!! कम से कम थोड़ा संतोष तो करवा ही देते हैं, साधुवाद देता हूँ सारे सांसदों को :)

 

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