Friday, May 26, 2006

कमजोरों का बोलबाला

बहुत बुरी स्थिति है भाई! सरकार कहती है कि लोग उस पर विशवास करे, लेकिन जनता उसकी सुनिए नहीं रही है। परधानमंतरी डाक्टर सब से कहते हैं कि हम पर विशवास कीजिए, आपका भला होगा, तो वित्त मंतरी कहते हैं कि जमीन सूंघने के बावजूद आप शेयर बाजार में पैसा लगाते रहिए। अब आप ही बताइए, मर रहे आदमी को आप ई कहिएगा कि तुम जिंदा हो रहे हो, तो उ काहे आप पर विशवास करेगा?

वैसे भी परधानमंतरी की बात सुनवे कौन करता है कि डाक्टर सब सुने! बिहार, झारखंड के राज्यपाल ने उनकी बात नहीं सुनी, क्वातरोकी को सरकारी अफसरों ने खाता से पैसा निकालने दे दिया, परधानमंतरी को पते नहीं चला, जयप्रकाश नारायण केंद्र में मंतरी रहते हुए अंडरगराउंड रहे, परधानमंतरी उनको ढूंढ कर पुलिस को नहीं दे सके, अर्जुन सिंह ने समाज को बांटने वाला एतना बड़ा पत्ता खेल दिया, परधानमंतरी टापते रह गए, अब ऐसन में डाक्टर उन पर भरोसा करे, तो कैसे करे?

भरोसा तो इसलिए भी करना मुश्किल है कि कारवां गुजर जाता है औरो उ गुबार देखते रह जाते हैं। पूरा दिल्ली टूट गया, दुकान में ताला लटक गया, तब उनकी नींद खुली कि अन्याय हो रहा है, कानून बनाओ। जब करोड़ों टका जनता का डूबा, लाखों का रेवेन्यू सरकार का छूटा, तब जाकर आप कानून बनाते हैं औरो चाहते हैं कि लोग आप पर विशवास करे, ई कैसे संभव है। उ अर्थशास्त्र के पंडित हैं औरो परधानमंतरी भी, लेकिन आश्चर्य है कि उनको देश की आरथिक औकात का पते नहीं है। कुछ दिन पहिले कहा जा रहा था कि उच्च शिक्षा पर खरचा करने के लिए सरकारी बटुआ में पैसे नहीं है, लेकिन आरक्षण आ गया, तो सीट बढ़ाने के लिए उसके पास पैसा आ गया। आश्चर्य तो इहो है कि पराथमिक इसकूल तो सरकार से मेनटेन नहीं होता औरो कालेज में एडमिशन के लिए उ लोगों को आपस में लड़ा रहा है। अरे, जब बच्चा पराथमिक इसकूले नहीं जा पाएगा, तो कालेज पहुंचेगा कैसे? अब सरकार एतना बेवकूफ बनाएगी लोगों को, तो उस पर भला कौन भरोसा करेगा!

ऐसने हाल शेयर बाजार का है। आठ दिन में शेयर बाजार आसमान से धरती पर उतर गया, लेकिन सरकार सोयी रही। तीन सौ करोड़ टका इसी देश के लोगों का डूबा, लेकिन सरकार तब जागी, जब लोग लुट-पिट गए। वित्त मंतरी के एक स्पष्टीकरण से बाजार सुधर गया, लेकिन उ हैं कि दो घंटा पहिले मुंह नहीं खोलने की कसम खाकर बैठे थे। माना कि शेयर बाजार में पैसा अमीर आदमी सब लगाता है, लेकिन इसका मतलब ई थोड़े है कि उनको लुटने दिया जाए। ई काहे भुला दिया जाता है कि अमीरो आदमी इसी देश का नागरिक होता है औरो कमाता है, तो बत्तीस तरह का टैक्सो आप उसी से वसूलते हैं। हमको तो लगता है कि इस देश में मजबूत होना ही गुनाह है। इससे तो बढि़या है कि आप कमजोर बने रहिए- कोयो आपकी चिंता नहीं करेगा, तो कम से कम परेशाने तो नहीं करेगा।

सरकारियो फंडा यही है कि आप कमजोर के लिए कुछ मत कीजिए, लेकिन जो मजबूत हो रहा है, उसका टांग खींचकर जमीन पर पटक दीजिए। केतना बढि़या समाजशास्त्र है! वैसे, इसमें आश्चर्य की कौनो बात है भी नहीं! अब का है कि जिस देश में परधानमंतरी बनने के लिए व्यक्ति का कमजोर होना सबसे बड़ी शर्त हो, उस देश में मजबूत आदमी को कौन पसंद करेगा? खुदे मनमोहन जी परधानमंतरी इसीलिए बने काहे कि उ कमजोर थे। अर्जुन सिंह जैसे नख-दंत वाले होते, तो परधानमंतरी बनने का सपने देखते रह जाते! अब आप ही कहिए, जब परधानमंतरी बनने की कसौटी ई है, तो आप पढ़-लिखकर या कमाकर तोप बनने की कोशिश काहे करते हैं?

प्रिय रंजन झा

Thursday, May 18, 2006

दिल्ली में इन्कलाबी माहौल

आजकल दिल्ली में वातावरण अचानक इन्कलाबी हो गया है। हर तरफ धरना-परदरशन का जोर है। भले ही समाजिक समस्या को लेकर अपना जवान सब कभियो इन्कलाब जिंदाबाद नहीं करते हों, लेकिन आरक्षण के समरथन औरो विरोध में खूब गला फाड़ रहे हैं, पानी की बौछार झेल रहे हैं। आरक्षण को कोयो सामाजिक समरसता कह रहा है, तो कोयो वोट की राजनीति। ऐसे में हम बहुत कन्फूज हूं।
ऐसने कन्फूजन की स्थिति में हमको एक ठो भयानक सपना दिखा। हम एयर इंडिया के विमान में सवार थे। हवाई जहाज के उड़ने से पहले घोषणा हुई - - आज हम 'समाजिक समरसता' के प्रतिनिधि बिमान में उड़ान भरने वाले हैं। हमारे पायलट 'कोटे' से आए हैं और आज यह उनकी पहली उड़ान है, इसलिए आप लोग कुर्सी की पेटी के अलावा, एक और पेटी से खुद को बांध लें, ताकि हम 'हवाबाजी' का आनंद ले सकें। इस हवाबाजी में अगर किसी की तबीयत बिगड़ती है, तो हमारे साथ 'कोटे' से आए डाक्टर भी हैं, घबराइएगा नहीं उ पराथमिक इलाज करने में सक्षम हैं। हमको खुशी हो रही है कि इस खास उड़ान में माननीय अर्जुन सिंह भी हमारे साथ हैं, जिनको अचानक किसी खास काम से चुरहट जाने के लिए ई बिमान पकड़ना पड़ा है...। अब हम उड़ान भरने के लिए तैयार हैं औरो आपकी सेफ जरनी की कामना करते हैं।

लेकिन ई का! जैसने ई घोषणा हुई, एक ठो बूढ़ा आदमी उठा औरो अपने पीए नुमा आदमी को इस बात के लिए डांटते हुए कि उसने काहे इस 'उड़ते ताबुत' में टिकट बुक कराया, बेहोश हो गया। बिमान उड़ते-उड़ते रुक गया आखिर मंतरी जी वाली बात थी। इससे पहले कि बिमान का डाक्टर उसका इलाज करते, मंतरी जी के पीए ने उसे रोका औरो मरीज को लेकर बिमान विदेश रवाना हो गया। आखिर उनका जिंदा रहना देश के लिए बहुते जरूरी जो था।

ई तो कोटा की बात है, हम आपको एक ठो डोनेशन वाला डाक्टर की कहानी बता रहा हूं। हमरी बाटनी की प्रोफेसर के पति डोनेशन देकर डाक्टरी पढ़े थे। एक दिन पिताजी की तबीयत खराब हुई, तो प्रोफेसर साहिबा ने पति से दवा लिख देने के लिए कहा। जब वह परचा लेकर मेडिकल स्टोर पहुंचीं, तो दुकानदार ने कहा, 'हमरे यहां मवेशियों की दवा नहीं मिलती है। बाई द बे आपने भैंस कब से पालना शुरू कर दिया?'

तो ई है महिमा डाक्टरी में शार्टकट की। अब आप ही कहिए कि ऐसन डाक्टर बेटा से कोयो बाप कैसे अपना इलाज करवाएगा? और जब बाप इलाज नहीं करवा सकता, तो दूसरे अनजान आदमी की जान लेने के लिए उसको लाइसेंस काहे दिया जाता है! का है कि डाक्टरी इंजीनियरिंग तो है नहीं कि ग्यान के अभाव में घर का पिलर टेढ़ा भी बन गया, तो बाद में उसको दुरुस्त कर लिया जाएगा। यहां तो अगर किसी डाक्टर ने आपरेशन में गलतियो से कोयो काम वाला नस काट दिया, तो आपको सीधे स्वर्ग का द्वार दिखने लगेगा।

इस देश में तो वैसने स्थिति कंटरोल से बाहर है। जहां हालत ई हो कि जाइए बायां जबड़े का बेकार दांत निकलवाने, तो डाक्टर दायें जबड़े का बढि़या दांत निकाल के हथेली पर रख दे, उस देश में कोटा का खयाले बेहोश कर देने वाला होता है! आखिर मुन्ना भाई की झप्पी अगर एतना कारगर होती, तो डाक्टर सब जिंदगी भर किताबी कीड़ा काहे बना रहता!

प्रिय रंजन झा

Friday, May 12, 2006

गलतफहमी का झटका

भले ही इस सड़ल गरमी में हमरे घर में बिजली नहीं रहती, लेकिन करंट का झटका तो हमको रोज लगता रहता है। वैसे, आप इसको गलतफहमी का झटका कह सकते हैं।

हाल में सबसे बड़का झटका हमको ताऊ के अरबपति होने की खबर सुनके लगा है। उनके अरबपति होने की बात सुनके हम सदमे में हूं। हम तो सोचते थे कि उ अपने को किसान कहते हैं, तो फसल उगा के अरबपति हुए होंगे, लेकिन हमको का पता कि अरबपति राजनीति की खेती करके भी हुआ जा सकता है! वैसे, राजनीति को चारा बनाकर खाने का आरोप तो अपने 'चपरासी के भइया' पर भी लगा, लेकिन जब तक उ सत्ता में हैं, हमको नहीं लगता कि सीबीआई उनका फार्म हाउस औरो बैंक खाता खोज पाएगी। अब देखिए न ताऊ भी तभिये पकड़ाए, जब हरियाणा की सत्ता हाथ से निकल गई। हम तो ई सोच के संतोष कर लेता हूं कि नेता सब पर कोयो आरोप साबित करना ओतने कठिन काम है, जेतना कि बैल दूहना। तो अब हम ई गलतफहमी पालने की स्थिति में नहीं हूं कि हमरी जेब काटके धनी हुए नेताओं की जेब कोयो असानी से काट पाएगा।

गलतफहमी तो हमको बुधिया को लेकर भी थी-- पांच साल का बच्चा पैंसठ किलोमीटर दौड़ेगा कैसे, लेकिन जब उसने दौड़ के देखा दिया, तो अब हम उसको दौड़ाने वालों को कोस रहा हूं। बताइए एक ठो अदना-सा गरीब बच्चा बिना किसी से पूछे रिकार्ड बना लिया, ई कोनो बात हुई! हद तो ई हो गई कि सरकारो से परमिशन नहीं लिया गया। हम तो खुश हूं कि सरकार ने उसको दौड़ने पर ही प्रतिबंध लगा दिया है। और बिना पूछे बनाए रिकार्ड! बिना सरकार से पूछे देश में एथलीट पैदा होने लगे, इससे बेसी गैर कानूनी बात औरो का हो सकता है? तो बुधिया जैसन लोगों की गलतफहमी को देखकर हमको लगता है कि हम बेकारे गलतफहमी के शिकार होने के लिए अपने को कोस रहे थे। यहां तो पूरी दुनिया गलतफहमी का शिकार है।

अब शेन वार्न वाला मामला ही ले लीजिए। उसकी घरवाली इस गलतफहमी में उसको छोड़कर चली गई कि दूसरी महिलाओं पर लाइन मारने वाला उसका पति उसको खुश नहीं रख पाएगा। अब एक साथ दू-दू ठो अंगरेजन सुपर मॉडल को खुश कर उनसे 'हीरो' की उपाधि पाने के बाद आप ही बताइए शेन वॉर्न को कौन बंद कमरे में जीरो मानेगा?

वैसे, गलतफहमी का एक ठो औरो उदाहरण है, लेकिन है तनि दुखद। उ परमोद जी थे न। बेचारे माया, उमा, ममता औरो जया जैसी देवियों को साध लेते थे, दुनिया भर की समस्या को मैनेज कर लेते थे, लेकिन गलतफहमी देखिए कि अपना भाई मैनेज नहीं हुआ। उ खुद इस गलतफहमी में थे कि भाई को पाला- पोसा है, उससे काहे का खतरा, तो भाई इस गलतफहमी में था कि भाई का रसूख उसको करोड़पति बना देगा।

सही बताऊं , तो गलतफहमी के इसी टक्कर में हमको झटका लग रहा है। अब नेता इस गलतफहमी में बईमानी कर-कर के तिजोरी भरता रहता है कि उसका कोयो कुछो नहीं बिगाड़ सकता, तो हम सोचता हूं कि नेता बईमानी कर के कोयो मात्र लखपति बन सकता है, करोड़पति अरबपति नहीं। ऐसे में झटका तो लगेगा ही। चलिए हमरी छोड़िए, आप तो सयाने हैं, इसलिए आप गलतफहमी मत पालिए। झटके से बचे रहिएगा।

प्रिय रंजन झा

Friday, May 05, 2006

जमाना हवाबाजी का

जमाना हवाबाजी का है, मतलब बड़ी-बड़ी हांकने का है। आप जेतना हवाबाजी देखाएंगे, ओतना फायदा में रहेंगे। अगर आपकी औकात दो टका की है, तो आप उसको दस टका का बताइए औरो देखिए लोग पर केतना रौब जमता है आपका। दिल्ली में तो हमको सौ में नब्बे लोग हवाबाज दिखता है। कोयो अपनी नौकरी के बारे में बड़ी-बड़ी हांकता है, तो कोयो अपनी रिश्तेदारी औरो बड़े लोगों से अपने संपर्क के बारे में, तो कोयो अपने पैसा के बारे में।

वैसे, गौर से देखिएगा, तो पूरा देश आपको हवाबाजी में कलाबाजी करते दिखेगा। बाजार हवा में है, कानून हवा में है, समाज हवा में है, पालिटिक्स हवा में है, लोग हवा में है, यहां तक कि पूजा-पाठ तक हवा में है। जमीनी हकीकत के बारे कोयो सोचना नहीं चाहता। औरो यही कारण है कि यहां कुछो व्यवस्थित नहीं है, सब कुछ हवा में डोल रहा है। ऐसे में आप भी तभिये यहां बढ़िया से जी सकते हैं, जब आप नंबर वन के हवाबाज हों।

अगर आप हवाबाज हैं, तो बढ़िया नौकरी के साथ-साथ सभ्य अंदाज में कहें, तो बढ़िया बीवी भी पा सकते हैं। चमक-दमक में नहीं रहिएगा, तो लड़की आपके तरफ देखेगी भी नहीं। तभिये तो लड़कियों को ई दिखाने के लिए कि हमरे बटुए में बहुते पैसा है, जवान सब झपटमारी करने से लेके गाड़ी चुराने तक से नहीं हिचकते। एतना मेहनत के बाद जब उ बरांडेड कपड़ा औरो गाड़ी से लड़की को इमपरेस कर पाता है, तभिये उ उसकी गर्लफरेंड बनती है।

ऐसने हाल नौकरी का है। अगर आप गीता के इस सिधांत में विशवास करते हैं कि 'काम किए जा, फल की चिंता मत कर', तो दिल्ली में रेता ढोने वाला गदहा भी आपसे बड़ा गदहा नहीं है। यहां तो हाल ई है कि आप काम भले नहीं कीजिए, लेकिन व्यस्त हरदम दिखए। ऑफिस में कंपूटर पर गेम खेलते रहिए, फोन पर बीवी से बतियाते रहिए, लेकिन हरदम शो कीजिए कि आफिस के काम से आपकी कमर झुकती जा रही है औरो आपके पास टायलेट जाने तक टैम नहीं है। देखिए, आफिस में आपका केतना इमपरेसन जमता है। अगर आप बॉस हैं, तो दिन में पांच बार मीटिंग बुलाइए। कोयो मुद्दा नहीं मिले, तो पिछला दिन के अपने परपोजल के बदला में रोज नया परपोजल पेश करते रहिए। बस ई देखाते रहिए कि आप कुछो कर रहे हैं।

नौकरी पाना है, तो बायोडाटा में हवाबाजी दिखाइए। अगर चपरासी की नौकरी चाहिए, तो लिखिए कि आप गदहे से भी बेसी सीधे व मूरख हैं औरो आपके मुंह में बोली हैइए नहीं है, भले ही नौकरी मिल जाने के बाद आप बात बात पर अपने अफसर का कालर पकड़ लें। ऐसने अगर आप अफसरी वाला नौकरी ढूंढ रहे हैं, तो ई लिखने से मत चूकिए कि आप एतना बेरहम हैं कि बीस आदमी का काम दो आदमी से करवाकर कमपनी का अठारह आदमी का खरचा बचा सकते हैं। अब जब आप एतना पैसा बचवा सकते हैं, तो ई हवाबाजी में दिखाने में कौनो हरज नहीं है कि आपकी असली औकात आपके अभी के पगार से चार गुना बेसी है।

वैसे तो हवाबाजी फायदाकारक है, लेकिन कभियो-कभियो ई नुकसानो कर देता है। देश की धड़कन शेयर बाजार का पूरा मामले हवाबाजी पर टिकल है, तभिये तो दस टका का शेयर कल हजार टका हो जाता है, तो परसों सौ टका का। का है कि जब तक आपको उड़ाने वाले गुब्बारे को कोई छेड़ता नहीं, तब तक आप उड़ते रहिए, पिन चुभा नहीं कि आप गिरे धांय। हमरा एक मित्र है, बड़ी-बड़ी हांक के ही बड़ा आदमी हो गया है। दिल्ली का जेतना बड़का अफसर, मंत्री, नेता औरो बिजनेसमैन है, सब उसका चचा है, फूफा है या भैया है। उ इसी सब के नाम पर कमाता-खाता है। उसके हांकने से तंग होने के बाद हमरे पास एक ही रस्ता बचता है- उसको अपने चचाओं से कराने के लिए एक काम थमा देना, उ भी बिना घूस के। विशवास कीजिए उ महीनों तक हमको दरशन नहीं देता है औरो इसके बाद जब मिलता है, तब कहता है कि उस चचा से उसका रिलेशन खराब हो गया, इसलिए काम नहीं हुआ। हमरा काम भले ही नहीं होता, लेकिन महीनों तक उसकी हवाबाजी से मुक्ति तो मिल ही जाती है! तो आप भी खूब हवाबाजी कीजिए, बस सतर्क रहिए कि पिन न चुभे!

प्रिय रंजन झा